Saturday, November 15, 2008

विद्या के मंदिरों में सबक ही दलित वर्ग से घृणा का मिलता है

(मुकेश त्रिवेदी ) राजसमन्द। अस्पृश्यता पाप है अपराध है राजस्थान की पाठ्यपुस्तकों में विगत कई वषो से इन पंक्तियों का उल्लेख सरकार ने यह सोचकर किया कि इन पुस्तकों को पढने वाले विद्यार्थी सजग हो और वर्षो से चली आ रही छूआछुत की परम्परा समूल नष्ट करने में सहयोग दे सके। हालाकि शहरी क्षेत्रों में अब लोग समझने लगे है और दलित वर्ग के लोगों को अपना सहयोगी मानते है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में छूआछुत के हालात जस के तस बने है।
सर्व विदित है कि राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में दलित वर्ग को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनके हाथ से पानी पीना भी एक अपमान महसूस करने के बराबर माना जाता है। यही नहीं इन दलित वर्ग को मंदिर में दशन नहीं करने देने शादी के वक्त बिंदौली घोडे पर नहीं निकालने देने की गैर दलितों ने परम्परा कायम की वह बदस्तूर जारी है।
चिंताजनक स्थिति तब बन जाती है जब जिन विद्यालयों में बालक छुआछूत को पाप और अपराध है को सबक के रूप में पढता है वहां आज भी ग्रामीणों के दकियानुसी ख्यालात हावी है।
विद्यालयों में मिड डे मील योजना के तहत पकने वाले पोषाहार के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को प्राथमिकता देने के स्पष्ट निर्देश होने के बावजूद हालात इनसे परे है।

दलितों की व्यथा आंकड़ों की जुबानी
राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी द्वारा हाल ही में सूचना के अधिकार में राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के विद्यालयों में भोजन पकाने वाले महिला-पुरूर्षो की जातिवार जानकारी ली। इस सूचना में जो आंकडे आए है वह न केवल राजसमन्द जिले के दलित वर्ग की अपितु राजस्थान राज्य के ग्रामीण इलाकों में दलित वर्ग की व्यथा को साफ बयान करते है।
सूचना का अधिकार के तहत राजसमन्द जिले के 1749 विद्यालयों में भोजन पकाने वाले महिला-पुरूषों के आंकडे उपलब्ध हुए। उनमें से अनुसूचित जाति वर्ग के मात्र 21 महिला-पुरूष है जो कुल विद्यालयों में भोजन पकाने वालों का मात्र 1-37 प्रतिशत है। आंकडों के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग के मात्र 129 लोग भोजन पकाने में लगे है जिससे इनका प्रतिशत 7-37 बैठता है। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के भोजन पकाने वालों का राजसमन्द जिले के ब्लॉक वार आंकडे देखे तो आमेट ब्लॉक में कुल 156 विद्यालयों में पोषाहार पकाया जा रहा है जिनमें से एससी का कोई भी महिला-पुरूष नहीं है जबकि जनजाति वर्ग के दो लोग पोषाहार बनाने में लगे हुए है। भीम ब्लॉक के 337 विद्यालयों में एससी वर्ग के दो जने जबकि एसटी वर्ग का कोई नहीं है। देवगढ ब्लॉक के 194 विद्यालयों में एससी वर्ग के सात तथा एसटी वर्ग के दो लोग पोषाहार बनाने में लगे है। कुम्भलगढ ब्लॉक के 317 विद्यालयों में एससी वर्ग के मात्र तीन जने है जबकि एसटी वर्ग के 52 व्यक्ति लगे हुए है। खमनोर में एससी वर्ग का 1 तथा एसटी वर्ग के 38 लोग लगे है। राजसमन्द ब्लॉक के 285 विद्यालयों में एससी वर्ग के तीन और एसटी वर्ग के 26 लोग पोषाहार बना रहे है। चूंकि कुम्भलगढ खमनोर और राजसमन्द ब्लॉक में कई विद्यालय ऐसे है जहां पर एसटी वर्ग के बालक-बालिका ही पढ रहे है ऐसे में इन्हीं वर्ग का भोजन पका रहा है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं। इधर रेलमगरा ब्लॉक के 187 विद्यालयों में एससी वर्ग के पांच और एसटी वर्ग के नौ जने पोषाहार पका रहे है।
सरकार के निर्देशो का उल्लंघन मिड डे मील योजना के तहत राजस्थान सरकार द्वारा दिशा-निर्देश की पुस्तिका जारी की है जिसमें बिंदु संख्या 11 में उल्लेख किया है कि पोषाहार पकाने के लिए शिक्षकों को पूर्णतया मुक्त रखा जावे और उनके एवज में गांव के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग बीपीएल स्वयं सहायता समूह से नियमित मानदेय के आधार पोषाहार पकाया जावे। राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी के अनुसार जिले के कई विद्यालयों में प्रशानिक आदेश के तहत शिक्षकों ने अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों को पोषाहार पकाने के लिए रखा भी लेकिन ग्रामीणों के विरोध करने पर दलित वर्ग के लोगों को पोषाहार पकाने के कार्य हटाना पडा।