Saturday, February 28, 2009

बांग्लादेश की बगावत का पाक कनेक्शन

बांग्लादेश की खूनी बगावत के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिलने लगे हैं। कुछ बागियों
ने पूछताछ में सलाउद्दीन कादिर चौधरी का नाम लिया है। शिपिंग व्यवसायी चौधरी विपक्षी खालिदा ज़िया की पार्टी बीएनपी और पाकिस्तानी मिलिटरी इंटेलिजंस के काफी करीब माने जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक बागियों को एक करोड़ टाका की आर्थिक मदद भी दी गई। चौधरी बीएनपी की मुखिया बेगम खालिदा ज़िया के काफी करीबी हैं और वर्ष 2004 के चर्चित चिटगांव हथियार कांड से जुड़े हुए हैं। उस समय हथियार से भरे शिप बरामद किए गए थे। माना जाता है कि ये हथियार चरमपंथी संगठन अल्फा के लिए ले जाया जा रहा था। दरअसल, बताया जा रहा है कि बगावत की मूल वजह प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा 'युद्ध अपराधियों' के लिए ट्राइब्यूनल की स्थापना करने की घोषणा है। गौरतलब है कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना और उसके समर्थकों ने लोगों पर काफी अत्याचार किए थे। ट्राइब्यूनल के जरिए हसीना इन 'युद्ध अपराधियों' को कानून के कठघरे में लाना चाहती हैं। इसको लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश में काफी लोग असहज हैं। पाकिस्तान के प्रेजिडेंट आसिफ अली ज़रदारी ने शेख हसीना के पास संदेश भी भेजा था कि वह ऐसा कदम न उठाएं, क्योंकि इससे पाकिस्तानी सेना की काफी किरकरी हो सकती है। उन्हीं पाकिस्तान परस्त ताकतों की है जो इस्लाम मजहब के कट्टरपंथ में आस्था रखती हैं। इन सब में आगे है जमात-ए-इस्लामी जिसने स्वतंत्रता संग्राम का विरोध किया और पूर्वी पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को ऐसे सैकड़ों कट्टरपंथी जवान दिए जिन्होंने बांग्लादेशी बुद्धिजीवियों, कवियों, लेखकों, शिक्षकों और कलाकारों को चुन-चुनकर मारा। सूत्र यह भी बताते हैं कि बांग्लादेश राइफल्स के बागियों के निशाने पर सेनाध्यक्ष मोईन अहमद और शेख हसीना थीं। सूत्रों का यह भी कहना है कि जिस तरह से कई सामूहिक कब्रें मिली हैं, वह इस बात का प्रमाण है कि बांग्लादेश राइफल्स में निचले और मध्य दर्जे के अधिकारियों पर कट्टर इस्लामी विचारधारा पूरी तरह से हावी हो चुकी है। बांग्लादेश राइफल्स पर जमात-ए-इस्लामी और जमात-उल-मुजाहिदीन जैसे कट्टरपंथी संगठनों का काफी प्रभाव है।