करीब पांच दशक तक प्रदेश की राजनीति के धुरी रहे पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की नाराजगी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए भारी साबित हो सकती है। पहले जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी की राज्य में जड़ जमाने वाले शेखावत को इन दिनों भाजपा ने बिल्कुल नजरंदाज कर रखा है। उपराष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद फिर से सक्रिय राजनीति में लौटने की इच्छा दबाने के बाद अब भाजपा नेतृत्व ने लोस चुनाव में उम्मीदवार तय करते समय भी सलाह नहीं ली। यही नहीं शेखावत के खास माने जाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को भी सिटिंग सांसद होने के बावजूद टिकट से मेहरूम रहना पड़ा। मेघवाल सार्वजनिक रूप से शेखावत को अपना भगवान बताते रहे हैं। जगदीश प्रसाद माथुर और भानू कुमार शास्त्री ने साथ मिलकर जनसंघ की स्थापना कर शेखावत ने राज्य के मतदाताओं के समक्ष गैर कांग्रेसी विकल्प पेश किया। कांग्रेस के खिलाफ सशक्त विपक्षी देने वाले शेखावत पांच दशक से भी अधिक अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में केवल एक बार राज्य विधानसभा से बाहर रहे और उस दौरान भाजपा आलाकमान ने उन्हें मध्यप्रदेश से राज्यसभा का सदस्य बनाया। हर बार निर्वाचन क्षेत्र बदलने वाले शेखावत ने हमेशा दो विस क्षेत्रों से चुनाव लड़ा और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्तमान में भाजपा में राजनीति कर रहे लगभग सभी नेता शेखावत के ही तैयार किए हुए माने जाते है, लेकिन अब यही नेता शेखावत को दरकिनार करने में जुटे हैं। उपराष्ट्रपति बनने के बाद से ही राज्य में भाजपा का एक वर्ग शेखावत को राजनीतिक रूप से कमजोर करने में जुट गया। पिछले छह-सात साल से मजबूत हुए इस वर्ग का ही दबाव रहा कि राज्य की राजनीति में फिर से सक्रिय होने का ऐलान शेखावत को वापस लेना पड़ा। इस गुट के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर ने पिछले कुछ सालों में शेखावत के समर्थकों को भी नुकसान पहुंचाना शुरू किया। अब हालात यहां तक आ गए कि शेखावत के काफी चाहने के बावजूद राज्य का नेतृत्व लोस चुनाव के उम्मीदवारों के चयन में उनकी राय भी नहीं ली गई। खुद को शेखावत का हनुमान कहने वाले कैलाश मेघवाल तक का टिकट काट दिया गया। हालांकि वसुंधरा राजे को राज्य की राजनीति में सक्रिय शेखावत ने किया।