Sunday, December 7, 2008

गोविंद बन गया गोविंदा

एक माह पहले तक राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के राजसमन्द से मोरचणा मार्ग पर मैले-कुचैले कपड़ों में अर्ध्द विक्षिप्त अवस्था में घूमने वाला गोविंद अब अपने आप को फिल्मी हीरो गोविंदा से कम नहीं समझ रहा है। और समझे भी क्यों नहीं। वह भी बदले हुलिए और नए परिधान में अब दो पैसे की जुगत में मजदूरी जो करने लगा है। गोविंद यह समझ गया है कि जीने की जीजिविषा में करम कर जिदंगी बनानी जरूरी है तभी पहचान साबित होगी।
गोविंद के बदले हुलिए और मजदूरी करते हुए देखने से उसकी विधवा मां मोहनी बाई और भाई मोहन की आंखे खुशी के मारे नम हो जाती है और बार-बार उनके मुंह से गोविंद को नया रूप देने वाले रेडक्रोस के मानद सचिव राजकुमार दक, सजन मार्बल के सेठजी किशोर सिंह मेड़तिया, मंत्री मार्बल के ओमप्रकाश मंत्री तथा रमेश चोरडिया और देवेन्द्र सिंघवी एवं साथी मजदूरों के लिए दुआएं ही निकलती है।
करीब एक माह पूर्व राजसमन्द-मोरचणा मार्ग पर अर्ध्द विक्षिप्त अवस्था और मैले-कुचैले कपड़ों में घूम रहे ग्राम पंचायत पसूंद निवासी गोविंद पुत्र प्रेमदास वैष्णव पर रेडक्रोस के मानद सचिव राजकुमार दक की नजर पड़ी और उन्होंने निरंतर उस निगाह रखते हुए जानकारी एकत्र कर उसे इस नारकिय जीवन की बजाय आम इंसान बनाने की जिम्मेदारी ली। राजकुमार दक को जानकारी हुई कि गोविंद की मां मोहनी बाई सजन मार्बल में मजदूरी करती है जबकि एक भाई हाथ ठेला चलाता है। राजकुमार दक ने जब इन दोनों से सम्पर्क किया तो उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर बताते हुए गोविंद का इलाज करवाने में असहाय बताया। यहां तक कि गोविंद के भाई मोहन ने तंगहाली के कारण गोविंद की सेवाश्रुषा में समय तक देने में असमर्थता जाहिर की।
राजकुमार दक ने हाथ ठेला चलाने वाले मोहन को एक माह तक ठेला चलाने से होने वाली आमदनी एक मुश्त देते हुए मोहन को गोविंद की सेवाश्रुषा के लिए राजी कर लिया। वहीं सजन मार्बल के किशोर सिंह मेड़तिया को भी गोविंद को उसकी मां मोहनी के साथ फैक्ट्री परिसर में रखने की इजाजत दे दी। गोविंद के इलाज के लिए राजकुमार दक ने डॉ. एच.सी. सोनी से गोविंद का तीन बार परामर्श किया जबकि नियमित जांच करवाया गया। राजकुमार दक के अनुसार शुरूआती दौर में गोविंद को दवा देने में काफी परेशानी हुई इस पर उसे चाय के साथ दवा दी गई लेकिन उसके बाद वह खुद ही दवा लेने लगा। इस दौरान गोविंद के बालों की कटिंग करवा, नियमित शेविंग और स्नान करवाने से उसका हुलिया बदल गया। राजकुमार दक बताते है कि गोविंद को नशे की आदत थी लेकिन फैक्ट्री परिसर में सभी की निगरानी और मानवीय व्यवहार होने से न केवल उसके नशे की आदत छूट गई बल्कि वह अपनी जिंदगी के बारे में सकारात्मक भी सोचने लगा।

पहली कमाई से चमकी आंखे : पूर्णतया सामान्य हो चुके गोविंद ने गत पांच दिसम्बर को पहली बार मजदूरी के तौर पर हाथ ठेला चलाया तो उसे चालीस रुपए मिले। अपनी कमाई के रुपए देख कर गोविंद की आंखों में चमक आ गई जबकि उसकी मां मोहनी व भाई मोहन गोविंद की कमाई को देख उसके बारे में सपने संजोने लगे है।
गोविंद ने किया मतदान : विधानसभा चुनाव के तहत गत चार दिसम्बर को गोविंद का भाई मोहन जब मतदान के लिए गया तो उसे ज्ञात हुआ कि उसका नाम को मतदाता सूची में नहीं है जबकि गोविंद का नाम है। गोविंद के पास फोटो पहचान पत्र नहीं होने से मतदान करने से हिचक रहा था। इसी बीच राजकुमार दक को इसकी जानकारी होने पर वह गोविंद को लेकर निर्धारित बूथ पर पहुंचे और पीठासीन अधिकारी के समक्ष पहचान के अन्य दस्तावेज प्रस्तुत कर गोविंद से मतदान करवाया।