राजसमन्द जिले में अनुजा के तहत दर्ज 112 मामलों में 53 झूठे
दलित वर्ग के उत्थान के लिए सरकार कई कल्याणकारी योजनाओं का संचालन और उनसे काफी लोगों के लाभान्वित होने आंकडे प्रस्तुत कर हालांकि वाहवाही काफी बटोरी है लेकिन वास्तविक तौर पर इन योजनाओं का लाभ मिल रहा है इसमें संशय है। इसकी मुख्य वजह गांवों में रहने वाले दलित वर्ग सामंतवादियों के शोषण का शिकार होना। जब तक दलित वर्ग शोषण और अत्याचार से अपनी व अपने परिवार की सुरक्षा के प्रति आशान्वित ही नहीं है तो कैसे माना जाए कि वह सरकार की योजनाओं का लाभ ले रहा होगा।
शोषण एवं अत्याचार के शिकार दलित वर्ग द्वारा जब कभी आवाज उठाई भी जाती है तो उसे या तो दबा दिया जाता है या पुलिस एवं प्रशासन की साठगांठ से उसे पूर्णतया झूठा साबित कर उसे सदा के लिए लालफीतों में बांध दिया जाता है जिससे शोषित पीड़ित वर्ग अपनी पीड़ा पर आंसू बहाने से यादा कुछ नहीं कर सकता है।
राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा संयोजक सोहन लाल भाटी ने हाल ही में सूचना का अधिकार के तहत राजस्थान राय के राजसमन्द जिला पुलिस से पिछले तीन वर्षो के दौरान अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामले और उनकी स्थिति के बारे में जो आंकडे प्राप्त किए वह काफी चौंकाने वाले है।
विगत तीन वर्षो में राजसमन्द जिले में इस अधिनियम के तहत 112 मामले दर्ज हुए जिनमें से 39 मामलों में पुलिस ने जांच कर चालान प्रस्तुत किया जबकि 53 मामले जांच के उपरांत झूठे पाए गए। वहीं 20 मामलों में अनुसंधान जारी, आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने तथा तथ्यात्मक भूल से सम्बन्धित रहे।
राजसमन्द जिले के 12 थानों के अनुसार यह आंकडे देखे जाए तो राजनगर थाने में इन तीन वर्षो में 20 मामले दर्ज हुए जिनमें से आठ में चालान और 11 झूठे, आमेट थाने में छह मामलों में से चार में चालान व एक झूठा, चारभुजा थाने में तीन में से एक में चालान, दो झूठे, केलवाड़ा थाने में दर्ज छह मामलों में सभी झूठे, कुंवारिया में चार मामलों में से दो में चालान, एक झूठा, नाथद्वारा में 15 मामलों में चार में चालान, नौ झूठे, रेलमगरा में 27 मामलों में मात्र दस में चालान, नौ झूठे, खमनोर में नौ में से एक में चालान पांच झूठे, देवगढ में आठ में से दो में चालान चार झूठे, दिवेर थाना एक मात्र ऐसा थाना रहा जहां दर्ज दो मामलों की जांच के उपरांत अदालत में चालान पेश हुआ। देलवाड़ा थाने में तीन में से एक में चालान, दो में अनुसंधान शेष, भीम थाने में आठ में से तीन में चालान, चार झूठे और केलवा थाने में दर्ज एक मामले का अनुसंधान जारी है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय दलित मानवाधिकारी अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी का कहना है कि दलित वर्ग जब कभी शोषण और अत्याचार से पीड़ित होता है तो वह सीधे थाने में शिकायत दर्ज करवाता है लेकिन वहां पुलिस उसे झूठी सांत्वना देते हुए निर्धारित अधिनियम में मामला दर्ज करने की बजाय छोटी-छोटी धाराओं में मामला दर्ज कर देती है। भाटी के अनुसार थानों में मामले दर्ज नहीं होने के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक हथकण्डे भी जिम्मेदार है। भाटी के अनुसार राजनेता भी क्षेत्र में साख जमाने के लिए वहीं प्रशासनिक अधिकारी क्षेत्र में शांति व्यवस्था बिगड़ने के भय से अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने में हिचकते है। वहीं मामला दर्ज होने के बाद उसकी जांच सामान्य तौर पर की जाती है। ऐसे में पीड़ित वर्ग को न्याय नहीं मिल पाता है और सदा वह अपनी सुरक्षा के प्रति आशंकित रहता है।
