मुकेश त्रिवेदी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की राष्टीय अध्यक्ष सोनिया गांधी का असम राज्य के गणेशगुडी क्षेत्र का दौरा करना और प्रभावितों से मिलकर उनके प्रति संवेदना व्यक्त करना अब आम बात हो गई है। जयपुर में इस वर्ष १३ मई को, बैंगलोर, अहमदाबाद में माह जुलाई में हुए धमाकों के बाद अमूमन राजनीतिक रोटियां सैंकने के लिए प्रभावित क्षेत्र में दौरा करते नजर आते है लेकिन इससे क्या प्रभावितों के दिलों की आग ठण्डी हो जाएगी? क्या उनसे सदा के लिए बिछड गए लोग मिल पाएंगे? जवाब यही है कि नहीं। न तो जयपुर, अहमदाबाद, बैंगलोर धमाके और न इससे पहले हुई ऐसी वारदातों के पीडितों को न्याय अब तक नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री खुद पीडितों से मिलने के बाद यही आश्वासन देते नजर आएं और आएंगे कि हमें आतंकवाद का अब कडाई से मुकाबला करना होगा लेकिन कब ? इसका जवाब शायद वह भी नहीं दे पाए। हर आतंकवादी घटना के बाद सरकार दोषियों के खिलाफ कडी कार्रवाई करने का आश्वासन देती है। पहले जब छिटपुट घटनाएं होती थी तब तो भारत का आम नागरिक सरकार के इस कथनों पर विश्वास भी कर लेता था लेकिन विगत वर्षो में भारत में धमाके आम घटनाएं हो गई है और ऐसे में धमाके के बाद प्रधानमंत्री और मंत्रियों के बयान जब उसी पूर्ववत अंदाज में दिए जाते है तो यह लगना स्वाभाविक है कि आतंकवाद के सामने हमारे प्रधानमंत्री और उनकी सत्ता भी बेबस है। आज आम नागरिक का यही प्रश्न होता है कि धमाके करने के बाद इंडियन मुजाहिदीन और अन्य संगठन इसकी सरेआजम जिम्मेदारी लेने में कोई संकोच नहीं करते है तो पूरे एक अरब जनसंख्या पर शासन करने वाले सत्ताधारी दल में इतना भी दम नहीं है कि वह इन मुट्ठी भर लोगों को सबक सिखा सके। क्या हमारी खुफिया एजेंसी में इतनी लचर हो चुकी है कि वह इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों को नेस्तनाबूत कर सके? वोटो की राजनीति करने वाले दलों को यह भी समझना होगा कि बम धमाके से मात्र सौ पचास लोग ही हताहत होते है लेकिन सरकार के प्रति विश्वास उन सौ पचास लोगों से जुडे हजारों लोगो का टूटता है। धमाकों में हताहत अधिकतर गरीब वर्ग के लोग होते है जिनकी परिजनों की हाय लगने पर राजा से रंक होते देर भी नहीं लगती हैं। क्या अब भी आतंकवाद से मुकाबला करने की थोथी बयानबाजी हमारे देश के नेता करते रहेंगे? यदि हां तो फिर इस देश के दुर्भाग्य को रोक पाना मुश्किल है।