Monday, December 29, 2008
पांच बरस में ले ली 98 हजार लोगों की जान
आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान कुछ कारवाई करे
अब कूदो 30 हजार फीट ऊंचाई से
Sunday, December 21, 2008
महात्मा गांधी ब्रिटीश सेना की एम्बूलेंस यूनिट में करते थे काम : रक्षा मंत्रालय
माता हो जाती है मजबूरी में कुमाता
नवजात बच्ची को अस्पताल के बिस्तर पर छोड़कर लापता हो गई है। ठाणे मनपा संचालित छत्रपति शिवाजी अस्पताल में हुई इस घटना के बाद खलबली का माहौल है। कलवा पुलिस ने गायब मां के खिलाफ मामला दर्ज किया है और उसकी खोज कर रही है। लेकिन गायब हुई मां वर्षा कांबले द्वारा अस्पताल के रजिस्टर में अपना पूरा पता नहीं दर्ज कराने के कारण पुलिस को उसकी खोज करने में परेशानी हो रही है। नवजात बच्ची को भिवंडी स्थित चिल्ड्रेन रूम में भेजा गया है। 18 दिसंबर को वर्षा कांबले (30) प्रसूती के लिए छात्रपति शिवाजी अस्पताल में दाखिल हुई थी। उसी दिन उसने एक बालिका को जन्म दिया और रात के वक्त अचानक गायब हो गई। 19 दिसंबर की सुबह जब बालिका रोने लगी तो लोगों का ध्यान उस ओर गया। अस्पताल के रजिस्टर में वर्षा कांबले के नाम के आगे पते के रूप में 'ऐरोली, सेक्टर एक' इतना ही लिखा गया है। अधूरे पते के चलते कलवा पुलिस अभी तक वर्षा कांबले की खोज कर पाने में असमर्थ साबित हुई है।
पाकिस्तान से बढते तनाव को लेकर प्रधानमंत्री ने ली मेराथन बैठक
मुंबई हमलों के बाद रक्षा मंत्री की अगुवाई में समुद्री सीमाओं की सुरक्षा से जुड़े आला अधिकारियों की बैठक में फैसला लिया गया कि तटीय इलाकों में और युद्धपोत और लड़ाकू विमान तैनात किए जाएंगे।इसके अलावा पूरे तटीय इलाके में रडार लगाने का फैसला लिया गया, ताकि दुश्मन के किसी भी हरकत पर नजर रखी जा सके। रक्षा मंत्री ने कोस्टगार्ड से कहा है कि वह जल्द से जल्द इंटसैप्टर बोट खरीदे।साथ ही मीटिंग में फैसला लिया गया कि नौ और कोस्टगार्ड स्टेशन बनाए जाएंगे, ताकि मुंबई जैसे हादसे को किसी भी कीमत पर आतंकवादी दोहरा न सके। मंत्री ने कोस्टगार्ड को यह भी निर्देश दिया कि वह अपनी खुफिया सूचना नेवी और खुफिया विभाग के साथ बांटे।इस मीटिंग में रक्षा मंत्री के अलावा रक्षा सचिव विजय सिंह, कोस्टगार्ड के डीजी वाइस एडमिरल अनिल चोपड़ा समेत कई आला अधिकारी मौजूद थे। इससे पहले शुक्रवार को रक्षा मंत्री ने सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के साथ बैठक की थी।
Saturday, December 20, 2008
क्या आप भी दलालों के चक्कर में है................
घर पहुंच सेवा के नाम पर भी दलालों की एजेंसिया खूब सक्रिय है। व्यक्ति भी व्यवस्थाओं की जटिलताओं से दूर भागना चाहता है और वह अपने काम को पूरा करने के िलिए इन एजेंसियों का सहारा लेता है। आज व्यक्ति रेलवे टिकट के आरक्षण के लिए भी रेलवे स्टेशनों की टिकट खिडकी की लम्बी कतारों से बचना चाहता है और अपना नम्बर आने तक प्रतिक्षा नहीं करना चाहता है। ऐसे में वह दलालों के माध्यम से टिकट क्रय करने और अपना आरक्षण कराने के लिए शॉर्टकट का रास्ता अपना रहा है। कमीशन देकर निजी बुकिंग एजेंसियों से आरक्षण कराने की प्रवृति भी अब आम आदमी की बन गई है। हालांकि बुकिंग एजेंसियों की हरकते भी कई बार आम लोगों को महंगी पड जाती है फिर भी इस तरह की एजेंसियां खूब पनप रही है। ऐसी एजेंसियां स्थापित हो गई जिनमें आप मात्र एक फोन करके अपने जरूरत की उपभोक्ता वस्तुएं कमीशन देकर प्रापत कर सकते है। उपभोक्ताओं और बाजार के बीच दूरियां इस दलाली प्रथा से कम हो गई है। व्यक्ति आज इतना अधिक सुविधा भोगी, आराम तलब यां यूं कहे कि अपने स्वयं और परिवार के प्रति अपने कर्तव्य की और उतरदायित्व के निर्वहन के प्रति नििष्क्रय हो गया है। वह कमीशन बांट-बांट कर अपनी दिनचर्या की आवश्यकता और अपने प्रशासनिक, व्यावसायिक और सामाजिक कार्य को सम्पन्न करा रहा है।
केन्द्र सरकार ने हलफनामा पेश किया कि सोनिया भी बन सकती है प्रधानमंत्री
भारत और पाक पर निगाहे है अमरिका की
Thursday, December 18, 2008
एडस का वायरस एसे घुस जाता है मानव शरीर में
आतंकवाद के खिलाफ कडे कानून हो मगर आरोपी को वकील भी मिले
जुआ चलाना अनुराग को पडा महंगा
मौलाना मसूद नजरबंद नहीं है नजरों से भी दूर है
Wednesday, December 17, 2008
नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को दस बरस की कैद
प्रकरणानुसार गत 15 अप्रेल 08 को पांचया का लेवा निवासी चंदाराम पुत्र चंदा गमेती ने चारभुजा थाने में रिपोर्ट दी कि 14 अप्रेल को उसकी भतीजी गीता गमेती जंगल में बकरियां चराने गई। जहां से देर शाम तक वापस नहीं आने पर उसकी तलाश की। इसी बीच उसकी भतीजी घायलावस्था में घर आई। गीता से पूछने पर उसने बताया कि गांव के रता पुत्र डालू गमेती ने पानी पिलाने के बहाने शराब पिला दी और उसके बाद बलात्कार किया। पुलिस ने मामले की जांच कर रता गमेती को गिरफ्तार किया। अदालत में इस मामले के विचारण के दौरान अभियोजन की ओर से 14 गवाह पेश हुए। अदालत ने गवाहों के बयान एवं दोनों पक्षों की पैरवी सुनने के उपरांत रता गमेती को दोषी मानते हुए उसे दस वर्ष का कारावास और पांच हजार रुपए के अर्थदण्ड से दण्डित किया। अभियोजन की ओर से पैरवी बापूलाल ओस्तवाल ने की।
सेक्स एज्यूकेशन लागू करे या नहीं...... नहीं तो हो जाएगी ब्रिटेन जैसी हालत
अमरिका में परचम फहराएगा गीता ज्ञान
प्रोफेसर एडी अमर ने कि यह अपनी तरह का दुनिया में पहला निर्णय है।उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय के 10,800 छात्रों में से एक तिहाई से ज्यादा गैर इसाई हैं और इनमें भारतीय छात्रों की संख्या भी प्रभावी है। भारत की शिक्षा पद्धति में भले ही वैदिक पाठ्यक्रम का विरोध होता हो, लेकिन अमेरिका के सेटन हॉल विश्वविद्यालय में सभी छात्रों के लिए गीता पढ़ना अनिवार्य कर भारतीय शिक्षा के प्रति अपना समर्पण व्यक्त किया है।
Tuesday, December 16, 2008
राजस्थान में भाजपा संगठन में परिवर्तन रिपोर्ट आने के बाद : राजनाथ सिंह
भारत ने पाक से फिर कहा 40 आतंकवादी सौंप दे
अपहरणकर्ता को ढूढंने वाले खुद हो गए अपहरण का शिकार
Monday, December 15, 2008
आवास पर सरकारी बैकों ने ब्याज दरें घटाई
सार्वजनिक क्षेत्र के वाणििज्यक बैंकों ने सोमवार को 20 लाख रुपए तक के आवास ऋण पर ब्याज दरें घटनें की घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने प्रसंस्करण शुल्क खत्म करने और निशुल्क जीवन बीमा की पेशकश भी की।
सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बडे बैंक भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष ओपी भट्ट ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पांच लाख रुपए तक आवास ऋण पर ब्याज दर 8.5 फीसदी होगी और 20 लाख रुपए का आवास ऋण 9.25 फीसदी की ब्याज दर पर मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह सुविधा सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों में आगामी 30 जून तक मिलेगी।
कभी सोचा नहीं होगा कि इस तरह स्वागत होगा
Saturday, December 13, 2008
मंत्री भी बन गया दहेज का लालची
आठवे बरस भी नहीं मिल सका विश्व सुंदरी का खिताब
प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली मिस वर्ल्ड कमेटी की प्रमुख जूलिया मोरली की इस उद्घोषणा के साथ कि, 'मिस वर्ल्ड-2008 रूसी सुंदरी है', सेन्या की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुशी के मारे उनकी आंखें छलछला आई। मुंबई के मीठीबाई कालेज की छात्रा पार्वती को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। उन्होंने आगे बढ़कर रूसी सुंदरी को बधाई दी। तीसरे स्थान पर त्रिनिदाद व टोबैगो की गैब्रियल वाल्काट रहीं।
गत विजेता चीन की झांग जी लिन ने सेन्या को मिस वर्ल्ड ताज पहनाया। प्रतियोगिता का टाप माडल अवार्ड भी 21 वर्षीय सेन्या के खाते में गया। स्विमसूट राउंड में वह तीसरे स्थान पर रहीं। इस सवाल पर कि उन्हें मिस वर्ल्ड ताज क्यों मिलना चाहिए? सेन्या ने कहा, 'मेरा मानना है कि मैं लोगों की मदद कर सकती हूं और मैं लोगों की मदद करना चाहती हूं। यदि मुझे यह खिताब मिला तो मैं ऐसा जरूर करूंगी।' दक्षिण अफ्रीका में छठी बार आयोजित हुई इस प्रतियोगिता में दुनिया भर की 109 सुंदरियों ने हिस्सा लिया। दक्षिण अफ्रीकी प्रतियोगी टेनसी कोएत्जी अंतिम पांच में पहुंचने में कामयाब रहीं। प्रतियोगिता का 187 देशों में सीधा प्रसारण किया गया।
उल्लेखनीय है कि अब तक भारत की पांच सुंदरियां मिस वर्ल्ड बनी हैं। रीता फारिया [1966], ऐश्वर्या राय [1994], डायना हेडन [1997], युक्ता मुखी [1999] और प्रियंका चोपड़ा [2000] में यह खिताब पाने में कामयाब रही थीं।
Friday, December 12, 2008
प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट से बेकार अफसरों पर गिरेगी गाज, अवसर भी किए कम
50 किलोमीटर लम्बी मानव श्रृंखला ने दिया आतंकवाद को मुंहतोड जवाब
Thursday, December 11, 2008
राजनेताओं के वक्तव्य से समाज में पैदा होती है खाई : कलाम
भारत पाकिस्तान में युद्ध की कोई संभावना नहीं : अमेरिका
अमेरिका ने कहा है कि मुंबई में आतंकवादी हमले के बाद हालांकि भारत या पाकिस्तान में से किसी भी पक्ष ने युद्ध की बात नहीं की है लेकिन स्थिति काफी खतरनाक हो गई है और पाकिस्तान को कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। राइस ने कहा, 'भारत को मेरा यह भी संदेश था कि ऐसी कोई भी चीज नहीं हो जो स्थिति को बदतर बनाए अथवा नहीं चाहते हुए भी ऐसी स्थिति पैदा हो जो उस क्षेत्र की स्थिरता के लिए अच्छा नहीं हो
विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा, 'मैंने किसी भी (भारत या पाकिस्तान) सरकार से युद्ध की बात नहीं सुनी है। संयोग से हम 2001-02 की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं जब दोनों देश युद्ध के मुहाने तक पहुंच गए थे। दोनों देशों ने अपने रिश्ते सुधारने के लिए काफी काम किए है।'उन्होंने कहा, 'स्पष्ट रूप से अमेरिका का भारत एवं पाकिस्तान से 2001-02 की तुलना में संबंध बेहतर हुए हैं लेकिन स्थिति अभी खतरनाक है और पाकिस्तान को ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है।'अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा कि आतंकी हमले के बाद भारत के उनके दौरे का मकसद भारत के लोगों, वहां की सरकार एवं खासकर मुंबई के लोगों के साथ एकजुटता एवं समर्थन के प्रति कड़ा संदेश देना था। यह एक दु:साहसिक हमला एवं एक घृणित अपराध था।पाकिस्तानी दौरे के बारे में राइस ने कहा, 'मैं फिर पाकिस्तान गई वहां की लोकतांत्रिक सरकार का ध्यान दिलाने और मैं सोचती हूं कि वह सरकार आतंकवाद को लेकर सही कदम उठाना चाहती है।' कोंडोलीजा राइस ने कहा, 'यह कार्रवाई करने का समय है। वास्तविकता यह है कि सरकार से इतर संगठनों द्वारा पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल इस तरह के हमले के लिए किया गया जिसमें अमेरिका के नागरिक भी मारे जाते हैं यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय है।'विदेश मंत्री से पूछा गया कि उन्होंने भारत से आतंकवाद से मुकाबले के लिए समुचित कदम के बारे में क्या कहा। उन्होंने कहा, 'मैंने उसने वह कदम उठाने के बारे में कहा जिससे कुछ लक्ष्य हासिल हो सके। ये लक्ष्य हैं सूत्रधारों को न्याय के कटघरे में लाना और आइंदा हमले रोकना।'
मन में मतभेद भले ही आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट होंगे सांसद
Wednesday, December 10, 2008
सावधान भारत में घूम रहे 20 और आतंवादी : मुम्बई पुलिस
कुम्भलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 21 से
Tuesday, December 9, 2008
मुम्बई पुलिस ने जारी की आतंवादियों की फोटो
पाकिस्तान नहीं सौपेंगा पकडे गए आतंकवादियों को
Monday, December 8, 2008
कंधार विमान अपहरण काण्ड का मुख्य आरोपी अजहर मसूद पाकिस्तान में नजरबंद
अमेरिका पर हुए हमले के बाद भी अजहर को नजरबंद कर दिया गया था। बाद में लाहौर हाई कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया था। गौरतलब है कि मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों का पाकिस्तान पर वहां पनाह पाए आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का भारी दबाव है।
इसी के चलते पाकिस्तान आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैबा के खिलाफ कार्रवाई करने पर मजबूर हुआ। मुंबई टेरर अटैक के पीछे लश्कर का हाथ होने के ठोस सबूत मिले थे। पाकिस्तानी आर्मी ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में लश्कर और इसके फ्रंट ऑर्गनाइजेशन जमात-उद-दावा के खिलाफ गुप्त कार्रवाई करते हुए इसके कई सदस्यों को गिरफ्तार किया था।
मुम्बई में आतंकवाद मामले में पांच आतंकवादी अब भी फरार
सुरक्षा के प्रति दलित है आशंकित कैसे लेंगे सरकारी योजनाओं का लाभ?
