राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के रीछेड गांव में यह बरसो से यह परम्परा चली आ रही है। लोगों की मान्यता है कि रीछेड गांव के वरकणमाता मंदिर में करीब चार हजार वर्ष पूर्व कौरव और पाण्डवों के बीच दीपावली के अगले दिन नेतृत्व कायम करने को लेकर भंयकर युद्ध हुआ। इसमें कई लोगों के सिर कट कर एक स्थान पर एकत्र हो गए। युद्ध समाप्ति के उपरांत जब हताहतो के परिजन कटे हुए सिर लेने आए तो यहा प्रकटी माताजी ने उन्हें सिर ले जाने नहीं दिया। किसी तरह यह परिजन धर्मराज युधिष्ठर के पास पहुंचे और उनसे दिवंगत सैनिक के सिर निकालने में मदद करने के लिए कहा। जिस पर वह उक्त स्थान पर पहुंचे और माताजी से अनुनय विनय की। माताजी ने धर्मराज की परीक्षा लेने के लिए एक शर्त रख दी कि जोर आजमाइश कर व्यक्ति अपने दिवंगत परिजन का सिर ले जाना होगा तथा भविष्य में लोगों से प्रेमभाव से रहने का संकल्प करना होगा तभी मृत आत्माओं की शांति मिल सकेगी। कहा जाता है कि तब से चली इस प्रथा ने परम्परा का रूप ले लिया और हर वर्ष उसी स्थान पर नारियल रख दिया जाते है और लोग जोर आजमाइश करते हुए नारियल प्राप्त करते है।
Friday, October 31, 2008
यह लडाई चुनावी टिकट के लिए नहीं है...........
राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के रीछेड गांव में यह बरसो से यह परम्परा चली आ रही है। लोगों की मान्यता है कि रीछेड गांव के वरकणमाता मंदिर में करीब चार हजार वर्ष पूर्व कौरव और पाण्डवों के बीच दीपावली के अगले दिन नेतृत्व कायम करने को लेकर भंयकर युद्ध हुआ। इसमें कई लोगों के सिर कट कर एक स्थान पर एकत्र हो गए। युद्ध समाप्ति के उपरांत जब हताहतो के परिजन कटे हुए सिर लेने आए तो यहा प्रकटी माताजी ने उन्हें सिर ले जाने नहीं दिया। किसी तरह यह परिजन धर्मराज युधिष्ठर के पास पहुंचे और उनसे दिवंगत सैनिक के सिर निकालने में मदद करने के लिए कहा। जिस पर वह उक्त स्थान पर पहुंचे और माताजी से अनुनय विनय की। माताजी ने धर्मराज की परीक्षा लेने के लिए एक शर्त रख दी कि जोर आजमाइश कर व्यक्ति अपने दिवंगत परिजन का सिर ले जाना होगा तथा भविष्य में लोगों से प्रेमभाव से रहने का संकल्प करना होगा तभी मृत आत्माओं की शांति मिल सकेगी। कहा जाता है कि तब से चली इस प्रथा ने परम्परा का रूप ले लिया और हर वर्ष उसी स्थान पर नारियल रख दिया जाते है और लोग जोर आजमाइश करते हुए नारियल प्राप्त करते है।
थोथी बयानबाजी नहीं कर आतंकवाद का अब तो कडाई से मुकाबला करो।
मुकेश त्रिवेदी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की राष्टीय अध्यक्ष सोनिया गांधी का असम राज्य के गणेशगुडी क्षेत्र का दौरा करना और प्रभावितों से मिलकर उनके प्रति संवेदना व्यक्त करना अब आम बात हो गई है। जयपुर में इस वर्ष १३ मई को, बैंगलोर, अहमदाबाद में माह जुलाई में हुए धमाकों के बाद अमूमन राजनीतिक रोटियां सैंकने के लिए प्रभावित क्षेत्र में दौरा करते नजर आते है लेकिन इससे क्या प्रभावितों के दिलों की आग ठण्डी हो जाएगी? क्या उनसे सदा के लिए बिछड गए लोग मिल पाएंगे? जवाब यही है कि नहीं। न तो जयपुर, अहमदाबाद, बैंगलोर धमाके और न इससे पहले हुई ऐसी वारदातों के पीडितों को न्याय अब तक नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री खुद पीडितों से मिलने के बाद यही आश्वासन देते नजर आएं और आएंगे कि हमें आतंकवाद का अब कडाई से मुकाबला करना होगा लेकिन कब ? इसका जवाब शायद वह भी नहीं दे पाए। हर आतंकवादी घटना के बाद सरकार दोषियों के खिलाफ कडी कार्रवाई करने का आश्वासन देती है। पहले जब छिटपुट घटनाएं होती थी तब तो भारत का आम नागरिक सरकार के इस कथनों पर विश्वास भी कर लेता था लेकिन विगत वर्षो में भारत में धमाके आम घटनाएं हो गई है और ऐसे में धमाके के बाद प्रधानमंत्री और मंत्रियों के बयान जब उसी पूर्ववत अंदाज में दिए जाते है तो यह लगना स्वाभाविक है कि आतंकवाद के सामने हमारे प्रधानमंत्री और उनकी सत्ता भी बेबस है। आज आम नागरिक का यही प्रश्न होता है कि धमाके करने के बाद इंडियन मुजाहिदीन और अन्य संगठन इसकी सरेआजम जिम्मेदारी लेने में कोई संकोच नहीं करते है तो पूरे एक अरब जनसंख्या पर शासन करने वाले सत्ताधारी दल में इतना भी दम नहीं है कि वह इन मुट्ठी भर लोगों को सबक सिखा सके। क्या हमारी खुफिया एजेंसी में इतनी लचर हो चुकी है कि वह इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों को नेस्तनाबूत कर सके? वोटो की राजनीति करने वाले दलों को यह भी समझना होगा कि बम धमाके से मात्र सौ पचास लोग ही हताहत होते है लेकिन सरकार के प्रति विश्वास उन सौ पचास लोगों से जुडे हजारों लोगो का टूटता है। धमाकों में हताहत अधिकतर गरीब वर्ग के लोग होते है जिनकी परिजनों की हाय लगने पर राजा से रंक होते देर भी नहीं लगती हैं। क्या अब भी आतंकवाद से मुकाबला करने की थोथी बयानबाजी हमारे देश के नेता करते रहेंगे? यदि हां तो फिर इस देश के दुर्भाग्य को रोक पाना मुश्किल है।
