भगवान ऋषभदेव के जन्मोत्सव मेले के तहत गुरुवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा हुए। चैत्र कृष्णा अष्टमी को तड़के गजर बजने व 21 बंदुकों की सलामी के साथ मेला शुरू हुआ, जो शाम तक परवान पर रहा।
सुबह 6 बजे गजर बजने के साथ 21 बंदुकों की सलामी और धुलैव बैंड की धुन पर बिखरे भक्ति गीतों के बीच ‘आलकी रे पालकी, जय केशरिया लाल की’ जयकारे के साथ मंदिर के पट खुले। इसी के साथ केसरियाजी जन्मोत्सव मेला शुरू हुआ। दिनभर विविध अनुष्ठान चले। लोगों ने दर्शन-पूजन के साथ मेला परिसर में लगी दुकानों में जमकर खरीदारी की। इस बार घरेलू उपयोग, श्रंगार प्रसाधन और खाद्य सामग्री की खूब बिक्री हुई।
आसपास के गांवों से बुधवार शाम ही लोग पहुंचना शुरू हो गए थे, जो सुबह कुंवारिया नदी, पगल्याजी बावड़ी, सूरजकुंड आदि स्थानों पर नहाकर पारंपरिक वेष में पूजा करने पहुंचे। मंदिर जलघड़ी के अनुसार सात बजकर बीस मिनट पर जलाभिषेक, उसके बाद दुग्धाभिषेक, केसर पूजा और आरती हुई। दोपहर तक पूजा-अर्चना का दौर चलता रहा। इस बीच दोपहर 12 से डेढ़ बजे तक मुख्य शिखर पर ध्वजा धराई गई।
शाम चार बजे निज मंदिर से रजत रथ में विराजित भगवान ऋषभदेव की शोभायात्रा शुरू हुई। जैसे ही रथ आगे बढ़ा पूरा परिसर धुलेवा धणी, कालिया बावसी, केसरियालाल के जयकारों से गूंज उठा। इंद्रध्वज व पुतलियों से सजी गाड़ी को बैलों ने खींचा। धुलेव का बैंड अपने अंदाज में स्वर लहरियां बिखेरता चल रहा था। पीछे धुलेव के जवान बंदुके लिए थे। सजे-धजे अश्व भी छुनछुनाते घुंघरुओं की गमक के साथ आगे बढ़े। बिलख पाल के भक्त व श्रद्धालु भजन गाते चल रहे थे। अंत में चांदी के सजेधजे रथ में भगवान ऋषभदेव सुशोभित थे। यात्रा ऋषभ चौक, जोहरी बाजार, सदर बाजार, नेहरू बाजार, पाटूना चौक, हॉस्पिटल रोड होते हुए पगल्याजी पहुंची। यहां ऋषभदेव की पूजा अर्चना कर आरती की। वापसी में आजाद नीम के नीचे पहुंचने पर भगवान की आरती की गई। इसके बाद निज मंदिर पहुंचने पर मंदिर में गुलाल धारण करा मंगल आरती की। मध्य रात्रि के बाद फिर मंदिर खोला गया। जन्म कल्याणक की आरती की बोलियां लगी, जिसमें श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
सुबह 6 बजे गजर बजने के साथ 21 बंदुकों की सलामी और धुलैव बैंड की धुन पर बिखरे भक्ति गीतों के बीच ‘आलकी रे पालकी, जय केशरिया लाल की’ जयकारे के साथ मंदिर के पट खुले। इसी के साथ केसरियाजी जन्मोत्सव मेला शुरू हुआ। दिनभर विविध अनुष्ठान चले। लोगों ने दर्शन-पूजन के साथ मेला परिसर में लगी दुकानों में जमकर खरीदारी की। इस बार घरेलू उपयोग, श्रंगार प्रसाधन और खाद्य सामग्री की खूब बिक्री हुई।
आसपास के गांवों से बुधवार शाम ही लोग पहुंचना शुरू हो गए थे, जो सुबह कुंवारिया नदी, पगल्याजी बावड़ी, सूरजकुंड आदि स्थानों पर नहाकर पारंपरिक वेष में पूजा करने पहुंचे। मंदिर जलघड़ी के अनुसार सात बजकर बीस मिनट पर जलाभिषेक, उसके बाद दुग्धाभिषेक, केसर पूजा और आरती हुई। दोपहर तक पूजा-अर्चना का दौर चलता रहा। इस बीच दोपहर 12 से डेढ़ बजे तक मुख्य शिखर पर ध्वजा धराई गई।
शाम चार बजे निज मंदिर से रजत रथ में विराजित भगवान ऋषभदेव की शोभायात्रा शुरू हुई। जैसे ही रथ आगे बढ़ा पूरा परिसर धुलेवा धणी, कालिया बावसी, केसरियालाल के जयकारों से गूंज उठा। इंद्रध्वज व पुतलियों से सजी गाड़ी को बैलों ने खींचा। धुलेव का बैंड अपने अंदाज में स्वर लहरियां बिखेरता चल रहा था। पीछे धुलेव के जवान बंदुके लिए थे। सजे-धजे अश्व भी छुनछुनाते घुंघरुओं की गमक के साथ आगे बढ़े। बिलख पाल के भक्त व श्रद्धालु भजन गाते चल रहे थे। अंत में चांदी के सजेधजे रथ में भगवान ऋषभदेव सुशोभित थे। यात्रा ऋषभ चौक, जोहरी बाजार, सदर बाजार, नेहरू बाजार, पाटूना चौक, हॉस्पिटल रोड होते हुए पगल्याजी पहुंची। यहां ऋषभदेव की पूजा अर्चना कर आरती की। वापसी में आजाद नीम के नीचे पहुंचने पर भगवान की आरती की गई। इसके बाद निज मंदिर पहुंचने पर मंदिर में गुलाल धारण करा मंगल आरती की। मध्य रात्रि के बाद फिर मंदिर खोला गया। जन्म कल्याणक की आरती की बोलियां लगी, जिसमें श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।