शोषण एवं अत्याचार के शिकार दलित वर्ग द्वारा जब कभी आवाज उठाई भी जाती है तो उसे या तो दबा दिया जाता है या पुलिस एवं प्रशासन की साठगांठ से उसे पूर्णतया झूठा साबित कर उसे सदा के लिए लालफीतों में बांध दिया जाता है जिससे शोषित पीड़ित वर्ग अपनी पीड़ा पर आंसू बहाने से यादा कुछ नहीं कर सकता है।
राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा संयोजक सोहन लाल भाटी ने हाल ही में सूचना का अधिकार के तहत राजस्थान राय के राजसमन्द जिला पुलिस से पिछले तीन वर्षो के दौरान अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामले और उनकी स्थिति के बारे में जो आंकडे प्राप्त किए वह काफी चौंकाने वाले है।
विगत तीन वर्षो में राजसमन्द जिले में इस अधिनियम के तहत 112 मामले दर्ज हुए जिनमें से 39 मामलों में पुलिस ने जांच कर चालान प्रस्तुत किया जबकि 53 मामले जांच के उपरांत झूठे पाए गए। वहीं 20 मामलों में अनुसंधान जारी, आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने तथा तथ्यात्मक भूल से सम्बन्धित रहे।
राजसमन्द जिले के 12 थानों के अनुसार यह आंकडे देखे जाए तो राजनगर थाने में इन तीन वर्षो में 20 मामले दर्ज हुए जिनमें से आठ में चालान और 11 झूठे, आमेट थाने में छह मामलों में से चार में चालान व एक झूठा, चारभुजा थाने में तीन में से एक में चालान, दो झूठे, केलवाड़ा थाने में दर्ज छह मामलों में सभी झूठे, कुंवारिया में चार मामलों में से दो में चालान, एक झूठा, नाथद्वारा में 15 मामलों में चार में चालान, नौ झूठे, रेलमगरा में 27 मामलों में मात्र दस में चालान, नौ झूठे, खमनोर में नौ में से एक में चालान पांच झूठे, देवगढ में आठ में से दो में चालान चार झूठे, दिवेर थाना एक मात्र ऐसा थाना रहा जहां दर्ज दो मामलों की जांच के उपरांत अदालत में चालान पेश हुआ। देलवाड़ा थाने में तीन में से एक में चालान, दो में अनुसंधान शेष, भीम थाने में आठ में से तीन में चालान, चार झूठे और केलवा थाने में दर्ज एक मामले का अनुसंधान जारी है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय दलित मानवाधिकारी अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी का कहना है कि दलित वर्ग जब कभी शोषण और अत्याचार से पीड़ित होता है तो वह सीधे थाने में शिकायत दर्ज करवाता है लेकिन वहां पुलिस उसे झूठी सांत्वना देते हुए निर्धारित अधिनियम में मामला दर्ज करने की बजाय छोटी-छोटी धाराओं में मामला दर्ज कर देती है। भाटी के अनुसार थानों में मामले दर्ज नहीं होने के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक हथकण्डे भी जिम्मेदार है। भाटी के अनुसार राजनेता भी क्षेत्र में साख जमाने के लिए वहीं प्रशासनिक अधिकारी क्षेत्र में शांति व्यवस्था बिगड़ने के भय से अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने में हिचकते है। वहीं मामला दर्ज होने के बाद उसकी जांच सामान्य तौर पर की जाती है। ऐसे में पीड़ित वर्ग को न्याय नहीं मिल पाता है और सदा वह अपनी सुरक्षा के प्रति आशंकित रहता है।
Sunday, December 7, 2008
चांद पर जाना चाहते है तो योग करना सिखिए
गोविंद बन गया गोविंदा
गोविंद के बदले हुलिए और मजदूरी करते हुए देखने से उसकी विधवा मां मोहनी बाई और भाई मोहन की आंखे खुशी के मारे नम हो जाती है और बार-बार उनके मुंह से गोविंद को नया रूप देने वाले रेडक्रोस के मानद सचिव राजकुमार दक, सजन मार्बल के सेठजी किशोर सिंह मेड़तिया, मंत्री मार्बल के ओमप्रकाश मंत्री तथा रमेश चोरडिया और देवेन्द्र सिंघवी एवं साथी मजदूरों के लिए दुआएं ही निकलती है।
करीब एक माह पूर्व राजसमन्द-मोरचणा मार्ग पर अर्ध्द विक्षिप्त अवस्था और मैले-कुचैले कपड़ों में घूम रहे ग्राम पंचायत पसूंद निवासी गोविंद पुत्र प्रेमदास वैष्णव पर रेडक्रोस के मानद सचिव राजकुमार दक की नजर पड़ी और उन्होंने निरंतर उस निगाह रखते हुए जानकारी एकत्र कर उसे इस नारकिय जीवन की बजाय आम इंसान बनाने की जिम्मेदारी ली। राजकुमार दक को जानकारी हुई कि गोविंद की मां मोहनी बाई सजन मार्बल में मजदूरी करती है जबकि एक भाई हाथ ठेला चलाता है। राजकुमार दक ने जब इन दोनों से सम्पर्क किया तो उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर बताते हुए गोविंद का इलाज करवाने में असहाय बताया। यहां तक कि गोविंद के भाई मोहन ने तंगहाली के कारण गोविंद की सेवाश्रुषा में समय तक देने में असमर्थता जाहिर की।
राजकुमार दक ने हाथ ठेला चलाने वाले मोहन को एक माह तक ठेला चलाने से होने वाली आमदनी एक मुश्त देते हुए मोहन को गोविंद की सेवाश्रुषा के लिए राजी कर लिया। वहीं सजन मार्बल के किशोर सिंह मेड़तिया को भी गोविंद को उसकी मां मोहनी के साथ फैक्ट्री परिसर में रखने की इजाजत दे दी। गोविंद के इलाज के लिए राजकुमार दक ने डॉ. एच.सी. सोनी से गोविंद का तीन बार परामर्श किया जबकि नियमित जांच करवाया गया। राजकुमार दक के अनुसार शुरूआती दौर में गोविंद को दवा देने में काफी परेशानी हुई इस पर उसे चाय के साथ दवा दी गई लेकिन उसके बाद वह खुद ही दवा लेने लगा। इस दौरान गोविंद के बालों की कटिंग करवा, नियमित शेविंग और स्नान करवाने से उसका हुलिया बदल गया। राजकुमार दक बताते है कि गोविंद को नशे की आदत थी लेकिन फैक्ट्री परिसर में सभी की निगरानी और मानवीय व्यवहार होने से न केवल उसके नशे की आदत छूट गई बल्कि वह अपनी जिंदगी के बारे में सकारात्मक भी सोचने लगा।
पहली कमाई से चमकी आंखे : पूर्णतया सामान्य हो चुके गोविंद ने गत पांच दिसम्बर को पहली बार मजदूरी के तौर पर हाथ ठेला चलाया तो उसे चालीस रुपए मिले। अपनी कमाई के रुपए देख कर गोविंद की आंखों में चमक आ गई जबकि उसकी मां मोहनी व भाई मोहन गोविंद की कमाई को देख उसके बारे में सपने संजोने लगे है।
गोविंद ने किया मतदान : विधानसभा चुनाव के तहत गत चार दिसम्बर को गोविंद का भाई मोहन जब मतदान के लिए गया तो उसे ज्ञात हुआ कि उसका नाम को मतदाता सूची में नहीं है जबकि गोविंद का नाम है। गोविंद के पास फोटो पहचान पत्र नहीं होने से मतदान करने से हिचक रहा था। इसी बीच राजकुमार दक को इसकी जानकारी होने पर वह गोविंद को लेकर निर्धारित बूथ पर पहुंचे और पीठासीन अधिकारी के समक्ष पहचान के अन्य दस्तावेज प्रस्तुत कर गोविंद से मतदान करवाया।
आईएसआई के पूर्व अधिकारियों ने रची साजिश
