मुफलिसी को उन्होंने नियति मान लिया है। दो बेटियों के हाथ पीले करने की चिंता उन्हें पल-पल परेशान करती है। पचास साल पुराना आशियाना भी उनसे छिन चुका है। किराए के एक छोटे से मकान मे जिंदगी बसर कर रहे हैं। समय काटे नहीं कट रहा था। इसलिए समय बिताने के लिए उन्होंने बहाना ढूंढ ही लिया। 19 वर्षो की कड़ी मेहनत रंग लाई। पांच हजार छह सौ करोड़ वर्ष का कैलेंडर बना कर अब वे अपना नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड व लिम्का बुक में दर्ज कराना चाहते हैं। उस व्यक्ति का नाम है-रामचंद्र। दैनिक जागरण के बाहरी दिल्ली कार्यालय में आकर उन्होंने उपलब्धि और इरादों की जानकारी दी।
कनखल में किराए के मकान में जिंदगी बसर कर रहे रामचंद्र का जन्म 7 मार्च, 1954 में मुंबई के उल्लास नगर में हुआ था। मायानगरी में कारोबार में घाटा होने पर पिता ज्ञानचंद के साथ हरिद्वार के परमानंद भंडार आश्रम में आकर रहने लगे। हरिद्वार में उन्होंने कई छोटे-मोटे कारोबार किए, लेकिन किस्मत ने यहां भी साथ नहीं दिया। जिंदगी की जंग से हार मान कर वे पिता पर ही आश्रित हो गए। ऐसे में जिंदगी का हर पल उन्हें काटने दौड़ता था। 1986 में उन्होंने समय काटने का बहाने राम नाम लेखन का बहाना ढूंढ लिया। 1990 में राम नाम लेखन से मन हटने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने सौ वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। कैलेंडर बनाने में रुचि बढ़ी तो उन्होंने दो, चार, आठ और 16 सौ वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। फिर 2004 में चार हजार वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। इसके बाद परिस्थितियां विपरीत हो गई। उन्होंने इस बार भी हिम्मत नहीं हारी और 2005 में 600 करोड़ वर्ष का कैलेंडर तैयार कर लिया। इसके अलावा उन्होंने पोस्टकार्ड साइज में भी कैलेंडर तैयार किया है। इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिलती है।
रामचंद्र ने बताया कि राम नाम लेखन कर कैलेंडर का नक्शा बनाते हैं। फिर शताब्दी, तारीख व महीना आदि भरते हैं। 12 पेज में एक शताब्दी का कैलेंडर तैयार करने में उन्हें महारत हासिल है। कोई भी व्यक्ति इस कैलेंडर के माध्यम से 1001 वर्ष से लेकर पांच हजार 600 करोड़ वर्ष तक की जानकारी हासिल कर सकता है। इसे तकनीकि रूप से बनाया गया है। YAHOO
कनखल में किराए के मकान में जिंदगी बसर कर रहे रामचंद्र का जन्म 7 मार्च, 1954 में मुंबई के उल्लास नगर में हुआ था। मायानगरी में कारोबार में घाटा होने पर पिता ज्ञानचंद के साथ हरिद्वार के परमानंद भंडार आश्रम में आकर रहने लगे। हरिद्वार में उन्होंने कई छोटे-मोटे कारोबार किए, लेकिन किस्मत ने यहां भी साथ नहीं दिया। जिंदगी की जंग से हार मान कर वे पिता पर ही आश्रित हो गए। ऐसे में जिंदगी का हर पल उन्हें काटने दौड़ता था। 1986 में उन्होंने समय काटने का बहाने राम नाम लेखन का बहाना ढूंढ लिया। 1990 में राम नाम लेखन से मन हटने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने सौ वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। कैलेंडर बनाने में रुचि बढ़ी तो उन्होंने दो, चार, आठ और 16 सौ वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। फिर 2004 में चार हजार वर्ष का कैलेंडर तैयार किया। इसके बाद परिस्थितियां विपरीत हो गई। उन्होंने इस बार भी हिम्मत नहीं हारी और 2005 में 600 करोड़ वर्ष का कैलेंडर तैयार कर लिया। इसके अलावा उन्होंने पोस्टकार्ड साइज में भी कैलेंडर तैयार किया है। इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिलती है।
रामचंद्र ने बताया कि राम नाम लेखन कर कैलेंडर का नक्शा बनाते हैं। फिर शताब्दी, तारीख व महीना आदि भरते हैं। 12 पेज में एक शताब्दी का कैलेंडर तैयार करने में उन्हें महारत हासिल है। कोई भी व्यक्ति इस कैलेंडर के माध्यम से 1001 वर्ष से लेकर पांच हजार 600 करोड़ वर्ष तक की जानकारी हासिल कर सकता है। इसे तकनीकि रूप से बनाया गया है। YAHOO