Tuesday, March 3, 2009

गीता न बन गयी पथ प्रदर्शक

पहले पढ़ाई, फिर सगाई। गीता के जिद के आगे किसी की नहीं चली। कच्ची उम्र में नारी सशक्तिकरण का यह मासूम एहसास है। एक साल पहले सासाराम प्रखंड के सिकरियां विद्यालय की कक्षा छह की 12 वर्षीया दलित छात्रा गीता ने शादी के तय रिश्ते को ठुकरा दिया था। उसके माता-पिता पर समाज की परंपरा की दुहाई दे सामाजिक दबाव भी पड़े। परंतु बेटी की जिद ने उन्हे मजबूती दी। बकौल पिता महदेवां निवासी योगेंद्र पासवान- शुक्र है जो गीता ने हमारा नजरिया ही बदल दिया। बेटी पर गर्व से सीना चौड़ा कर कहते है, इतना ही नहीं हमारे समाज की ढेर सारी लड़कियों का वह पथ प्रदर्शक बन गयी है। उसी की देखादेखी कई सहेलियों ने भी पढ़-लिखकर कुछ बने बिना शादी से इनकार कर दिया। माता आशा देवी अपने पति के हां में हां मिलाती रहीं। परंतु बेटी के सामने कैमरे का मुंह होते मना करती है। नहीं साहब फोटो मत लीजिए। सब कुछ के बावजूद हमें समाज का थोड़ा लाज तो रखना ही है न। बेटी की दृढ़ता के सामने मजबूर दिखी मां के सब्र का बांध टूट पड़ता है। कहती है, एक साल से फोटो छपने का ताना अब तक सुन रही हूं। फायदा क्या हुआ? चार बेटिया, दो बेटों के बीच रहने के लिये सही घर भी नहीं है। और ये गीता, जिसने हर बच्चों में पढ़ने की चाहत पैदा कर दी। कैसे चलाएं परिवार। न लाल कार्ड और न ही कोई सरकारी सहायता। अखबार में फोटो छपने से थोड़े हमारी गरीबी दूर होगी।
स्कूल में मीना मंच की सहेलियों से घिरी 13 वर्षीय गीता तपाक से कहती है, साहब अब मैं सातवीं में चली गई हूं। मेरे बाबूजी हमें मैट्रिक तक पढ़ाने को तैयार हो गए है। आज भी मैं बिना पढ़ाई पूरी किए शादी के लिये तैयार नहीं हूं। आपने हमारी फोटो छापी, उसके लिए हमें कई दिनों तक लोगों का ताना सुनना पड़ा था। प्रधानाध्यापक सुनील चौरसिया बताते है, गीता हमारे विद्यालय की मेधावी छात्रा है। पिछले साल हमें लगा था कि माता-पिता के दबाव में वह शादी के लिए राजी हो जाएगी। पर उसकी दृढ़ता के सामने हर कोई बौना साबित हुआ।