Saturday, December 6, 2008
प्रेस की आजादी में हस्तक्षेप
गिल्ड का कहना है कि जनता को सूचना मुहैया कराना मीडिया का अहम फर्ज है और चुनाव पूर्व सर्वेक्षण का प्रकाशन-प्रसारण भी इसी का एक हिस्सा है। इसमें नेताओं के भाषण, पार्टियों के घोषणापत्र, नीतियां, विचार विश्लेषण, ट्रेंड आदि विस्तार से कवर किए जाते हैं। इस तरह की विविध जानकारियों के आधार पर जनता को अपना मन बनाने में काफी मदद मिलती है।
गिल्ड के मुताबिक चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षण के प्रसारण-प्रकाशन पर रोक से मतदाताओं को सूचना पाने के उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। गिल्ड ने सरकार के इस मत को सिरे से खारिज कर दिया कि चुनाव के दौरान एग्जिट पोल दिखाने या छापने से चुनावी प्रक्रिया पर गलत असर पड़ेगा। गिल्ड ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह एग्जिट पोल के प्रकाशन-प्रसारण को रोकने के लिए चुनाव कानून में संशोधन के प्रस्ताव पर अमल नहीं करे।
आतंकवादी से ज्यादा खतरनाक है मीडिया
मीडिया हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि केवल वह ही जनता के हितों का ध्यान रखता है भले ही वह यह काम खासतौर से इसी आशय से नहीं करता हो, लेकिन उसके हावभाव ऐसे ही होते हैं और इसी वजह से लोग उस पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेते हैं। यह अंधा अंधे को राह दिखाये का एक नायाब नमूना है। इसका परिणाम बहुत बार हास्यास्पद भी होता है।वह कहते हैं कि मुझे हैरत होती है कि जब देश आतंकवाद की ऐसी त्रासदी से जूझ रहा था तब एक फिल्म निर्माता की किसी स्थान पर उपस्थिति जैसी बेतुकी बात को प्रसारित करने में मीडिया इतना वक्त बर्बाद कर सकता है।समझ में नहीं आता कि जब इतना कुछ चल रहा है तब यह बात किसी को और कैसे प्रभावित कर सकती है। वर्मा ने लिखा है कि टीवी चैनलों को वह फुटेज मुहैया कराए गए थे, जिन्हें विलासराव की टीम ने शूट किया था। इन दृश्यों को चैनलों पर बार-बार दिखाया गया और सवाल किया गया कि मैं वहां क्यों गया। विलासराव मुझे क्यों साथ ले गए, जो कुछ हमने ताज में देखा वह सब टीवी पर पहले भी कई बार दिखाया जा चुका था।अगर मुझे उस पर फिल्म बनानी होती तो क्या मैं देखे हुए घटनाक्रम को देखने जाता। कुछ चैनलों ने यहां तक कह दिया कि हमने वहां कुछ छेड़छाड़ की। अगर सचमुच ऐसा था तो सुरक्षा अधिकारी हमें रोक सकते थे।वर्मा के अनुसार विलासराव से मेरा कोई औपचारिक परिचय भी नहीं है। रितेश को सिर्फ इतनी जानकारी थी कि ताज के जिन हिस्सों की जांच हो चुकी है उन्हें ही हम देख सकते हैं। उनके अनुसार जब हम ताज पहुंचे तो वहां पुलिस अधिकारियों, सरकारी अधिकारियों और होटल के कर्मचारियों सहित 60 से 70 लोग थे। इस भीड़ में मुझे नहीं लगता कि विलासराव का ध्यान मुझ पर गया होगा। मैं उस जगह को देख रहा था जहां सर्वाधिक भयावह घटना हुई थी। ऐसा कौन होगा जिसे उस स्थान को देखने की उत्सुकता नहीं होगी। वर्मा सवाल करते हैं कि उनके ताज जाने से क्या प्रभावित हो सकता था। अगर उनके कारण सुरक्षा नियमों का उल्लंघन होता या उनकी वजह से कोई समस्या होती तो उन्हें सुरक्षा अधिकारी रोक सकते थे। अधिकारियों ने उन्हें इसलिए नहीं रोका क्योंकि उन लोगों को वह हिस्से दिखाए गए जहां जांच हो चुकी थी। इन हिस्सों के फुटेज टीवी पर कई बार दिखाई जा चुकी थी।
खुफिया तंत्र को सशक्त बनाने की आवश्यकता : चिदांबरम
ट्रक नहीं आता तो बघेरा बना लेता उन्हें शिकार
Wednesday, December 3, 2008
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ. जोशी के क्षेत्र में सात भाजपाइयो पर जानलेवा हमला
कांग्रेस ने फिर साबित कर दिया लोकतंत्र पर हावी है नोट तंत्र
खाखलिया खेड़ा भील बस्ती में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा वोट के लिये नोट बांटने की जानकारी मिलने पर कुवारियां पुलिस ने र्स्कोपियो गाड़ी व उसमें काफी मात्रा में नोट जब्त किये है।कुंवारिया थानान्तर्गत खाखलिया खेड़ा भील बस्ती में भाजपा कार्यकर्ता प्रचार कर रहे थे। इस दौरान राजनगर की तरफ से एक र्स्कोपियो गाड़ी आई जिसमें 4-5 कांगेस कार्यकर्ता सवार थे। भाजपा कार्यकर्ता कुंवारिया निवासी मुकेश शर्मा को गाड़ी में सवार लोगों के पास रूपये देख संदेह हुआ। इस पर वे गाड़ी के पास गये । दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी इसकी भनक लग गई थी जिस पर वे भी सावचेत हो गये। कुछ देर बाद दोनों पार्टी के कार्यकर्ताओं में वोट के लिये नोट बांटने की बात को लेकर जोरदार गहमा-गहमी हो गई। इसकी सूचना पर कुवारियां थानाधिकारी गोपाल चन्देल भी घटनास्थल पहुंच गये। पुलिस ने गाड़ी की तलाशी ली जिसमें काफी मात्रा में रूपये पाये गये। पुलिस ने गाड़ी व नोट जब्त कर अग्रिम जांच शुरू कर दी।इस मामले में भाजपा कार्यकर्ता मुकेश शर्मा ने कांग्रेस के सलीम खान, शफी मोहम्मद सहित 4-5 जनों के खिलाफ बस्ती में वोट के लिये नोट बांटने का आरोप लगाते हुये मुकदमा दर्ज कराया।राजसमंद डिप्टी मनीष त्रिपाठी ने बताया कि गाड़ी को जब्त कर लिया गया है। इस मामले की जांच की जा रही है तथा नोट कितने है उनकी गिनती जारी है।
कई वरिष्ठ नेताओं के लबोलुआब पर यह बात निकलती है कि राजनीति गंदी है इसमें जाने वाला दल-दल में फंसता जाता है और इससे पल्ला झाड़ना ही ठीक रहता है लेकिन यह कितना सही है? राजनीति गंदी नहीं है बल्कि इसे गंदा बनाया गया है। राजनीति को लक्ष्य बनाया गया मात्र सत्ता प्राप्त करने को। कुर्सी के लिए नेता किसी का भी अहित कर सकते है या भुजबल और बाहुबल से युक्त लोगों की मक्खन पॉलीस करते नजर आएंगे। ऐसे में सबसे यादा अहित होता है उस मतदाता का जिसने कितनी उम्मीद से उस व्यक्ति को चुना जो उसे एक विकासशील अर्थव्यवस्था, शांतिपूर्ण माहौल दे सके। यहां चाणक्य की राजनीति की बात करना भी जरूरी समझता हूं जिसने चंद्रगुप्त को नंद वंश के उन्नमूलन के लिए इसलिए तैयार किया था ताकि जनता को एक अत्याचारी और दुष्ट शासक से छुटकारा मिल सके और जनता को सुरक्षा व स्वाभिमानपूर्ण जिंदगी बसर करने में कोई परेशानी नहीं हो। जनता वह घटना अब तक नहीं भूली जब संसद में उदयपुर संभाग के सांसद महावीर भगोरा सहित तीन सांसदों ने संसद में नोटों से भरे बैग रखे। बकौल महावीर भगोरा और अन्य सांसद कांग्रेस ने संसद में विश्वास मत हासिल करने के लिए उन्हें नोट दिए। यदि राजनीतिज्ञों ने अपना यही दागनुमा चेहरा बार-बार मतदाताओं के सामने किया तो क्या मतदाता उन्हें माफ करेंगे। मुम्बई में हुई आतंकवादी घटना के बाद से जनता यह समझ चुकी है कि नेता सिर्फ सत्ता के लिए लड रहे है आतंकवाद और देश के अन्य गंभीर मुद्दों से उन्हें कोई लेना देना नहीं है।
