भारत ने कहा है कि नाइजीरिया में जो मलेरिया रोधक इन दवाओं की खेप पकड़ी गई है , असल में वे चीन से आई थीं। भारत इस मुद्दे पर चीन से अपना कड़ा विरोध जताने जा रहा है। वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि दवा की उस खेप के जरिए भारत के फार्मा उद्योग की छवि खराब की जा रही है , वास्तव में जिसका उत्पादन चीन में हुआ है। बयान में कहा गया है , अवांछित तत्वों ने भारतीय जेनरिक फार्मा उद्योग की छवि खराब करने की कोशिश की है , जिसे हमने गंभीरता से लिया है। पेइचिंग में भारतीय दूतावास से इस मसले पर चीनी अधिकारियों के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराने को कहा गया है। साथ ही भारत के फार्मा उद्योग की छवि खराब करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग भी की जाएगी। बयान के अनुसार , सरकार के दवा नियामक प्राधिकरण ( NAFDAC) ने खबर दी थी कि नाइजीरिया में मेड इन इंडिया मलेरिया रोधक नकली दवाओं की खेप पकड़ी गई है , लेकिन असलियत में इन दवाओं का उत्पादन चीन में हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक , NAFDC की जांच से पता चला है कि ये दवाएं नकली हैं और अगर ये पकड़ में नहीं आई होतीं , तो इससे 6,42,000 बालिग लोग प्रभावित होते। नाइजीरिया में भारतीय उच्चायुक्त के अनुसार , इस खेप में 3.21 करोड़ नायरा मूल्य की मैलोक्सिन और अमलार दवाएं शामिल थीं। इनका उत्पादन , पैकिंग और शिपमेंट चीन से हुआ था। वाणिज्य मंत्रालय ने पहले ही भारत में चीन के राजदूत जांग यान से अपनी गंभीर चिंता जताई है। साथ ही भारत ने इस मसले पर चीन से कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। बयान में कहा गया है कि भारत उम्मीद करता है कि चीन इस मामले में कड़े उपाय करेगा। भारत अफ्रीका में जेनरिक दवाओं के क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। भारत का फार्मा उद्योग 12 अरब डॉलर का है। इसमें से 40 प्रतिशत हिस्सेदारी दुनिया के विभिन्न देशों को निर्यात की गई जेनरिक दवाओं की है। दवा निर्यात के मामले में भारत को विदेशी बाजारों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।