Thursday, November 6, 2008

ब्लेक क्रांति की नीतियों के प्रति भी सजग रहना होगा

(मुकेश त्रिवेदी)
व्हाईट हाउस में ब्लेक क्रांति का जो शुभारंभ हुआ है वह निसंदेह प्रशंसनीय है। बुधवार दिन भर इसी खबर को लेकर मीडिया जगत भी निरंतर खबरे देता रहा। स्वाभाविक भी है। दुनिया के शक्तिशाली देश का प्रमुख बनना और वह भी एक अश्वेत पुरूष कामयाबी की काफी बडी मंजिल पाने के बराबर है।
बराक ओबामा की जीत पर भारत के समाचार पत्रों सहित कई संगठनों ने बराक ओबामा को आम भारतीय की पसंद करार दिया है लेकिन यह नहीं भुलना चाहिए कि बराक ने अपने प्रचार अभियान के दौरान कश्मीर मामले मध्यस्था के पक्ष को उजागर किया था। कश्मीर का मसला भारत-पाक के मध्य का है और उसमें मध्यस्थता किसी भी कीमत पर आम भारतीय को मंजूर नहीं होगी।
बराक ओबामा की जीत पर भारत के राजनीतिक संगठनों ने हालांकि खुशी जाहिर की लेकिन ओबामा के प्रशासन को लेकर उनके मन में चिंताएं भी दिखी। मुख्यत: कांग्रेस और भाजपा दल के नेताओं की परमाणु अप्रसार संधि, आउटसोर्सिंग और भारत का मुख्य मुद्दा कश्मीर पर एक राय नजर आए। वहीं अमेरिका के विरोधी रहे वामपंथी दल के नेताओं का भी यही कहना है कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर व्यक्ति बदलते है नीतियां वहीं रहती है।
चिंता का विषय यह भी है कि ओबामा प्रशासन कर ढांचे को और ज्यादा कठोर बना कर भारतीयों की नौकरियों पर तलवार लटका सकता है। इसके अलावा सीटीबीटी के लिए दबाव भी ओबामा प्रशासन बना सकता है।
पदासीन बराक के हालांकि शुरूआती दिन है लेकिन भारत को इन मुद्दों पर सजग रहना होगा। अन्यथा महाशक्ति का महानायक की नीतियां कही हाल की खुिशयों को काफूर न कर देवे और कही व्हाइट हाउस की ब्लेक क्रांति आम भारतीयों के लिए ब्लेक आउट साबित न हो।