Sunday, November 30, 2008
बडे साब और उनकी बेटी ने खुशी दी गरीब अनाथ बच्चों को
लालन ने द्वारकाधीश के साथ अरोगा छप्पन भोग
Saturday, November 29, 2008
लोक लुभावन घोषणाएं क्या देगी राजस्थान को
पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान का नाम विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त है। भारत आने वाले दस विदेशी पर्यटकों में से आठ राजस्थान की प्राचीन संस्कृति और धरोहर को देखने जरूर आते है। विदेशी लोगों के यहां आने से सत्ता में रहने वाली सरकार को वित्तीय दृष्टि से फायदा तो बहुत हुआ लेकिन कभी सरकार ने राजस्थान की प्राचीन धरोहर को संवारने और जर्जर होती पुरा सम्पदा को संजोने में कोई रूचि नहीं दिखाई। यहां तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इसे घोषणा पत्र में स्थान देना भी जरूरी नहीं समझा। यही हाल राजस्थानी भाषा का है। राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति ने चुनाव की घोषणा से पूर्व राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से अपने घोषणा पत्र में राजस्थानी भाषा की मान्यता के सम्बन्ध में घोषणा करवाने का आग्रह किया, अपनी चुनाव प्रचार सामग्री भी राजस्थानी भाषा में प्रकाशित करवाने का आग्रह किया लेकिन अफसोस किसी पार्टी ने इस और ध्यान नहीं दिया।
लम्बी बीमारी से निजात मिली श्रीलाल को
आठवीं कक्षा मे अध्ययनरत श्रीलाल लम्बे समय से फेफड़े की बीमारी हाइडेटिड सिस्ट से ग्रसित था। मजदूरी से पेट भरने वाला परिवार आर्थिक बोझ तले जैसे तैसे स्थानीय चिकित्सको से इलाज करवा रहा था लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। पिछले दिनाें परिजनाें ने राजकुमार दक से सम्पर्क करने पर उन्होने कमला नेहरू चिकित्सालय के डॉ भूपेश परतानी एवं आरके चिकित्सालय के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ ललित पुरोहित से चिकित्सा परामर्श लिया। सोनोग्राफी करने पर मालूम चला कि बालक के दाएं फेफडे में पानी भरा पड़ा है एवं सिकुड़ गया है जिसका इलाज ऑपरेशन से ही सम्भव है एवं वह उदयपुर(राजस्थान) हो सकता था।
ऐसी स्थिति में दक ने उन्हें महाराणा भूपाल चिकित्सालय के ह्दय रोग विशेषज्ञ डॉ विनय नैथानी के पास भिजवाया जिन्होनें एक घंटे के अथक परिश्रम से उसके फेफडे के पास बनी पानी की थेली को शल्य चिकित्सा कर बाहर निकाली एवं फेफडे को सामान्य तरह से कार्य करने योग्य फुलाया। दक ने बताया कि इस ऑपरेशन में डॉ नैथानी ने पूर्ण मानवीयता का परिचय दिया एवं तुरन्त ऑपरेशन कर हर सम्भव सहयोग प्रदान किया।
डॉ नैथानी के अनुसार बालक को समय पर इलाज मिल जाने से उसकी जान बच गई अन्यथा ऐसे प्रकरण में थेली फटने पर टोक्सीन शरीर में फैल जाता है जिससे रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।
Wednesday, November 26, 2008
सरहदों से पार आई संगीत की बहार
संगीत का यही जादू इन दिनों नजमुल निशा को जर्मनी से उदयपुर खींच लाया। लेखिका और पेशे से पत्रकार नजमुल भारतीय क्लासिकल संगीत से बहुत प्रभावित है। उन्होंने भारतीय क्लासिकल म्युजिक के व्यापक प्रचार प्रचार के लिए बर्लिन में टैगोर इंसटिनी अकादमी भी खोल रखी है। बांगला भाषी नजमुल ने भारत में खुद को प्यारी का उपनाम दिया है। ढाका में जन्मी नजमुल निशा ने बांगलादेश की बुलबुल अकादमी से टैगोर संगीत की बारिकियां सीखी। सन 1980 में बर्लिन में बतौर रेडियो जर्नलिस्ट काम करने का सोचा और जर्मन रेडियों एण्ड टेलीविजन में एडिटर का पद संभाला। इसके बाद भी वह अपने संगीत प्रेम को नहीं छोड़ पाई। उन्होंने बांगला में कई कविताएं भी लिखी। कविताओं की क्वालिटी के दम पर पिछले वर्ष जून माह में लंदन पोयट्री फेस्टीवल तथा इससे पहले न्यूयार्क के बुक फेयर में भाग लिया। हाल ही में कोलकता में आयोजित फिल्म फेस्टीवल में बतौर विशिष्ट अतिथि शरीक हुई।
नजमूल ने उदयपुर स्थित बोस म्यूजिक एकेडमी के बारे में अपने कई जर्मन दोस्तों से सुना तो सम्पर्क किया और वह इसके संस्थापक पंडित आरके बोस से मिलने उदयपुर आई। नजमूल ने बताया कि जर्मनी में इंडियन क्लासिकल म्यूजिक तथा सितार व तबला जैसे वाद्ययंत्रों को सिखाने के लिए यादा रुचि लेते है। उनके संस्थान में भारतीयों के मुकाबले स्थानीय लोगों की संख्या यादा है। स्वतंत्र पत्रकार के रूप में न्यूयार्क और कोलकता के विभिन्न समाचार पत्रों में लिखने वाली नजमूल निशा लेखन और अनुवाद में रुचि रखती है। सन 2005 में साहित्य नोबल पुरस्कार विजेता एल्फ्रेडो जोलिनेक के उपन्यास को इन दिनों वह बांगला में अनुवादित कर रही है।
Sunday, November 23, 2008
जन्मजात नेत्रहीन अनिता को मिला नया जीवन
सितम्बर माह में जिला कलक्टर नवीन जैन ने सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत ऐसे बालका को चिन्हित करने के निर्देश दिए जिन्हें विशिष्ट आवश्यकता है। ऐसे में सर्व शिक्षा के जिला परियोजना समन्वयक शंकर लाल सनाढय व सन्दर्भ शिक्षक प्रमेन्द्र जावडिया के मार्फत बालिका अनिता की जानकारी मिली तो उन्होने तुरन्त ही बालिका को परामर्श के लिए अलख नयन नेत्र मंदिर उदयपुर (राजस्थान) के चिकित्सक डॉ एचएस चुण्डावत के पास एम्बूलेंस से भिजवाया जहां डॉ चुण्डावत एवं डॉ एल एस झाला ने उपचार शुरू किया। फेको पध्दति से 23 अक्टूबर को एक आंख का ऑपरेशन किया गया तो परिजनो की खुशी का पारावार नहीं रहा जब पट्टी खुलने पर पहली बार उसने इस दुनियां को देखा। उसकी दूसरी आंख का ऑपरेशन 17 नवम्बर को किया गया और यह भी पूर्णत: सफल रहा। अनिता से पहले अंगुलिया की गिनती करवाई गई अब अनिता दोनो आंखो से सकुशल देख रही है। अनिता के परिजनों की कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए अलख नयन मंदिर के डॉ एचएस चुण्डावत ने ऑपरेशन खर्च लगभग पच्चीस हजार रुपया पूर्णत: माफ कर दिया। डॉ चुण्डावत का कहना है कि ऐसे रोगी अज्ञानतावश एवं आर्थिक तंगी से अपना समुचित इलाज नहीं करवा पाते है। यदि इसका ऑपरेशन कुछ वर्ष पूर्व हो जाता तो उसकी नजर की गुणवत्ता और अच्छी होती। अनिता को रोशनी मिलने पर पूरे परिवार व स्कूल में खुशी का माहौल है।राजकुमार दक ने बताया कि जिला कलक्टर नवीन जैन की प्रेरणा पर ऐसे और बच्चों की पहचान कर उनके समुचित इलाज की व्यवस्था की जा रही है।
