पिछले कई दिन मेट्रो चीफ ई. श्रीधरन के लिए काफी मुश्किल भरे रहे। पिछले रविवार को मेट्रो साइट पर हुए हादसों के बाद तो उन्होंने जाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन शीला सरकार ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें अपने पद पर बने रहने के लिए कहा। रविवार को हुए इन हादसों के बाद अपने पहले इंटरव्यू में श्रीधरन ने NBT सहयोगी संवाददाता मेघा सूरी के साथ खुलकर बात की और अपने दिल की बात कही। रविवार को जब आपने इस्तीफा देने का फैसला किया उस वक्त आपके दिमाग में क्या चल रहा था? कई कारण थे जिसके कारण मैंने यह फैसला लिया था। मैं पिछले 11 सालों से मेट्रो प्रोजेक्ट से जुड़ा हूं और हमारा रेकॉर्ड भी काफी अच्छा रहा है। पिछले साल लक्ष्मी नगर में हुए हादसे के बाद हमने सिक्यूरिटी मेजर्स और मॉनिटरिंग बढ़ा दी थी। मैंने इस बात की भी हिदायत दी थी कि अगर जरा भी इस बात का अंदेशा हो कि सुरक्षा के लिहाज से कहीं कोई कमी है तो तुरंत साइट पर काम रोक दिया जाए। लेकिन इस सब के बाबजूद अगर ऐसा हादसा दोबारा होता है तो मुझे इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
भगवान न करे , अगर फिर ऐसा हादसा हो तो क्या आप दोबारा इस्तीफा देंगे। और क्या तो तब यह नहीं कहा जाएगा कि आप जिम्मेदारियों से भाग गए? जब तक मेट्रो का फेज़-2 (कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 तक)पूरा नहीं होता, मैं ऑर्गनाइजेशन को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला, चाहे जो हो जाए। यह मेरी ड्यूटी है, देश के प्रति मेरा उत्तरदायित्व है। मुख्यमंत्री, जयपाल रेड्डी और कई लोगों के मुझे आश्वासन दिया है कि वे मेरे साथ हैं। यहां तक की राहुल गांधी ने भी फोन करके मुझे कहा कि प्लीज मत जाइए, हम आपके साथ हैं। लेकिन आपको क्या लगता है कि रविवार का हादसा क्यों हुआ? मैं भी जानना चाहता हूं कि इसके पीछे क्या कारण हैं। लेकिन एक एंजीनियर होने के नाते मेरा अपना अनुभव यह कहता है कि यह खंभे की डिजाइन की गड़बड़ी के कारण हुआ है। मार्च में इस खंभे में दरार देखी गई थीं और मैंने खुद उसे देखने भी गया था। मैं खुद संतुष्ट नहीं था और इसलिए मैंने एक सेफ्टी टीम को इसकी देखरेख करने के काम में लगाया था, लेकिन उनका निष्कर्ष था कि दरारें ऊपरी हैं। लेकिन तब भी मैं संतुष्ट नहीं था। इसलिए हमने यह फैसला किया है पिलर पर पूरा लोड डालकर टेस्ट किया जाएगा... इसका मतलब है कि आप चाहते थे कि पिलर को गिरा दिया जाए? हां, मैं चाहता था कि उसे उसी वक्त गिरा दिया जाता। लेकिन यह संभव नहीं था क्योंकि एक दूसरा गर्डर को पहले ही ऊपर उठाया जा चुका था और वह पिलर पर रखा जा चुका था। इस गर्डर का भार 450 टन था और पिलर को तब तक नहीं गिराया जा सकता था जब तक गर्डर को उस पर से हटाया न जाए। मेरी टीम ने मुझे कहा कि फिलहाल इस टेस्ट को न किया जाए और कंट्रक्शन पूरा होने और फिनिशिंग के बाद पिलर को टेस्ट कर लिया जाए। और मैंने उनकी सलाह के आगे सिर झुका दिया। और इसी का मुझे अफसोस है। यही कारण है कि मुझे लगा कि यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी है। मुझे अपने फैसले पर अड़े रहना चाहिए था और पिलर को उसी वक्त गिरा देना चाहिए था। लेकिन उस वक्त अपने फैसले से पीछे हटना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी। अगर 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की डेडलाइन नजदीक नहीं होती, तो क्या आपको लगता है कि आप अपने फैसले पर बने रहते और उस पिलर को गिरा देते? नहीं, यह बात नहीं है। हम इस लाइन पर पहले ही अपनी समयसीमा से 5-6 महीने आगे काम कर रहे हैं और अभी हमारे पास काफी समय है। अगर मैं सच में चाहता, तो उस पिलर को नष्ट करवा सकता था। हादसे के बाद लाइन पर काम में देरी होगी? इस साइट पर अब कम से कम तीन महीने की देरी होगी, लेकिन इससे इस पूरी लाइन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि बाकी जगह पर काम चल रहा है।
ऐसी अफवाहे हैं कि जब इस लाइन को बनाने का फैसला किया गया था तब ज्यादातर लोग चाहते थे कि इसे अंडरग्राउंड बनाया जाए। इस हादसे के बाद आपको लगता है कि भीड़भाड़ वाले इलाकों में मेट्रो अंडरग्राउंड ही हो, फिर चाहे इसकी लागत ज्यादा ही क्यों न हो?
अंडरग्राउंड प्रोजेक्ट में खतरे और ज्यादा होते हैं। वहीं लागत भी तीन गुना बढ़ जाती है और टाइम भी कहीं ज्यादा लगता है। मुझे लगता है कि जहां भी संभव हो हमें मेट्रो को ऊपर ही बनाना चाहिए।
आपको क्या लगता है ऐसे बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने में सबसे बड़ी रुकावटें क्या हैं?
बड़े कॉन्ट्रैक्टर्स की बहुत कमी है, जो इस तरह के प्रोजेक्ट को पूरा कर सकें। कुछ बड़े कॉन्ट्रैक्टर्स जैसे- एल ऐंड टी ( L&T )ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं करना चाहते जिनकी कीमत 300-400 करोड़ से कम हो। हमारे ज्यादातर टेंडर्स 100-120 करोड़ रुपए के हैं। सरकार ने कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले जिस आखिरी लाइन को अनुमित दी थी वो है- बदरपुर लाइन। लेकिन जब हमने बदरपुर लाइन के 10 स्टेशनों के लिए टेंडर मंगाए तो हमें कोई टेंडर नहीं मिला। तब हमने दोबारा टेंडर निकाला और तब सिर्फ हमें एक टेंडर मिला और वह था- गैमन। हम अपने 2-3 कॉन्ट्रैक्टर्स के काम से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन हमारे पास उन्हें बदलने के लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। NBT