हफ्ते भर के अंदर दो ' सचों ' का सामना हुआ। दोनों ही टीवी पर आने वाले रिऐलिटी शो ' सच का सामना ' के बहाने उगलवाए गए थे। ग्रेटर नोएडा में टीवी प्रोग्रैम देखने के बाद पति ने पत्नी को सच कहने के लिए यह कहकर फुसलाया कि सच कड़वा भी हुआ तो भी उसका प्यार कम नहीं होगा। उसने कसम देकर पत्नी पर सच बोलने का दबाव डाला। पत्नी ने मजबूरन कह दिया कि शादी से पहले उसके अपने प्रेमी के साथ शारीरिक रिश्ते थे। पति ने सदमे में फांसी लगा ली। दूसरा वाकया मेरठ का है। वहां जब पत्नी ने कथित रूप से अवैध रिश्ते कबूले तो पति ने उसे ब्लेड से छलनी कर दिया। पत्नी अस्पताल पहुंच गई। पति अब जेल में यह कह कर बचने की कोशिश में है कि टीवी प्रोग्रैम देखकर उसे भी पत्नी का सच जानने की इच्छा हुई और जब पत्नी ने सच बताया तो उसका ऐसे रिऐक्ट करना लाजिमी था। आखिर कौन पति यह सच सह सकता है ! शायद कोई नहीं।
अपने यहां तो परंपरा भी नहीं है ऐसे सच मंजूर करने की , फिर चाहे वह सच हो या नहीं। अयोध्या की प्रजा को भी यह सच मंजूर नहीं हुआ कि सीता कैसे रावण की लंका में इतने साल काट कर आई। राम पर प्रजा का ' दबाव ' इस कदर हावी हुआ कि सीता को भी सच का सामना करवाया गया , अग्निपरीक्षा दिलवाकर। वर्तमान में लौटें तो यही सवाल मन में उठता है कि शो देखते - देखते अचानक पत्नियां ही क्यों अपने ' सच ' का सामना करने लग गई हैं। क्या पत्नी के सच के अलावा कोई और सच दुनिया में नहीं हैं ? क्या पतियों के सच भी इस तरह सामने आएंगे ? इन सवालों का जवाब भी वही है - नहीं। जरूरत ही क्या है ! पत्नियां न जाने कब से पतियों के ऐसे सच को कबूल कर उसके साथ जीती आई हैं। पति मानते हैं कि उन्हें ऐसे सच छिपाने की जरूरत ही नहीं है। वे इस सच का सामना कब करेंगे कि उन्हें दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए , जिसकी उम्मीद वे अपने लिए दूसरों से कर रहे हैं। सच का सामना करने की बारी अब पतियों की है। दरअसल , सच तो यह है कि जिस टीवी प्रोग्रैम पर समाज में बुराई फैलाने का आरोप संसद के गलियारों तक गूंज उठा है , अचानक उस शो में मर्दों को अपनी जान बचाने का जरिया नजर आने लगा है। अपनी सहूलियत के मुताबिक पत्नी के चरित्र पर कीचड़ उछालकर , शो को ढाल बनाकर पर्सनल लाइफ में इसे जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। पब्लिक की सहानुभूति मिल रही है , सो अलग। शो पर उंगली उठाना गलत होगा। अगर कोई कहे कि सब कुछ शो की वजह से हो रहा है , समाज में गलत मेसिज जा रहा है , इस शो से पहले पत्नियों के साथ ऐसा नहीं हो रहा था , तो यह दावा सरासर गलत है। NBT
अपने यहां तो परंपरा भी नहीं है ऐसे सच मंजूर करने की , फिर चाहे वह सच हो या नहीं। अयोध्या की प्रजा को भी यह सच मंजूर नहीं हुआ कि सीता कैसे रावण की लंका में इतने साल काट कर आई। राम पर प्रजा का ' दबाव ' इस कदर हावी हुआ कि सीता को भी सच का सामना करवाया गया , अग्निपरीक्षा दिलवाकर। वर्तमान में लौटें तो यही सवाल मन में उठता है कि शो देखते - देखते अचानक पत्नियां ही क्यों अपने ' सच ' का सामना करने लग गई हैं। क्या पत्नी के सच के अलावा कोई और सच दुनिया में नहीं हैं ? क्या पतियों के सच भी इस तरह सामने आएंगे ? इन सवालों का जवाब भी वही है - नहीं। जरूरत ही क्या है ! पत्नियां न जाने कब से पतियों के ऐसे सच को कबूल कर उसके साथ जीती आई हैं। पति मानते हैं कि उन्हें ऐसे सच छिपाने की जरूरत ही नहीं है। वे इस सच का सामना कब करेंगे कि उन्हें दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए , जिसकी उम्मीद वे अपने लिए दूसरों से कर रहे हैं। सच का सामना करने की बारी अब पतियों की है। दरअसल , सच तो यह है कि जिस टीवी प्रोग्रैम पर समाज में बुराई फैलाने का आरोप संसद के गलियारों तक गूंज उठा है , अचानक उस शो में मर्दों को अपनी जान बचाने का जरिया नजर आने लगा है। अपनी सहूलियत के मुताबिक पत्नी के चरित्र पर कीचड़ उछालकर , शो को ढाल बनाकर पर्सनल लाइफ में इसे जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। पब्लिक की सहानुभूति मिल रही है , सो अलग। शो पर उंगली उठाना गलत होगा। अगर कोई कहे कि सब कुछ शो की वजह से हो रहा है , समाज में गलत मेसिज जा रहा है , इस शो से पहले पत्नियों के साथ ऐसा नहीं हो रहा था , तो यह दावा सरासर गलत है। NBT