राज की राजनीति
पहले राहुल और अब धर्मदेव की नृशंस हत्या कर राज ठाकरे की एमएनएस कार्यकर्ताओं ने क्षेत्रवाद को बढावा देने जो कृत्य किया है वह न केवल निदंनीय है अपितु आने वाले दिनों में गंभीर स्थिति का द्यौतक भी है।
राज ठाकरे की महाराष्ट मानुष की परिकल्पना वर्तमान परिपेक्ष्य में एक चिंतनीय विषय बनता जा रहा है। राज ठाकरे की शह पर उत्त्तर भारतीय परीक्षार्थियों पर हमला किया जाना और उसके बाद उत्तर भारतीय लोगों के दिमाग में भय बैठाने के लिए आग लगाने, मराठी की बजाय हिन्दी बोलने वालों की सरेआम पिटाई करना, छीना झपटी करना और तो और एक ईमानदार टैक्सी चालक की रोजी रोटी टैक्सी को आग लगा देना कृत्य एक व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देता है।
मुम्बई पर किसी एक व्यक्ति या एक संगठन की हुकूमत करना जायज नहीं है। अमूमन मुम्बई पूरे भारत का प्राण है। यहां से लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुडे हुए है। कोई कारोबार की दृष्टि से तो कोई अपने रिश्ते नातो से जुडा है। ऐसे में एक संगठन का वजूद कोई मायने नहीं रखता।
राज ठाकरे और उनके संगठन ने हालांकि अपने कृत्यों से मराठी मानुष की परिकल्पना को साकार कर दिया लेकिन यहां यह उल्लेख करते हुए शर्म से सिर झुक जाता है कि जिन लोगों पर कानून का पालन करने की जिम्मेदारी है वह भी अपने कर्तव्य से विमुख हो गए है और जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत को सही साबित करते हुए नजर आ रहे है। पर उन्हें समझना होगा कि राज ठाकरे आम भारतीयों की तरह इंसान है और कानून का पालन करना आम इंसान की तरह उसका भी कर्तव्य है। पालन नहीं कर सकते है तो सम्मान तो अवश्य करे और यह भी नहीं करते है तो पुलिस और प्रशासन उन्हें क्यों रियायत देती जा रही है? पुलिस और प्रशासन यहां तक की महाराष्टª की सत्ता में बैठे राज नेताओं को भी सोचना होगा कि वह आम जनता के सेवक है और इसी सेवा का मानदेय/वेतन उन्हें दिया जाता है न कि किसी अपराधी के अपराध को प्रश्रय देने का।
जैन दर्शन में एक बात कही गई है कि जिस समस्या का समाधान अंकुरण के समय नहीं किया गया तो वह आने वाले समय में काफी दुखदायी साबित होगा। राहुल का एनकाउंटर के बाद बिहार में जनाक्रोश और गोरखपुर के धर्मदेव की हत्या के बाद जो घटनाएं सामने आई है उससे महाराष्ट सरकार और केन्द्र सरकार को सबक लेते हुए कोई ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी......................