सूरत। पहले ही कुदरत की नाइंसाफी ऊपर से जन्मदाताओं का तिरस्कार आपस में जुडें नवजातों पर भारी पड रहा है। चिकित्सक भले ही सलाह देते हों कि जन्म के बाद का पहला स्तनपान बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है लेकिन इन जुडवा बदनसीबों को न तो मां का दूध नसीब हुआ है ना ही पिता का प्यार भरा स्पर्श। चिकित्सकों के लिए परीक्षण और अनुसंधान का माध्यम बन चुके इन बच्चों को मां-बाप दोनों ने अपनाने से इनकार कर दिया है। अब ना तो अपनों का साथ है ना ही किस्मत पर भरोसा...उस पर कुदरत भी रूठी हुई है। अब तो ये किस्मत पर निर्भर हो गए हैं। बच्चों की दुनिया मां के आंचल से शुरू होकर पिता के मजबूत कंधों के भरोसे पर निर्भर होती है लेकिन आपस में जुडे इन बच्चों को शायद यह सुख नसीब नहीं है। माता-पिता भी कुदरत के इस मजाक का दर्द झेल रहे हैं। रसिला और प्रवीण की तमन्ना थी कि बडी बेटी के जन्म के बाद इस बार उनके घर बेटा पैदा हो। परंतु किसे पता था कि उनकी यह आस इस तरह पूरी होगी। दोनों ही इन बच्चों को साथ नहीं ले जाने का मानस बना चुके हैं। दोनों का कहना है कि जब उन्हें इन बच्चों को देखने में ही डर लगता है फिर सार संभाल कैसे कर सकेंगे। माता रसिला ने तो इन्हें अब-तक देखा भी नहीं है। मां की ममता को लेकर हजारों किस्से और कहानियां प्रचलित हैं लेकिन कोई मां संगदिल भी हो सकती है इसे शायद कोई नहीं माने। न्यू सिविल अस्पताल में एफ तीन वॉर्ड आईसीयू के नजदीक होने के बावजूद इस मां ने एक नजर बच्चों को नहीं देखा है। रसिला कहती है, इन्हें देखना तो दूर मुझे इनके बारे में सुनकर की चक्कर आने लगते हैं। मेरी कोख से जन्में इन बच्चों को देखने से मैं डरती हूं। जानती हूं इन्हें इस वक्त सबसे अधिक मां की जरूरत है लेकिन इन्हें गोदी में लेने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाऊंगी। रसिला का कहना है कि मैं इन्हें कभी नहीं देखूंगी और ना ही फिर मां बनने के बारे में सोचूंगी। ऎसे बच्चों को जन्म देकर मैंने अपने व परिवार के लिए विकट स्थिति पैदा कर दी है। मेरी बेटी तृप्ती ने अपने भाईयों को ना तो देखा है और ना ही उसे इनके बारे में पता लगने दिया जाएगा। काठियावाड के सावरकुंडला तहसील के थोरडी गांव में रहने वाले प्रवीण और रसिला कामरेज में मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते हैं। प्रवीण का कहना है, नहीं चाहिए हमें ये बच्चे...इन्हें पालना हमारे बस की बात नहीं है। अव्वल तो इनसे डर लगता है और दूसरे इनके इलाज पर खर्च उनकी क्षमता से बाहर है।