चार दिसम्बर को राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने है। प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सहित निर्दलीय प्रत्याशी अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं को लुभाने में जुटे है। राजनीतिक पार्टियाें ने मतदाताओं को लुभाने के लिए हाल ही में अपने चुनाव घोषणा पत्र भी जारी किए है। जिनमें एक राजनीतिक पार्टी ने कर्मचारियों को सभी परिलाभ देने और प्रसूता को पांच किलो घी तक देने का आश्वासन दे डाला। वहीं दूसरी पार्टी राय और क्षेत्र के विकास के लिए हर संभल पहल करने की घोषणा कर रहे है। सवाल यह उठता है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा जो चुनावी घोषणा पत्र जारी किया गया उसका वास्तविक साझेदार जनता है या उसके कार्यकर्ता। क्योंकि चुनाव के बाद जब राजनीतिक पार्टी सत्ता संभालती है तो चुनाव से पहले जारी किया गया उनका घोषणा पत्र समय के साथ-साथ जनता के लिए एक नेता का कागजी वादा ही साबित होकर रह जाता है। प्राय: यह भी देखा जाता है कि राजनीतिक पार्टियां वृहद स्तर पर जनता को आकर्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो कर देती है लेकिन उनमें किए गए वादे कभी पूरे नहीं हो पाते। मसलन पिछले चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने गांव-गांव में स्वास्थ्य केन्द्र और स्कूल खोलने के तो बडे वादे किए लेकिन क्या अभी तक सभी गांवों में स्कूल और स्वास्थ्य केन्द्र खुल गए? यदि खुल गए तो स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक और स्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्साकर्मी है? स्वाभाविक तौर पर इन प्रश्नों पर राजनीतिक पार्टियों के बडे नेता भी जवाबदेते नहीं बनते।
पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान का नाम विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त है। भारत आने वाले दस विदेशी पर्यटकों में से आठ राजस्थान की प्राचीन संस्कृति और धरोहर को देखने जरूर आते है। विदेशी लोगों के यहां आने से सत्ता में रहने वाली सरकार को वित्तीय दृष्टि से फायदा तो बहुत हुआ लेकिन कभी सरकार ने राजस्थान की प्राचीन धरोहर को संवारने और जर्जर होती पुरा सम्पदा को संजोने में कोई रूचि नहीं दिखाई। यहां तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इसे घोषणा पत्र में स्थान देना भी जरूरी नहीं समझा। यही हाल राजस्थानी भाषा का है। राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति ने चुनाव की घोषणा से पूर्व राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से अपने घोषणा पत्र में राजस्थानी भाषा की मान्यता के सम्बन्ध में घोषणा करवाने का आग्रह किया, अपनी चुनाव प्रचार सामग्री भी राजस्थानी भाषा में प्रकाशित करवाने का आग्रह किया लेकिन अफसोस किसी पार्टी ने इस और ध्यान नहीं दिया।
पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान का नाम विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त है। भारत आने वाले दस विदेशी पर्यटकों में से आठ राजस्थान की प्राचीन संस्कृति और धरोहर को देखने जरूर आते है। विदेशी लोगों के यहां आने से सत्ता में रहने वाली सरकार को वित्तीय दृष्टि से फायदा तो बहुत हुआ लेकिन कभी सरकार ने राजस्थान की प्राचीन धरोहर को संवारने और जर्जर होती पुरा सम्पदा को संजोने में कोई रूचि नहीं दिखाई। यहां तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इसे घोषणा पत्र में स्थान देना भी जरूरी नहीं समझा। यही हाल राजस्थानी भाषा का है। राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति ने चुनाव की घोषणा से पूर्व राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से अपने घोषणा पत्र में राजस्थानी भाषा की मान्यता के सम्बन्ध में घोषणा करवाने का आग्रह किया, अपनी चुनाव प्रचार सामग्री भी राजस्थानी भाषा में प्रकाशित करवाने का आग्रह किया लेकिन अफसोस किसी पार्टी ने इस और ध्यान नहीं दिया।