बिहार के एक गाँव के 100 से अधिक कुंवारों ने शादी के लिए छह किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का बीड़ा उठा लिया है। पश्चिमी बिहार में कैमूर पहाड़ियों पर स्थित बरवान कलाँ गाँव आस-पास के इलाक़ों में “कुँवारों का गांव” के नाम से प्रसिद्ध है। इस गाँव के 16 वर्ष से 80 वर्ष तक के 121 निवासी अभी तक कुँवारे हैं। उनका मानना है कि वे इसलिए कुंवारे रह गए क्योंकि उनके गाँव तक पहुँचना कठिन है। ये कहा जाता है कि उस गांव में आख़िरी बार 50 साल पहले शादी हुई थी। एक 50 वर्षीय कुँवारे निवासी रामचंद्र खरवार ने बीबीसी को बताया “जो लोग अपनी शादी करने में सफल रहे उन्होंने भी यह काम चोरी-छिपे अपने रिश्तेदारों के गाँव में पनाह लेकर किया है जो उनके गाँव के मुक़ाबले कम बीहड़ हैं। ” बरवान कलाँ पहुंच पाना न सिर्फ़ मुश्किल है बल्कि बाहर वाले लोग उस इलाक़े से इसलिए भी भयभीत हैं कि वहाँ माओवादी सक्रिय हैं और वहां से अपने हथियारबंद अभियान चलाते हैं। खाद्य सामग्री की सप्लाई कम है। गांव में लगे पानी के छह हैंडपंप में से कोई भी चालू हालत में नहीं है, वहाँ के एकमात्र सरकारी स्कूल में कोई शिक्षक नहीं है। सबसे नज़दीकी पुलिस थाना और हस्पताल गांव से 45 किलोमीटर की दूरी पर है। विकास के आभाव के कारण बहुत से परिवार अपनी बेटियों की शादियाँ उस इलाक़े के कुंवारों के साथ करने के लिए राज़ी नहीं हैं। उस गांव के एक 40 वर्षीय कुंवारे रामलाल यादव ने अफ़सोस जताते हुए कहा “हमारे और बाहरी लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात मुश्किल पहाड़ी रास्ते हैं। ” सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रमा सिंह यादव का कहना है कि कुंवारों की बड़ी संख्या का कारण ये नहीं कि वे योग्य नहीं हैं बल्कि यह है कि उनके गांव को जोड़ने वाला कोई रास्ता नहीं है। पिछले असेंबली चुनाव में उस समय कुंवारे गांव वालों की उम्मीदें बढ़ी थीं जब आज़ादी के बाद से पहली बार उस गांव में किसी चुनाव प्रचार लिए आने वाले एक प्रत्याशी ने उनसे वादा किया था कि उनके विवाह की मुश्किलें आसान की जाएँगी। विधायक रामचंद्र सिंह ने 1500 की आबादी वाले गांव से वादा किया था कि वे जब तक उनके लिए एक सड़क हासिल नहीं कर लेते वह भी विवाह नहीं करेंगे। उनके वादे पर विश्वास करके गांव वालों ने रामचंद्र यादव को 2005 के विधानसभा चुनाव में जिताने में मदद की। लेकिन चुनाव जीतने के एक साल बाद ही असेंबली के नवनिर्वाचित सदस्य ने न सिर्फ़ अपनी शादी रचाई बल्कि गांव वालों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने के लिए बड़ी धूमधाम से शादी की। जब गांव वाले उन्हें उनका वादा याद दिलाने उनके पास पहुंचे तो उन्होंने गांव वालों से पूछा कि क्या उन्होंने ये विश्वास कर लिया था कि वे उनके लिए हमेशा अविवाहित रहेंगे। विधायक रामचंद्र सिंह ने अपने क़दम का ख़ुलासा करते हुए बीबीसी को बताया, “मैंने इस समस्या को उठाने की भरपूर कोशिश की। यहां तक कि मैंने विधानसभा में तीन साल में मैंने छह बार इस गांव के मुद्दे को उठाया। हम लोग अपने तौर पर भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते क्योंकि ये इलाक़ा वन्यजीव संरक्षण विभाग के अधीन आता है। ” इंतज़ार करके थक चुके गाँववालों ने अब अपनी ज़िम्मेदारी ख़ुद उठा ली है। फावड़े, छेनी, हथौड़े, कुल्हाड़े और दूसरी चीज़ों से लैस कुंवारों ने ख़ुद सड़क निर्माण का काम शुरू कर दिया है। पिछले डेढ़ महीने में उन्होंने पहाड़ी ज़मीन पर लगभग तीन किलोमीटर लंबे रास्ते का काम पूरा कर लिया है। अगर एक समूह बड़े-बड़े पत्थरों को रास्ते से हटाने पर लगा हुआ है तो दूसरा ग्रुप उनको छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर बिछाने में लगा हुआ है। काम दिन रात जारी है। गांव को पूरे भभुआ ज़िले से जोड़ने के लिए सिर्फ़ तीन किलोमीटर का रास्ता बनाना रह गया है। विवाह के एक उम्मीदवार 28 वर्षीय शिव खरवार ने कहा “हम लोग जल्द ही इसे बना लेंगे और दूसरे लोगों की तरह एक दिन हमारी भी शादी होगी। ” बाहर की दुनिया के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए सड़क बनाने में जुटे रोहित यादव, राम लाल, प्रचारी खरवर, देव नाथ, राजगृहा, रामाशीष जैसे लोगों ने भी यही आशा जताई। गांव के भूतपर्व मुखिया राम दयाल के मुताबिक़ इस सड़क के बन जाने से 40 किलोमीटर लंबा रास्ता बहुत छोटा हो जाएगा और आसपास के दस गाँव के लगभग 10 हज़ार लोग इस से लाभ उठा सकेंगे। दुर्भाग्य से गांव में शादियाँ बढ़ाने के मिशन पर निकले लोगों के सामने बड़ी क़ानूनी अड़चनें भी हैं। यह इलाक़ा वन्यजीवन संरक्षण वाले क्षेत्र में आता है जहां सड़क बनाने की कड़ी शर्तें हैं। ज़िला वन्य अधिकारी आरके राम ने कहा “गांव वाले जो कुछ कर रहे हैं वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है। हम लोग सारे ज़रूरी क़दम उठाएंगे। ” लेकिन गांव के कुंवारे अपने काम को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने एक आवाज़ में अपने औज़ार हवा में लहराकर कहा, “जो भी हो हम लोग छह किलोमीटर लंबी सड़क को बिना पूरा किए नहीं रुकेंगे। ”