नेपाल में सेना प्रमुख रुक्मांगद कटवाल की बर्खास्तगी पर राष्ट्रपति रामबरन यादव और प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड आमने-सामने आ गए हैं। राम बरन यादव ने बर्खास्तगी के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कटवाल को अपने पद पर बने रहने का निर्देश दिया है। इससे पहले जनरल कटवाल ने भी प्रधानमंत्री के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। इससे देश में गंभीर राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। इस बीच, प्रधानमंत्री प्रचंड ने इस राजनीतिक संकट पर विचार करने के लिए सोमवार दोपहर एक बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई है। इसके बाद वह राष्ट्र को संबोधित भी करने वाले हैं। प्रचंड ने सेनाध्यक्ष को सरकारी आदेशों के उल्लंघन के आरोप में हटाने का फैसला किया था। दरअसल माओवादियों की इच्छा थी कि पूर्व माओवादी विद्रोहियों को सेना में शामिल कर लिया जाए लेकिन जेनरल कटवाल इसके पक्ष में नहीं हैं। प्रचंड के फैसले के बाद देश की पहली निर्वाचित सरकार संकट में आ गई है। सरकार में दूसरे सबसे बड़े दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इससे माओवादियों के नेतृत्व वाली सरकार अल्पमत में आ गई है। इस बीच, 18 राजनीतिक पार्टियों ने प्रधानमंत्री प्रचंड के कदम से असहमति जताते हुए राष्ट्रपति से संविधान की रक्षा करने की गुहार लगाई थी। राष्ट्रपति यादव ने सराकर के फैसले को दरकिनार कर दिया और रविवार देर रात जनरल कटवाल को खत लिखकर साफ निर्देश दिया कि वह आर्मी चीफ बने रहें। इस खत की प्रतियां सेना के छहों क्षेत्रीय कार्यालयों को भी भेज दी गई हैं। इससे पहले राष्ट्रपति ने कहा था कि कटवाल को बर्खास्त करने के लिए सरकार संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करे और इस मसले पर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास करे। इधर नेपाल की सरकार ने राष्ट्रपति पर ही संविधाने के उल्लंघन का आरोप लगा दिया है। माओवादी सरकार के प्रवक्ता और नेपाल के सूचना एवं प्रसारण मंत्री कृष्ण बहादुर महारा ने कहा कि सेना प्रमुख को नियुक्त अथवा बर्खास्त करने की कार्यकारी शक्ति सरकार के पास है, ना कि राष्ट्रपति के पास। उन्होंने कहा कि हम अपने फैसले पर अडिग हैं और सरकार छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता।