औद्योगिक नगर की प्रतिष्ठा शरभपुरिया और पांडूवंशीय काल में सिरपुर का वैभव एक महान राजधानी के तौर पर था लेकिन हाल में मिले साक्ष्यों से इस बात की पुष्टि हो गई है कि इससे पहले भी इसकी ख्याति औद्योगिक उत्पादनों के लिए थी। सातवाहनों का प्रभुत्व इस नगर पर तीसरी सदी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी तक रहा।
इन दिनों सिरपुर में शहर संरचना के टीला क्रमांक 30 में खुदाई चल रही है। उत्खनन के निदेशक डा. अरुण शर्मा ने बताया कि वहां पानी के बड़े कुंड के पास एक कमरा मिला है। इसमें सोने के गहने और कांच की चूड़ियों की ढलाई होती थी। 10 सेमी लंबा और ढाई सेमी चौड़ा स्लेटी प्रस्तर खंड पर एक ऐसा सांचा मिला है जिसमें बारीक नक्काशीदार आकृतियां हैं।
सिरपुर की प्राचीन राजधानी के वैभव के साथ औद्योगिक छवि उभरने लगी है। वहां से सोने के गहने और कांच की चूड़ियां ढालने की फैक्ट्री मिली हैं, जिसे दो हजार वर्ष पहले की सातवाहन काल का बताया जाता है।
सोने को गलाने के बाद इसमें डाला जाता था। आम और कई आकर्षक आकृतियों में गहनों की ढलाई कर ली जाती। गहने ही नहीं यहां बनाई जाने वाली कांच की चूड़ियों की मांग देश के कई हिस्सो में होती थी।
इसी कमरे से एक किलो मिट्टी से ज्यादा की आकृतियां टूटी-फूटी हालत में मिली हैं। पुराविदों का दावा है कि इनका इस्तेमाल कांच की चूड़ियां ढालने में होता था। सोने-चांदी और कांच का सामान पिघलाने में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के पात्र भी पाए गए हैं। इससे निष्कर्ष निकाला गया है कि वहां कारखाना काफी समृद्ध था। बड़े पैमाने पर गहने और कांच की चूड़ियों का उत्पादन कर इनका गुजरात, उड़ीसा समेत देश के कई हिस्सों में व्यापार होता था। BHASKAR
इन दिनों सिरपुर में शहर संरचना के टीला क्रमांक 30 में खुदाई चल रही है। उत्खनन के निदेशक डा. अरुण शर्मा ने बताया कि वहां पानी के बड़े कुंड के पास एक कमरा मिला है। इसमें सोने के गहने और कांच की चूड़ियों की ढलाई होती थी। 10 सेमी लंबा और ढाई सेमी चौड़ा स्लेटी प्रस्तर खंड पर एक ऐसा सांचा मिला है जिसमें बारीक नक्काशीदार आकृतियां हैं।
सिरपुर की प्राचीन राजधानी के वैभव के साथ औद्योगिक छवि उभरने लगी है। वहां से सोने के गहने और कांच की चूड़ियां ढालने की फैक्ट्री मिली हैं, जिसे दो हजार वर्ष पहले की सातवाहन काल का बताया जाता है।
सोने को गलाने के बाद इसमें डाला जाता था। आम और कई आकर्षक आकृतियों में गहनों की ढलाई कर ली जाती। गहने ही नहीं यहां बनाई जाने वाली कांच की चूड़ियों की मांग देश के कई हिस्सो में होती थी।
इसी कमरे से एक किलो मिट्टी से ज्यादा की आकृतियां टूटी-फूटी हालत में मिली हैं। पुराविदों का दावा है कि इनका इस्तेमाल कांच की चूड़ियां ढालने में होता था। सोने-चांदी और कांच का सामान पिघलाने में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के पात्र भी पाए गए हैं। इससे निष्कर्ष निकाला गया है कि वहां कारखाना काफी समृद्ध था। बड़े पैमाने पर गहने और कांच की चूड़ियों का उत्पादन कर इनका गुजरात, उड़ीसा समेत देश के कई हिस्सों में व्यापार होता था। BHASKAR