Saturday, November 22, 2008
मीडिया जनमत जगा रहा है या जनमत को बरगला रहा है
बात यहां लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ समाचार पत्र और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ओर से निभाई जा रही प्रामाणिक भूमिका की नहीं है। यहां बात हो रही है पूर्णतया व्यावसायिक बनते जा रहे मीडिया की भूमिका के बारे में है। विधानसभा चुनाव का दौर चल रहा है ऐसे में मीडिया के विज्ञापन प्रतिनिधि चुनाव में खडे हुए प्रत्याशी से विज्ञापन लेते है या प्रत्याशी के विज्ञापन प्रकाशित करते है। इसमें कोई बुराई नहीं है। चूंकि यह सर्वमान्य है कि समाचार पत्र और मीडिया विज्ञापन की कमाई से अपना अधिकांश व्यय समायोजित करते है। विधानसभा चुनाव हो या नहीं हो दीपावली, होली या अन्य कोई विशेष अवसर पर समाचार पत्र विज्ञापन के परिशिष्ट निकालने की परम्परा चल पडी है जो भी बुरी बात नहीं है क्याेंकि जनता समाचारों के साथ विज्ञापन का महत्व समझने लगी है।
राजस्थान के विधानसभा चुनावों में मीडिया के कतिपय लोगों ने एक और नई परिपाटी शुरू की है। जिसका उदाहरण प्रतापगढ जिले के बड़ी सादडी विधानसभा क्षेत्र में गत दिनों एक प्रत्याशी ने पेश किया। प्रत्याशी ने एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया और उसमें अपने प्रचारात्मक सामग्री देते हुए प्रत्येक पत्रकार से उसे छापने का आह्वान किया। सम्मेलन में शरीक हुए पत्रकारों के मुताबिक प्रत्येक पत्रकार को उक्त प्रचार सामग्री प्रकाशन के लिए हजारों रुपए भी दिए गए। हालांकि एक बडे समाचार पत्र के प्रतिनिधि ने प्रत्याशी द्वारा दिए गए रुपए का विरोध करते हुए वापस उसी को लौटा दिए। उक्त प्रतिनिधि ने इस सम्बन्ध में अपनी समाचार डेस्क को अवगत भी कराया, जिस पर इस बडे समाचार पत्र ने पूरे राय के सभी संस्करणों के सम्पादकों को समाचार पत्र की आचार संहिता का उल्लेख करते हुए निर्देशित किया कि इस प्रकार की प्रचारात्मक सामग्री छापने से बचे। बतौर विज्ञापन भी उस प्रत्याशी को जनता का भगवान बनाने का प्रयास नहीं किया जाएं।
यहां तो बात उस समाचार पत्र की हुई जिसने मीडिया की आचार संहिता के मुताबिक ऐसे प्रचारात्मक तरीके को रोकने का प्रयास किया लेकिन बडी सादडी में घटी घटना का दूसरा दु:खद पहलु यह भी रहा कि कई समाचार पत्रों ने अपवादों को छोड़ दे तो उक्त प्रत्याशी की प्रचारात्मक सामग्री को हुबहु छाप दिया। हो सकता है कई पाठक और मीडियाकर्मी इस पर अपनी यह राय दे कि यह तो पहले भी चल रहा था इसमें नया क्या है? तो यहां मैं यह कहना चाहूंगा कि चुनाव के दौरान पहले प्रत्याशी छोटे-छोटे समाचार पत्र जिनमें से अधिकांश उनकी रहमोकरम पर चल रहे है वे ही उनकी प्रचार सामग्री को छापते थे लेकिन अब इसका रूप बदलने लगा है।
बड़ी सादडी में प्रत्याशी द्वारा की गई एक तुच्छ हरकत ने कतिपय मीडियाकर्मी को इस चुनाव में उपरी तौर पर अच्छी कमाई करने का मार्ग प्रशस्त भी कर दिया। इस घटना के बाद कतिपय मीडियाकर्मी उक्त प्रत्याशी के अलावा संभाग के विधानसभा क्षेत्रों मे खडे प्रत्याशी से मिलने-जुलने का काम शुरू कर दिया। प्रत्याशी के प्रचारात्मक एक पृष्ठ सामग्री के लिए लाखों रुपए के सौदे भी किए जा रहे है। कतिपय मीडियाकर्मी इन प्रत्याशियों से यह भी कहते नजर आते है कि विज्ञापन के तौर पर भी उनकी प्रचारात्मक सामग्री लग सकती है लेकिन इसमें जो व्यय होगा वह उसके चुनाव खर्च में जुडेग़ा और इसका नुकसान भी उसे होगा। विधानसभा चुनाव में खडे होने वाले प्रत्याशी को अधिकतम दस लाख रुपए खर्च करने की अनुमति है। स्वाभाविक तौर पर प्रत्याशी अधिकतम दस लाख रुपए से कई गुना अधिक खर्च करते है लेकिन खर्चा पेश करते वक्त दस लाख से कम के बिल और अन्य दस्तावेज पेश करते है। कतिपय मीडियाकर्मी इस कमजोरी का फायदा उठा कर अपनी स्वार्थ सिध्द कर रहे है।
मीडिया में पाठक समाचार इसलिए पढ़ते और देखते है ताकि वह अपनी राय बना सके लेकिन इस तरह किसी प्रत्याशी का डंका बजाना क्या न्यायोचित है? क्या इसके माध्यम से समाचार पत्र जनमत को जगा सकेंगे?
Friday, November 21, 2008
आर्थिक स्वतंत्रता के दौर में लूट न जाए आपके उसूल
समाचार पत्रों में आए दिन सहकर्मी द्वारा महिला के साथ अभद्रता करने या यौन दुराचार करने की घटनाएं छपती है। वही इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा अपराध पर बनाए गए विशिष्ट कार्यक्रमों में इसे प्रमुखता देते है। हालांकि समाचार पत्र अपनी आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए अभद्रता और यौन दुराचार की शिकार हुई महिलाओं का नाम प्रकाशित नहीं करते है वही इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी पीडिता का चेहरा धुंधला कर दिखाने की परम्परा है। यहां सवाल पीडिता का चेहरा दिखाने या उसका नाम प्रकाशित करने का नहीं है अपितु आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर दहलीज से बाहर निकली महिलाओं को अपनी आचार संहिता और उसूलों पर कायम रहने का है। चूंकि मीडिया अपने उसूलों के तहत महिला चाहे व दोषी हो या न हो उसका नाम इसलिए नहीं उजागर करता क्योंकि एक महिला बदनाम होने के बाद उसे समाज और उस परिवेश के लोग जहां वह काम कर रही है, तुच्छ नजरों से ही देखते है।
बात जब निकली है कामकाजी महिलाओं की आचार संहिता की और उसके उसूलों की तो सबसे पहले उल्लेख करना होगा भारतीय संस्कृति में लागू परदा प्रथा की। चौंकने की जरूरत नहीं है और यहां हम यह भी नहीं कह रहे कि महिलाएं लम्बा सा घूंघट डालकर अपने कार्यस्थल पर जाएं बल्कि भारतीय संस्कृति में पुरातनवादी लोगों ने परदा प्रथा इसलिए शुरू की थी कि महिलाएं घर में रहे या बाहर निकले उसे अपनी मर्यादा की जानकारी रहे लेकिन शनै-शनै इस प्रथा ने विकृत रूप ले लिया और लोग घर की महिलाओं को लम्बे-लम्बे घूंघट निकालने पर मजबूर कर दिया। वर्तमान में घूंघट निकालना एक गैर वाजिब परम्परा माना जाता है और स्वाभाविक भी है कि कामकाजी महिलाएं यदि घूंघट निकाल कर बैठेगी तो वह काम क्या करेगी?
दूसरा उसूल हो अपनी बात और कमजोरी अपने तक सीमित रखने की क्षमता। प्राय: यह देखा जाता है कि महिलाएं अपने घर-परिवार में होने वाली अच्छी-बुरी बातों को अपने सहकर्मियों को साथ शेयर करती है। बातों को कहने के दौरान कई बार वह अपनी कमजोरी भी उजागर कर देती है इससे पुरूष सहकर्मी महिला की कमजोरी का फायदा उठाने का प्रयास करता है। तीसरा उसूल हो भारतीय संस्कृति अनुरूप कपडे पहने जाए। यहां लोग प्रश्न यह भी कर सकते है कि क्या साड़ी और सलवार पहनने वाली महिलाओं के साथ अभद्रता नहीं होती? आमतौर पर इन प्रश्नों का जवाब हां में हो सकता है लेकिन यह भी देखना होगा कि साडी और सलवार पहनने वाली महिलाओं के साथ होने वाली अभद्रता उन युवतियों के मुकाबले कम होती है जो स्कर्ट और फैशनेबल कपडे पहनती है। हाल ही में दिल्ली की एक स्वयंसेवी संस्था ने दिल्ली और नोएडा परिक्षेत्र में किए सर्वे में इसका बात का उल्लेख किया है कि सड़कों और बाजारों में अभद्रता की शिकार अधिकांश वह युवतियां होती जिन्होंने पाश्चात्य संस्कृति के अनुरूप कम कपडे पहन रखे है। सर्वे के अनुसार कम कपड़ों की वजह से मनचले युवतियों से सटने या उन पर फिकरे कसते है।
Thursday, November 20, 2008
कही तबाह न हो जाए लाइव इन रिलेशनशिप से
भारतीय धर्म शास्त्रों का अवलोकन करें तो स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि विवाह भी सामाजिक परम्परा की धार्मिक अनुपालना है। बिना विवाह के संतान को धर्मशास्त्र भी पहचान नहीं देते। भारत के धर्मशास्त्रों में यहां तक उल्लेख है कि कुछ ऋषि-मुनियों को भी विवाह के लिए तपस्या करते हुए अनुपालना करनी पड़ी है। वहीं पौराणिक मान्यता यह भी है कि बिना विवाह स्वर्ग या मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण करने से पहले इसके व्यावहारिक और भावी परिणामों पर भी दूरदर्शिता पूर्ण विचार किया जाना चाहिए। लम्बे समय तक एक ही छत के नीचे रहना और पति-पत्नी का आचरण करना कहां तक न्याय संगत है। मानवीय प्रकृति के अनुसार एक ही व्यक्ति समय-समय पर एक से अधिक महिलाओं के साथ रहता है तो किस महिला को उसकी वास्तविक संगीनी माना जाएगा। सरकार ने कानूनी रूप से विवाह का पंजीकरण आवश्यक कर दिया है तो ऐसे साथ रहने वाले जोड़ों को सरकार मान्यता देकर उनका पंजीकरण कर सकती है?
स्वतंत्र प्रकृति की महिलाओं का यह भी मानना है कि पुरूष प्रधानता और पुरूष की निरंकुशता को समाप्त करने में लाइव इन रिलेशनशिप सहायक साबित हो सकता है और महिला को शोषण से मुक्ति मिलेगी लेकिन इस बात को कौन दावे से कह सकता है कि लाइव इन रिलेशनशिप से पुरूष की मंशा में परिवर्तन हो सकता है। जरूरत है पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे इन लोगों को भारतीय पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए विचार करने की। अन्यथा लाइव इन रिलेशनशिप से परिवार ही टूटते है।
एडस और कैंसर के बाद पग पसार रहा है सीओपीडी रोग
विष्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीओपीडी वर्तमान में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है तथा पूर्वानुमान है कि सन् 2020 तक यह मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन सकेगा। प्रति वर्ष करीब 30 लाख लोग इस बीमारी से मौत के शिकार बन जाते है, एवं 40 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 10 प्रतिषत लोगों में इस बीमारी के होने की संभावना होती है। एक भारतीय सर्वे के अनुसार करीब 3.5 करोड लोग इस बीमारी से ग्रसित है। उन्होने बताया कि सीओपीडी रोग का प्रमुख कारण ध्रुमपान होता है, लेकिन प्रदूषण भी इसका प्रमुख जिम्मेदार घटक है। चूल्हों से निकलने वाले धुएं, फैक्ट्री व वाहनों से निकलने वाले धुएं से भी इस रोग के होने की आषंका हो सकती है। उन्होंने बताया कि सीओपीडी का प्रारंभिक अवस्था में निदान बहुत जरूरी है। प्रारंभिक निदान एवं बीमारी की गंभीरता नापने के लिए स्पाईरोमेट्री नामक टेस्ट का उपयोग किया जाता है। इससे फेफडे की क्षमता का पता लगाया जा सकता है। इस रोग में इनहेलर द्वारा दी जाने वाली दवाइयां अधिक कारगर व सुरक्षित रहती है।
Wednesday, November 19, 2008
बृजयात्रा कर वापस आए कल्याणराय जी
Monday, November 17, 2008
कांकरोली के द्वारकाधीश मंदिर में ब्रजानंद महोत्सव
Sunday, November 16, 2008
दामोदर दीक्षित आचार्य निरंजन नाथ पुरस्कार से सम्मानित
Saturday, November 15, 2008
विद्या के मंदिरों में सबक ही दलित वर्ग से घृणा का मिलता है
सर्व विदित है कि राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में दलित वर्ग को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनके हाथ से पानी पीना भी एक अपमान महसूस करने के बराबर माना जाता है। यही नहीं इन दलित वर्ग को मंदिर में दशन नहीं करने देने शादी के वक्त बिंदौली घोडे पर नहीं निकालने देने की गैर दलितों ने परम्परा कायम की वह बदस्तूर जारी है।
चिंताजनक स्थिति तब बन जाती है जब जिन विद्यालयों में बालक छुआछूत को पाप और अपराध है को सबक के रूप में पढता है वहां आज भी ग्रामीणों के दकियानुसी ख्यालात हावी है।
विद्यालयों में मिड डे मील योजना के तहत पकने वाले पोषाहार के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को प्राथमिकता देने के स्पष्ट निर्देश होने के बावजूद हालात इनसे परे है।
दलितों की व्यथा आंकड़ों की जुबानी
राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी द्वारा हाल ही में सूचना के अधिकार में राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के विद्यालयों में भोजन पकाने वाले महिला-पुरूर्षो की जातिवार जानकारी ली। इस सूचना में जो आंकडे आए है वह न केवल राजसमन्द जिले के दलित वर्ग की अपितु राजस्थान राज्य के ग्रामीण इलाकों में दलित वर्ग की व्यथा को साफ बयान करते है।