शोषण एवं अत्याचार के शिकार दलित वर्ग द्वारा जब कभी आवाज उठाई भी जाती है तो उसे या तो दबा दिया जाता है या पुलिस एवं प्रशासन की साठगांठ से उसे पूर्णतया झूठा साबित कर उसे सदा के लिए लालफीतों में बांध दिया जाता है जिससे शोषित पीड़ित वर्ग अपनी पीड़ा पर आंसू बहाने से यादा कुछ नहीं कर सकता है।
राष्ट्रीय दलित मानवाधिकार अभियान शाखा संयोजक सोहन लाल भाटी ने हाल ही में सूचना का अधिकार के तहत राजस्थान राय के राजसमन्द जिला पुलिस से पिछले तीन वर्षो के दौरान अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामले और उनकी स्थिति के बारे में जो आंकडे प्राप्त किए वह काफी चौंकाने वाले है।
विगत तीन वर्षो में राजसमन्द जिले में इस अधिनियम के तहत 112 मामले दर्ज हुए जिनमें से 39 मामलों में पुलिस ने जांच कर चालान प्रस्तुत किया जबकि 53 मामले जांच के उपरांत झूठे पाए गए। वहीं 20 मामलों में अनुसंधान जारी, आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने तथा तथ्यात्मक भूल से सम्बन्धित रहे।
राजसमन्द जिले के 12 थानों के अनुसार यह आंकडे देखे जाए तो राजनगर थाने में इन तीन वर्षो में 20 मामले दर्ज हुए जिनमें से आठ में चालान और 11 झूठे, आमेट थाने में छह मामलों में से चार में चालान व एक झूठा, चारभुजा थाने में तीन में से एक में चालान, दो झूठे, केलवाड़ा थाने में दर्ज छह मामलों में सभी झूठे, कुंवारिया में चार मामलों में से दो में चालान, एक झूठा, नाथद्वारा में 15 मामलों में चार में चालान, नौ झूठे, रेलमगरा में 27 मामलों में मात्र दस में चालान, नौ झूठे, खमनोर में नौ में से एक में चालान पांच झूठे, देवगढ में आठ में से दो में चालान चार झूठे, दिवेर थाना एक मात्र ऐसा थाना रहा जहां दर्ज दो मामलों की जांच के उपरांत अदालत में चालान पेश हुआ। देलवाड़ा थाने में तीन में से एक में चालान, दो में अनुसंधान शेष, भीम थाने में आठ में से तीन में चालान, चार झूठे और केलवा थाने में दर्ज एक मामले का अनुसंधान जारी है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय दलित मानवाधिकारी अभियान शाखा के संयोजक सोहन लाल भाटी का कहना है कि दलित वर्ग जब कभी शोषण और अत्याचार से पीड़ित होता है तो वह सीधे थाने में शिकायत दर्ज करवाता है लेकिन वहां पुलिस उसे झूठी सांत्वना देते हुए निर्धारित अधिनियम में मामला दर्ज करने की बजाय छोटी-छोटी धाराओं में मामला दर्ज कर देती है। भाटी के अनुसार थानों में मामले दर्ज नहीं होने के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक हथकण्डे भी जिम्मेदार है। भाटी के अनुसार राजनेता भी क्षेत्र में साख जमाने के लिए वहीं प्रशासनिक अधिकारी क्षेत्र में शांति व्यवस्था बिगड़ने के भय से अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने में हिचकते है। वहीं मामला दर्ज होने के बाद उसकी जांच सामान्य तौर पर की जाती है। ऐसे में पीड़ित वर्ग को न्याय नहीं मिल पाता है और सदा वह अपनी सुरक्षा के प्रति आशंकित रहता है।