एडस, कैंसर के बाद अब एक और सीओपीडी फेफडों से संबंधित एक महत्वपूर्ण बीमारी पग पसारते हुए लोगों को मौत की आगोश में ले रही है। हाल ही में रविंद्रनाथ टैगौर मेडिकल कॉलेज उदयपुर की ओर से आयोजित कांफ्रेस में विभागाध्यक्ष डॉ. एसके लुहाडिया ने इस बीमारी का विष्लेशण करते हुए बताया कि इस बीमारी के दौरान श्वांस नलियों में सूजन आ जाती है और धीरे-धीरे बलगम बनता है। रोगी की ष्ष्वास की नलियां सिकुड जाती है। इस रोग में व्यक्ति को श्वांस में तकलीफ रहने लगती है व खांसी और बलगम की शिकायत भी हो सकती है। यह तकलीफ सर्दी के मौसम में अधिक होती हैं। इस रोग का ईलाज नहीं लेने पर ष्ष्वास की नलियों में स्थायी सिकुडन भी हो सकती है, जिससे मरीज के लक्षण गंभीर हो जाते है और अस्पताल में भर्ती करवाना पड सकता हैं।
विष्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीओपीडी वर्तमान में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है तथा पूर्वानुमान है कि सन् 2020 तक यह मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन सकेगा। प्रति वर्ष करीब 30 लाख लोग इस बीमारी से मौत के शिकार बन जाते है, एवं 40 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 10 प्रतिषत लोगों में इस बीमारी के होने की संभावना होती है। एक भारतीय सर्वे के अनुसार करीब 3.5 करोड लोग इस बीमारी से ग्रसित है। उन्होने बताया कि सीओपीडी रोग का प्रमुख कारण ध्रुमपान होता है, लेकिन प्रदूषण भी इसका प्रमुख जिम्मेदार घटक है। चूल्हों से निकलने वाले धुएं, फैक्ट्री व वाहनों से निकलने वाले धुएं से भी इस रोग के होने की आषंका हो सकती है। उन्होंने बताया कि सीओपीडी का प्रारंभिक अवस्था में निदान बहुत जरूरी है। प्रारंभिक निदान एवं बीमारी की गंभीरता नापने के लिए स्पाईरोमेट्री नामक टेस्ट का उपयोग किया जाता है। इससे फेफडे की क्षमता का पता लगाया जा सकता है। इस रोग में इनहेलर द्वारा दी जाने वाली दवाइयां अधिक कारगर व सुरक्षित रहती है।
विष्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीओपीडी वर्तमान में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है तथा पूर्वानुमान है कि सन् 2020 तक यह मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन सकेगा। प्रति वर्ष करीब 30 लाख लोग इस बीमारी से मौत के शिकार बन जाते है, एवं 40 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 10 प्रतिषत लोगों में इस बीमारी के होने की संभावना होती है। एक भारतीय सर्वे के अनुसार करीब 3.5 करोड लोग इस बीमारी से ग्रसित है। उन्होने बताया कि सीओपीडी रोग का प्रमुख कारण ध्रुमपान होता है, लेकिन प्रदूषण भी इसका प्रमुख जिम्मेदार घटक है। चूल्हों से निकलने वाले धुएं, फैक्ट्री व वाहनों से निकलने वाले धुएं से भी इस रोग के होने की आषंका हो सकती है। उन्होंने बताया कि सीओपीडी का प्रारंभिक अवस्था में निदान बहुत जरूरी है। प्रारंभिक निदान एवं बीमारी की गंभीरता नापने के लिए स्पाईरोमेट्री नामक टेस्ट का उपयोग किया जाता है। इससे फेफडे की क्षमता का पता लगाया जा सकता है। इस रोग में इनहेलर द्वारा दी जाने वाली दवाइयां अधिक कारगर व सुरक्षित रहती है।