Thursday, October 30, 2008
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
पहले राहुल और अब धर्मदेव की नृशंस हत्या कर राज ठाकरे की एमएनएस कार्यकर्ताओं ने क्षेत्रवाद को बढावा देने जो कृत्य किया है वह न केवल निदंनीय है अपितु आने वाले दिनों में गंभीर स्थिति का द्यौतक भी है।
राज ठाकरे की महाराष्ट मानुष की परिकल्पना वर्तमान परिपेक्ष्य में एक चिंतनीय विषय बनता जा रहा है। राज ठाकरे की शह पर उत्त्तर भारतीय परीक्षार्थियों पर हमला किया जाना और उसके बाद उत्तर भारतीय लोगों के दिमाग में भय बैठाने के लिए आग लगाने, मराठी की बजाय हिन्दी बोलने वालों की सरेआम पिटाई करना, छीना झपटी करना और तो और एक ईमानदार टैक्सी चालक की रोजी रोटी टैक्सी को आग लगा देना कृत्य एक व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देता है।
मुम्बई पर किसी एक व्यक्ति या एक संगठन की हुकूमत करना जायज नहीं है। अमूमन मुम्बई पूरे भारत का प्राण है। यहां से लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुडे हुए है। कोई कारोबार की दृष्टि से तो कोई अपने रिश्ते नातो से जुडा है। ऐसे में एक संगठन का वजूद कोई मायने नहीं रखता।
राज ठाकरे और उनके संगठन ने हालांकि अपने कृत्यों से मराठी मानुष की परिकल्पना को साकार कर दिया लेकिन यहां यह उल्लेख करते हुए शर्म से सिर झुक जाता है कि जिन लोगों पर कानून का पालन करने की जिम्मेदारी है वह भी अपने कर्तव्य से विमुख हो गए है और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत को सही साबित करते हुए नजर आ रहे है। पर उन्हें समझना होगा कि राज ठाकरे आम भारतीयों की तरह इंसान है और कानून का पालन करना आम इंसान की तरह उसका भी कर्तव्य है। पालन नहीं कर सकते है तो सम्मान तो अवश्य करे और यह भी नहीं करते है तो पुलिस और प्रशासन उन्हें क्यों रियायत देती जा रही है? पुलिस और प्रशासन यहां तक की महाराष्टª की सत्ता में बैठे राज नेताओं को भी सोचना होगा कि वह आम जनता के सेवक है और इसी सेवा का मानदेय/वेतन उन्हें दिया जाता है न कि किसी अपराधी के अपराध को प्रश्रय देने का।
जैन दर्शन में एक बात कही गई है कि जिस समस्या का समाधान अंकुरण के समय नहीं किया गया तो वह आने वाले समय में काफी दुखदायी साबित होगा। राहुल का एनकाउंटर के बाद बिहार में जनाक्रोश और गोरखपुर के धर्मदेव की हत्या के बाद जो घटनाएं सामने आई है उससे महाराष्ट सरकार और केन्द्र सरकार को सबक लेते हुए कोई ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी......................
Friday, October 17, 2008
तमाशा दिखा कर गांवों की महिलाओं की इज्जत से खेल गये
पुलिस थाना राजनगर के पुलिस निरीक्षक गोवर्धन ने इस सन्दर्भ में आयोजित की प्रेस कांफ्रेंस में खुलासा किया। पुलिस निरीक्षक के अनुसार सुनील, राजु जुलाहा अपने अन्य साथियों के साथ उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से राजस्थान में तमाशा दिखा कर रोजी रोटी कमाने आए। यहां आकर गांवों में जब चार दिन तक लगातार साइकिल चलाना, सीने पर पत्थर तोडना, जमीन में समाधि लेना आदि के तमाशा दिखाना शुरू किया तो कई महिलाएं उनकी हाडतोड मेहनत से काफी प्रभावित हो गई और उन्हें ही जिंदगी का असली हीरो समझने लगी। सुनील व राजु सहित उनके साथियों ने भी ग्रामीण महिलाओं और युवतियों की इन भावनाओं को समझते हुए न केवल सहानुभूति बटोरी अपितु जिस गांव में जाते वहीं पर महिलाओं को अपनी ओर आकषित करते हुए उनकी इज्जत से खूब खेलते थे। राजसमन्द जिले के समीप एक गांव में एक महिला को भी इन लोगों ने शिकार बनाना चाहा लेकिन उसके एतराज करने पर सुनील व राजु ने उसकी हत्या कर दी और वहां से फरार हो गए। पुलिस दल ने जब इन दोनों को गिरफ्तार किया तब इनके फोन डायरी से न केवल सैंकडो महिलाओं के फोन नम्बर प्राप्त हुए अपितु गिरफ्तारी के वक्त इन दोनांे के मोबाइल पर महिलाएं ही संपर्क करती नजर आई ।
पुलिस पूछताछ में सुनील व राजु ने गांव-गांव तमाशा दिखा कर महिलाओं की इज्जत के साथ खेलने के बारे में भी बताया।