मैं सुचित्रा कृष्णमूर्ति बुरे वक्त में मैं सबकुछ गणेशजी पर छोड़ देती हूं। मैं मानती हूं कि कोई उच्च शक्ति मेरा ख्याल रखेगी। मैं कर्म और नियति में भी भरोसा रखती हूं। मेरा मानना है कि जीवन एक यात्रा है और खुशियां हमारा धर्म। पहले के मुकाबले मेरे जीवन की उलझनें कम हुई हैं हालांकि अभी एक बहुत ही लंबा रास्ता बाकी है। खुद को इस लिहाज से आध्या त्मिक समझती हूं कि मैं ईश्वर में गहरी आस्था रखती हूं। मेरा यह भी मानना है कि ईश्वर किसी एक खास स्वरूप में विद्यमान नहीं रहता पर सर्वव्यापी है। यह वह एनर्जी फील्ड या चेतना का स्तर है जहां हम पहुंच सकते हैं यदि हम खुद को खुला रखें। मूर्तियों में मैं ईश्वर को नहीं तलाशती लेकिन कभी - कभी मुझे किसी मूर्ति में भी ईश्वर का एहसास हुआ है। मेरे हिसाब से ईश्वर वह है जिसे आप मन से महसूस कर सकते हैं। धार्मिक तो इतनी हूं कि पूजा - पाठ या परंपराओं का पालन मेरे जीवन का अहम हिस्सा है। एक अति धार्मिक परिवार में बड़े होने की वजह से यह मेरी परवरिश का एक अंग रहा है। मेरे पिता के पूर्वज मंदिर के पुजारी थे। अपनी जिंदगी में खासे समय तक मैंने परंपराएं निबाहीं पर बिना किसी आस्था के। यह तो जब मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया तब मेरी जिंदगी ने करवट बदली। मेरी परवरिश बहुत धार्मिक और पारंपरिक थी। और प्रार्थना एक ऐसी चीज़ थी जिस पर मेरे माता - पिता का सबसे ज़्यादा ज़ोर था ! मुझे याद है घर पर किस तरह पूजा होती थी। अगरबत्ती की सुगंध , इस अवसर पर पकाए गए पारंपरिक व्यंजनों की खुशबू , मां की कांजीवरम साड़ियां , घंटी की टनटन और मेरी लगातार कोशिश कि नीचे भाग जाऊं और खेलूं। मैं हर पूजास्थल पर जाती हूं - चाहे वह गुरुद्वारा हो या चर्च या मंदिर या दरगाह - और मुझे ऐसा करना पसंद है। इससे मुझे वहां के माहौल में तैरती ऊर्जा और तरंगों को आत्मसात करने का मौका मिलता है। मैं भाग्यशाली टोटकों या ताबीजों में भरोसा नहीं रखती लेकिन अपनी बिटिया को नजर न लगने का टीका ज़रूर लगाती हूं। मुझे बुरी नज़र में विश्वास है और इस बात में भी कि दूसरों की ऊर्जा हमें प्रभावित करती है। मैंने रत्न वगैरह भी पहने लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया क्योंकि मुझे लगा कि अंततः हम या हमारे आसपास के लोग जो सोचते हैं , उसका ही प्रभाव हमारे वर्तमान और भविष्य पर पड़ता है। मैं नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर ही रहती हूं। NBT