सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही जिस छात्र की दाढ़ी रखने का अधिकार दिलाने की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह इस देश के तालिबानीकरण की इजाजत नहीं देगा, वह छात्र एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है। उसने अदालत के उसी फैसले को एक नई याचिका के जरिए चुनौती दी है। अपनी नई याचिका में छात्र सलीम ने अदालत से उस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। सलीम ने कहा है कि अदालत की तालिबानीकरण संबंधी टिप्पणी से देश और न्यायपालिका की छवि को तो नुकसान हुआ ही है, मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को भी चोट पहुंची है। वकील अब्दुल करीम अंसारी के जरिए सलीम ने कहा है कि अदालत के उस फैसले पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है क्योंकि स्कूल ने मुस्लिम के दाढ़ी रखने के उस अधिकार का उल्लंघन किया है जिसकी गारंटी संविधान की धारा 25 में दी गई है। धारा 25 में हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने की आजादी दी गई है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के एक सरकारी मान्यता प्राप्त माइनॉरिटी स्कूल के छात्र सलीम ने स्कूल प्रबंधन के उस निर्देश को अदालत में चुनौती दी थी जिसके मुताबिक स्कूल का कोई छात्र दाढ़ी नहीं रख सकता था। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जब स्कूल के निर्देश में कुछ भी गलत नहीं पाया, तब सलीम सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी अपील खारिज कर दी और कहा कि देश के तालिबानीकरण की इजाजत नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि माइनॉरिटी स्कूलों के अपने नियम होते हैं जिसकी छूट संविधान ने उन्हें दी है। अगर नियम है तो उसका पालन करना होगा। कल कोई कह सकता है कि मैं युनिफॉर्म नहीं पहनूंगा, तो क्या होगा?