भारतीय संस्कृति को अक्षुण बनाए रखने के लिए सजग भारतीयों द्वारा काफी प्रयास किए ले जा रहे है मगर कही न कही इन प्रयासों को पाश्चात्य संस्कृति का लबादा ओढे बैठे लोग आहत करने पर तुले हुए है। यही वजह है कि अब बिना शादी किए साथ रहने का नया नियम इन लोगों ने प्रचारित करना शुरू कर दिया है। वहीं लाइव इन रिलेशनशिप को मान्यता प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने भी पहल की है। बिना शादी किए साथ रहने की यह अवधारणा पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने वाले लोगों को रास आ सकता है और इसकी उनकी अपनी वजह हो सकती है। बिना विवाह किए ही पत्नी का दर्जा और महिला को पत्नी के अधिकार प्रदान करना अदालत की नजर में भी उचित नहीं है। इसकी पहली वजह जब कभी इन लिव इन रिलेशनशिप के माध्यम से साथ रहने वाले जोडों को झगड़े की वजह से अलग रहने की नौबत आई तब कानूनी तौर पर इनके विवादों का निपटारा किसी भी कानून के तहत नहीं किया जा सकता। अधिकांशत: ऐसे साथ रहने वाले शिक्षित और कार्मिक वर्ग के होते है। कार्मिक वर्ग के होने के फलस्वरूप कई बार उनका स्थानांतरण भी होता है ऐसे में यह जरूरी नहीं कि साथ रहने वालों का एक साथ स्थानांतरण हो। वैधानिक पति-पत्नी को अधिकार है कि वह अपने साथी के स्थानांतरण के लिए अनुरोध कर सकते है। इसके अलावा साथ रहने वालों के बीच कभी विवाद की स्थिति होने और अलग-अलग रहने की परिस्थिति आने पर उनकी संतान की प्रमाणिकता कैसे सिध्द की जा सकती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डीएनए परीक्षण से संतान की प्रमाणिकता संभव है लेकिन इन सबके लिए वैधानिक प्रक्रिया और अदालत की शरण तो लेनी होगी।
भारतीय धर्म शास्त्रों का अवलोकन करें तो स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि विवाह भी सामाजिक परम्परा की धार्मिक अनुपालना है। बिना विवाह के संतान को धर्मशास्त्र भी पहचान नहीं देते। भारत के धर्मशास्त्रों में यहां तक उल्लेख है कि कुछ ऋषि-मुनियों को भी विवाह के लिए तपस्या करते हुए अनुपालना करनी पड़ी है। वहीं पौराणिक मान्यता यह भी है कि बिना विवाह स्वर्ग या मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण करने से पहले इसके व्यावहारिक और भावी परिणामों पर भी दूरदर्शिता पूर्ण विचार किया जाना चाहिए। लम्बे समय तक एक ही छत के नीचे रहना और पति-पत्नी का आचरण करना कहां तक न्याय संगत है। मानवीय प्रकृति के अनुसार एक ही व्यक्ति समय-समय पर एक से अधिक महिलाओं के साथ रहता है तो किस महिला को उसकी वास्तविक संगीनी माना जाएगा। सरकार ने कानूनी रूप से विवाह का पंजीकरण आवश्यक कर दिया है तो ऐसे साथ रहने वाले जोड़ों को सरकार मान्यता देकर उनका पंजीकरण कर सकती है?
स्वतंत्र प्रकृति की महिलाओं का यह भी मानना है कि पुरूष प्रधानता और पुरूष की निरंकुशता को समाप्त करने में लाइव इन रिलेशनशिप सहायक साबित हो सकता है और महिला को शोषण से मुक्ति मिलेगी लेकिन इस बात को कौन दावे से कह सकता है कि लाइव इन रिलेशनशिप से पुरूष की मंशा में परिवर्तन हो सकता है। जरूरत है पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे इन लोगों को भारतीय पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए विचार करने की। अन्यथा लाइव इन रिलेशनशिप से परिवार ही टूटते है।
भारतीय धर्म शास्त्रों का अवलोकन करें तो स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि विवाह भी सामाजिक परम्परा की धार्मिक अनुपालना है। बिना विवाह के संतान को धर्मशास्त्र भी पहचान नहीं देते। भारत के धर्मशास्त्रों में यहां तक उल्लेख है कि कुछ ऋषि-मुनियों को भी विवाह के लिए तपस्या करते हुए अनुपालना करनी पड़ी है। वहीं पौराणिक मान्यता यह भी है कि बिना विवाह स्वर्ग या मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। आधुनिकता के नाम पर अंधानुकरण करने से पहले इसके व्यावहारिक और भावी परिणामों पर भी दूरदर्शिता पूर्ण विचार किया जाना चाहिए। लम्बे समय तक एक ही छत के नीचे रहना और पति-पत्नी का आचरण करना कहां तक न्याय संगत है। मानवीय प्रकृति के अनुसार एक ही व्यक्ति समय-समय पर एक से अधिक महिलाओं के साथ रहता है तो किस महिला को उसकी वास्तविक संगीनी माना जाएगा। सरकार ने कानूनी रूप से विवाह का पंजीकरण आवश्यक कर दिया है तो ऐसे साथ रहने वाले जोड़ों को सरकार मान्यता देकर उनका पंजीकरण कर सकती है?
स्वतंत्र प्रकृति की महिलाओं का यह भी मानना है कि पुरूष प्रधानता और पुरूष की निरंकुशता को समाप्त करने में लाइव इन रिलेशनशिप सहायक साबित हो सकता है और महिला को शोषण से मुक्ति मिलेगी लेकिन इस बात को कौन दावे से कह सकता है कि लाइव इन रिलेशनशिप से पुरूष की मंशा में परिवर्तन हो सकता है। जरूरत है पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे इन लोगों को भारतीय पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए विचार करने की। अन्यथा लाइव इन रिलेशनशिप से परिवार ही टूटते है।