राजसमंद। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अग्रिम संगठन राजस्थानी चिंतन परिषद मोटयार परिषद, महिला परिषद आदि कई संगठन राजस्थान दिवस पर राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने पर रोष व्यक्त किया है। संगठन के पदाधिकारियों के अनुसार प्रदेश की मातृभाषा विश्व में अपनी अनूठी पहचान बनाई है वहीं देश के राजनेता राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के प्रति गंभीर नहीं है।
हर वर्ष प्रदेश में 30 मार्च को राजस्थान दिवस बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में इस प्रदेश की रियासतों का एकीकरण किया गया। आजादी से पूर्व यह प्रदेश राजपूताना कहलाता था। मेवाड, मारवाड, वागड, शेखावटी, हाडौती, ढूंढार नाम से इस प्रदेश में कई छोटी बड़ी रियासते थी एवं इनकी राजभाषा राजस्थानी थी एवं सभी रियासतों में जो बोलियां बोली जाती उनकों एक मानकर राजस्थानी भाषा के नाम से मान्यता लेनी थी किंतु एकीकरण के समय इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया। आजादी के बाद 60 वर्ष बीत चुके है। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए सक्रिय संगठनों ने भी समय-समपर अपनी बात सत्ताधीशों के समक्ष रखी लेकिन अब तक वहीं ढाक के तीन पात है।
राजस्थान के राजसमन्द जिला जो महाराणा प्रताप की कर्मस्थली हल्दीघाटी और मेराथन ऑफ मेवाड दिवेर का साक्षी है और भारत की आजादी के दौर में यहां के स्वतंत्रता सैनानियों ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखी। इसी भूमि पर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता के लिए गठित संगठन चिंतन परिषद अपनी महत्ती भूमिका का निर्वाह कर रहा है। चिंतन परिषद के राजेन्द्र सिंह चारण के अनुसार जब प्रदेश की सभी रियासतों को मिला कर राजस्थान का नव निर्माण हो सकता है तो तो प्रदेश की सभी भाषा को मिलाकर राजभाषा की मान्यता क्यो नहीं मिल सकती।
राजस्थानी विश्व की समृद्धतम भाषाओं में से एक है। इसका 25 सौ वर्ष पुराना इतिहास है। इसमें लिखित लाखों हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालयों में पडे है। राजस्थानी लिपि मुडिया से ही हमारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी बनी। गुजराती की वर्तमान लिपि, पंजाबी की गुरुमुखी लिपि, राजस्थानी लिपि मुडिया की देन है। राजस्थानी लिपि मुडिया के अन्य नाम मोडी, वाणियावटी एवं महाजनी है। पाकिस्तान में जो राजस्थानी व्याकरण चलती है उसका नाम राजस्थानी कायदों है। अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की समृद्धतम सात भाषाओं में से एक मानकर राजस्थानी कवि कन्हैयालाल सेठिया की रचना की ऑडियो-वीडियो कैसेट तैयार कर संग्रहालय में रखी है। इसी कारण वर्तमान में राष्ट्रपति ओबामा ने भी सरकारी नौकरियों में इसे मान्यता दे डाली जिस पर चिंतन परिषद ने भी शुभकामनाएं प्रेषित की।
राजस्थानी के कई तरह के शब्द कोष है। पदम श्री सीताराम लालस का सबबे बडा राजस्थानी शब्द कोष है जिसमें दो लाख पचास हजार शब्द है। राजस्थानी की मेवाडी, वागडी, मालवी, मारवाडी, ढूंढाडी, हाडौती, मेवाती, ब्रज, खानाबदोश बोलियां इसके अंग है। डिंगल एवं पिंगल इसकी प्राचीन शास्त्रीय कविता की शैलियां है। विश्व की किसी भी भाषा में एक छंद के 120 भेद नहीं है।
