कुछ महीने पहले सीबीआई ने गायब मोबाइल, वारदात में इस्तेमाल हथियार और की रिंग के बारे में सुराग देने वालों को एक लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की थी। चूंकि सीबीआई कोई नया खुलासा नहीं कर पाई है और न ही चार्जशीट दाखिल कर पाई है, इससे साफ है कि सीबीआई को अब तक न तो वारदात में इस्तेमाल हथियार मिला है और न ही हेमराज और आरुषि के गायब मोबाइल फोन। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी का कहना है कि अगर सीबीआई अब वारदात में इस्तेमाल हथियार या मोबाइल बरामद कर भी लेती है तो ये अदालत में अहम साक्ष्य बनेंगे, इसमें संदेह है। हथियार की बरामदगी अभियुक्तों के इकबालिया बयान के आधार पर होती है। इस मामले के अभियुक्तों को जब सीबीआई ने रिमांड पर लिया था, तब अगर हथियार की बरामदगी दिखाई जाती तो वह एविडेंस ऐक्ट के तहत कोर्ट में मान्य होता। अब अगर बरामदगी दिखाई जाती है तो वह साक्ष्य नहीं माना जाएगा और अदालत में जिरह के दौरान बचाव पक्ष कह सकता है कि हथियार प्लांट किए गए हैं। जानेमाने क्रिमिनल लॉयर पंडित आर. के. नसीम ने कहा कि अब इस केस को सॉल्व करना काफी कठिन है। अब अगर कोई शख्स किसी दूसरे केस में पकड़ा जाता है और वह खुद आरुषि केस में हाथ होने की बात स्वीकारता है, तभी सीबीआई को कुछ लीड मिल सकती है। जांच का नियम यह होता है कि जांच एजंसी क्राइम से क्रिमिनल तक पहुंचे। इस मामले में जब क्राइम हुआ तो पहले नोएडा पुलिस ने क्राइम सीन को चौपट कर दिया। फिर जब सीबीआई को केस सौंपा गया तो सीबीआई को जिन लोगों से इस मामले में कुछ क्लू मिलता, उन्हीं को अभियुक्त बना दिया। जांच काल्पनिक तरीके से की जाने लगी और नतीजा सिफर है। सीबीआई अब तक क्लू लेस है और यही कारण है कि जिन्हें अभियुक्त बनाया गया उन्हें जमानत मिल गई। अब अगर हत्या में इस्तेमाल हथियार मिल भी जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि इतने दिनों तक उस पर खून आदि के निशान मिलने का सवाल पैदा नहीं होता। अगर हत्या फायर आर्म्स से हुई होती, डेड बॉडी से बुलेट मिले होते और फायर आर्म्स की बरामदगी होती तो सीएफएसएल रिपोर्ट से केस लिंक हो सकता था। इस मामले में खुखरी जैसे हथियार से हत्या की बात कही गई है, ऐसे में अब बरामदगी से कोई लाभ नहीं होगा। NBT