व्यवस्थाओं की जटिलताओं और व्यक्ति में आती जा रही नििष्क्रयाओं के कारण प्रत्येक क्षेत्र में दलालों पर आश्रित रहने की प्रवृति जोरों से बढती जा रही है। उद्योग, व्यवसाय, रोजगार और राजनीति के क्षेत्र में व्यक्ति अपने काम के लिए आत्मनिर्भर नहीं रह गया है। िशक्षा, स्वास्थ्य और जन कल्याण के कामों में अब तो व्यक्ति समय नहीं निकाल पा रहा है। भौतिकवादी युग में प्रतिस्पद्धाZ की चकाचौंध में फंस कर व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ हासिल करना चाहता है। अपनी आवश्यकता और आंकाक्षाओं की पूर्ति के लिए अब बिचौलियों और दलालो के माध्यम पर आश्रित रहना पड रहा है।
घर पहुंच सेवा के नाम पर भी दलालों की एजेंसिया खूब सक्रिय है। व्यक्ति भी व्यवस्थाओं की जटिलताओं से दूर भागना चाहता है और वह अपने काम को पूरा करने के िलिए इन एजेंसियों का सहारा लेता है। आज व्यक्ति रेलवे टिकट के आरक्षण के लिए भी रेलवे स्टेशनों की टिकट खिडकी की लम्बी कतारों से बचना चाहता है और अपना नम्बर आने तक प्रतिक्षा नहीं करना चाहता है। ऐसे में वह दलालों के माध्यम से टिकट क्रय करने और अपना आरक्षण कराने के लिए शॉर्टकट का रास्ता अपना रहा है। कमीशन देकर निजी बुकिंग एजेंसियों से आरक्षण कराने की प्रवृति भी अब आम आदमी की बन गई है। हालांकि बुकिंग एजेंसियों की हरकते भी कई बार आम लोगों को महंगी पड जाती है फिर भी इस तरह की एजेंसियां खूब पनप रही है। ऐसी एजेंसियां स्थापित हो गई जिनमें आप मात्र एक फोन करके अपने जरूरत की उपभोक्ता वस्तुएं कमीशन देकर प्रापत कर सकते है। उपभोक्ताओं और बाजार के बीच दूरियां इस दलाली प्रथा से कम हो गई है। व्यक्ति आज इतना अधिक सुविधा भोगी, आराम तलब यां यूं कहे कि अपने स्वयं और परिवार के प्रति अपने कर्तव्य की और उतरदायित्व के निर्वहन के प्रति नििष्क्रय हो गया है। वह कमीशन बांट-बांट कर अपनी दिनचर्या की आवश्यकता और अपने प्रशासनिक, व्यावसायिक और सामाजिक कार्य को सम्पन्न करा रहा है।
घर पहुंच सेवा के नाम पर भी दलालों की एजेंसिया खूब सक्रिय है। व्यक्ति भी व्यवस्थाओं की जटिलताओं से दूर भागना चाहता है और वह अपने काम को पूरा करने के िलिए इन एजेंसियों का सहारा लेता है। आज व्यक्ति रेलवे टिकट के आरक्षण के लिए भी रेलवे स्टेशनों की टिकट खिडकी की लम्बी कतारों से बचना चाहता है और अपना नम्बर आने तक प्रतिक्षा नहीं करना चाहता है। ऐसे में वह दलालों के माध्यम से टिकट क्रय करने और अपना आरक्षण कराने के लिए शॉर्टकट का रास्ता अपना रहा है। कमीशन देकर निजी बुकिंग एजेंसियों से आरक्षण कराने की प्रवृति भी अब आम आदमी की बन गई है। हालांकि बुकिंग एजेंसियों की हरकते भी कई बार आम लोगों को महंगी पड जाती है फिर भी इस तरह की एजेंसियां खूब पनप रही है। ऐसी एजेंसियां स्थापित हो गई जिनमें आप मात्र एक फोन करके अपने जरूरत की उपभोक्ता वस्तुएं कमीशन देकर प्रापत कर सकते है। उपभोक्ताओं और बाजार के बीच दूरियां इस दलाली प्रथा से कम हो गई है। व्यक्ति आज इतना अधिक सुविधा भोगी, आराम तलब यां यूं कहे कि अपने स्वयं और परिवार के प्रति अपने कर्तव्य की और उतरदायित्व के निर्वहन के प्रति नििष्क्रय हो गया है। वह कमीशन बांट-बांट कर अपनी दिनचर्या की आवश्यकता और अपने प्रशासनिक, व्यावसायिक और सामाजिक कार्य को सम्पन्न करा रहा है।