सूचना का अधिकार के तहत राजसमन्द जिले के 1749 विद्यालयों में भोजन पकाने वाले महिला-पुरूषों के आंकडे उपलब्ध हुए। उनमें से अनुसूचित जाति वर्ग के मात्र 21 महिला-पुरूष है जो कुल विद्यालयों में भोजन पकाने वालों का मात्र 1-37 प्रतिशत है। आंकडों के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग के मात्र 129 लोग भोजन पकाने में लगे है जिससे इनका प्रतिशत 7-37 बैठता है। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के भोजन पकाने वालों का राजसमन्द जिले के ब्लॉक वार आंकडे देखे तो आमेट ब्लॉक में कुल 156 विद्यालयों में पोषाहार पकाया जा रहा है जिनमें से एससी का कोई भी महिला-पुरूष नहीं है जबकि जनजाति वर्ग के दो लोग पोषाहार बनाने में लगे हुए है। भीम ब्लॉक के 337 विद्यालयों में एससी वर्ग के दो जने जबकि एसटी वर्ग का कोई नहीं है। देवगढ ब्लॉक के 194 विद्यालयों में एससी वर्ग के सात तथा एसटी वर्ग के दो लोग पोषाहार बनाने में लगे है। कुम्भलगढ ब्लॉक के 317 विद्यालयों में एससी वर्ग के मात्र तीन जने है जबकि एसटी वर्ग के 52 व्यक्ति लगे हुए है। खमनोर में एससी वर्ग का 1 तथा एसटी वर्ग के 38 लोग लगे है। राजसमन्द ब्लॉक के 285 विद्यालयों में एससी वर्ग के तीन और एसटी वर्ग के 26 लोग पोषाहार बना रहे है। चूंकि कुम्भलगढ खमनोर और राजसमन्द ब्लॉक में कई विद्यालय ऐसे है जहां पर एसटी वर्ग के बालक-बालिका ही पढ रहे है ऐसे में इन्हीं वर्ग का भोजन पका रहा है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं। इधर रेलमगरा ब्लॉक के 187 विद्यालयों में एससी वर्ग के पांच और एसटी वर्ग के नौ जने पोषाहार पका रहे है।
सरकार के निर्देशो का उल्लंघन मिड डे मील योजना के तहत राजस्थान सरकार द्वारा दिशा-निर्देश की पुस्तिका जारी की है जिसमें बिंदु संख्या 11 में उल्लेख किया है कि पोषाहार पकाने के लिए शिक्षकों को पूर्णतया मुक्त रखा जावे और उनके एवज में गांव के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग बीपीएल स्वयं सहायता समूह से नियमित मानदेय के आधार पोषाहार पकाया जावे। राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी के अनुसार जिले के कई विद्यालयों में प्रशानिक आदेश के तहत शिक्षकों ने अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों को पोषाहार पकाने के लिए रखा भी लेकिन ग्रामीणों के विरोध करने पर दलित वर्ग के लोगों को पोषाहार पकाने के कार्य हटाना पडा।
बच्चों का बचपन बचाने के लिए मनोवृति बदलनी होगी
दासता को अभिशाप जो सदिया से चला आ रहा है वह कमोबेश भारत में खत्म होते नहीं दिख रहा है। इसकी मूल वजह व्यक्ति की मनोवृति। सदियो पूर्व व्यक्ति अपनी मजबूरी और लाचारीवश दास बनते थे। उस वक्त खुद और परिवार का गुजारा चले या न चले लेकिन मालिक को खुश रखने और उसका घर भरने के लिए दास बना व्यक्ति सब कुछ न्यौछावर कर देता। वह तब हर पीड़ा और शोषण को सह लेता।
अब हालात बदले है लेकिन व्यक्ति की मनोवृति नहीं बदली। व्यक्ति दास तब मजबूरी में बनता और अब आर्थिक प्रतिस्पध्र्दा की दौड में लोगों से कही पीछे न रह जाए यह सोचकर वह सब कुछ करने को तैयार है। ऐसे हालातों में आम इंसान खुद को दासत्व की और धकेले तो कोई अचरज नहीं। मगर विगत कुछ वर्षो में ग्रामीण क्षेत्रों में यह देखने को मिल रहा है कि गांव का खेती-बाडी से सम्पन्न व्यक्ति होने के बावजूद अपने बच्चों को बाल श्रम करवाने से नहीं कतराता।
हाल ही में राजस्थान राय के राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ और उदयपुर के गोगुंदा क्षेत्र के गांवों का दौरा किया तो कमोबेश यही तथ्य सामने आए। यद्यपि खेती-बाड़ी से उनका और पूरे परिवार का गुजारा हो जाता है बावजूद इसके अपने बच्चों को सूरत की कपड़ा फैक्ट्री में पैसा कमाने के लिए भेज देते है।
यहा यह कहना गलत होगा कि बालश्रम के लिए सूरत जा रहे बच्चों को रोकने के लिए प्रशासन ने कोई प्रयास नहीं किए क्योंकि मुझे वर्ष 2005 का वह दिन याद आता है जब सर्व शिक्षा अभियान राजसमन्द के अधिकारी दिनेश श्रीमाल, सुश्री आशा वर्मा और श्याम सुंदर रामावत ने कुम्भलगढ क्षेत्र से सूरत गए बच्चों को तलाशा और उन्हें वहां से वापस यहां लाकर शिक्षा की मुख्य धारा से जोडा।
यहां मैं राजस्थान पत्रिका उदयपुर संस्करण की टीम को भी साधुवाद देना चाहूंगा जिन्होंने गत वर्ष गोगुंदा, खेरवाडा, झाडोल और कोटडा क्षेत्र से सूरत के ठेकेदारों द्वारा नाबालिग बच्चों को ले जाने की खबरों को प्रकाशित किया। इन्हीं खबरों के आधार पर उदयपुर जिला प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए बालकों को न केवल ठेकेदारों के कब्जे से छुडवाया अपितु बालकों को शिक्षा से जोडने के लिए विशेष विद्यालय भी चलाए।
बालश्रम रोकने के लिए प्रशासन और समाचार पत्र ने तो अपनी सजगता दिखाई लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के अभिभावक आज भी अपने बच्चों के प्रति सजग नहीं है। आज भी यह लोग चाहते है कि उनका बालक घर के लिए कुछ न कुछ कमाएं। वे अपने लालच को पूर्ण करने के लिए पहले खुले आम बच्चों को सूरत भेजते थे लेकिन अब प्रशासनिक दबाव के चलते चोरी-छिपे भेज रहे है। ऐसे में ग्रामीण बच्चों का बचपन कैसे बच पाएगा?
क्यों नहीं निकाल सकता दलित वर्ग घोडे पर बिंदौली
पुरानी परम्परा धीरे-धीरे खण्डित होने के बावजूद राजस्थान में दलित वर्ग की घोडे पर बैठा कर बिंदौली नहीं निकलने देने की रस्म अब गैर दलित वर्ग ने अपनी शान बना लिया है और जैसे ही किसी दलित के घर में शादी का आगाज होता है गैर दलित वर्ग पैगाम पहुंचा देते है कि बाकि सब ठीक है लेकिन बिंदौली घोडे पर नहीं निकलनी चाहिए। इन हालातों से अछूता राजसमन्द जिला भी नहीं है। इस जिले के केलवा थाना क्षेत्र के वागुंदडा गांव निवासी नेनूराम रेगर के घर में भी आगामी 30 नवम्बर को शादी है और वह धूमधाम से तैयारी में जुटा हुआ है। इसकी जानकारी मिलने पर नेनूराम को भी पैगाम आ गया कि बिंदौली घोडी पर नहीं निकलेगी। घर में खुशी का पहला अवसर हो और ऐसा पैगाम आए तो ऐसे में उसकी नींद उडनी स्वाभाविक थी लेकिन समाजसेवी और दलित वर्ग के प्रबोधक के रूप में जाने जाने वाले राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक को इस आशय का पत्र सौंपते हुए सुरक्षा की गुहार की। पुलिस प्रशासन ने पीडित दलित वर्ग को हालांकि सुरक्षा उपलब्ध करवा दी लेकिन यक्ष प्रश्न यही कायम है कि क्यों गैर दलित वर्ग दलित वर्ग की बिंदौली नहीं निकालने देने को अपनी शान समझते है।