पहली बार सरकार ने किया प्रयास : राजस्थान विधानसभा में 25 अगस्त 2005 को संकल्प प्रस्ताव पास करके केन्द्र के पास राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए भेजा। तब राजस्थान के करोडो लोगों को इस बात की उम्मीद जगी कि इस बार राजस्थान संविधान की आठवीं अनुसूची में जुड जाएगा लेकिन कतिपय राजनेताओं के बयानों ने न केवल राजस्थान के करोडो लोगों का दिल तोडा अपितु राजस्थानी के पुरानी इतिहास पर भी पानी फेर दिया।
भाषा नहीं तो जड नहीं : गौरवशाली इतिहास वाली भाषा राजस्थानी को मान्यता नहीं देना प्रदेशवासियों को अपनी जडो से काटना है। राजस्थान के 12 करोड लोगों का अपमान है। हमारे जनप्रतिनिधि हमारी भाषा में अन्य प्रांतो की तरह शपथ नहीं ले सकते है। यह जनतंत्र का हनन है। संविधान की त्रिभाषा सूत्र का हनन है। राजस्थान की जनता का र्धेय भाषा के नाम से बना हुआ है और अधिक उपेक्षा होने पर उग्र आंदोलन की संभावना बनती है।
राजसमन्द जिले ने निभाई भूमिका : राजसमन्द जिले में विगत वर्षो से कार्यरत चिंतन परिषद, मोटयार परिषद, महिला परिषद ने सक्रियता दिखाते हुए विधायक, सांसद, पार्टी जिलाध्यक्षों को समय-समय पर अवगत कराया है। यहां तक की राजनैतिक पार्टियों के पदाधिकारियों को चुनाव सामग्री भाषण सभी मातृभाषा में देने के लिए प्रेरित किया
संगठन की मांगे : राजस्थानी को कक्षा एक से दस तक अनिवार्य विषय के रूप में प्रारंभ किया जावे। संवैधानिक मान्यता के लिए जनप्रतिनिधि दबाव बनाए, विश्वविद्यालयों में राजस्थानी विभाग खोले, राजस्थानी फिल्म मनोरंजन कर मुक्त हो, राजस्थान लोक सेवा आयोग में समस्त परीक्षा में एक प्रश्न पत्र प्रारंभ किया जावे। अन्य प्रदेशों में जाने वाली रोडवेज बसो पर पधारो म्हारा देश लिखा जाए, राजस्थान दिवस एवं प्रमुख उत्सवों पर प्रदेश के कलाकारो, साहित्यकारों एवं कवियों को आमंत्रित कियाा जावे।
हर वर्ष प्रदेश में 30 मार्च को राजस्थान दिवस बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 30 मार्च 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में इस प्रदेश की रियासतों का एकीकरण किया गया। आजादी से पूर्व यह प्रदेश राजपूताना कहलाता था। मेवाड, मारवाड, वागड, शेखावटी, हाडौती, ढूंढार नाम से इस प्रदेश में कई छोटी बड़ी रियासते थी एवं इनकी राजभाषा राजस्थानी थी एवं सभी रियासतों में जो बोलियां बोली जाती उनकों एक मानकर राजस्थानी भाषा के नाम से मान्यता लेनी थी किंतु एकीकरण के समय इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया। आजादी के बाद 60 वर्ष बीत चुके है। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए सक्रिय संगठनों ने भी समय-समपर अपनी बात सत्ताधीशों के समक्ष रखी लेकिन अब तक वहीं ढाक के तीन पात है।
राजस्थान के राजसमन्द जिला जो महाराणा प्रताप की कर्मस्थली हल्दीघाटी और मेराथन ऑफ मेवाड दिवेर का साक्षी है और भारत की आजादी के दौर में यहां के स्वतंत्रता सैनानियों ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखी। इसी भूमि पर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता के लिए गठित संगठन चिंतन परिषद अपनी महत्ती भूमिका का निर्वाह कर रहा है। चिंतन परिषद के राजेन्द्र सिंह चारण के अनुसार जब प्रदेश की सभी रियासतों को मिला कर राजस्थान का नव निर्माण हो सकता है तो तो प्रदेश की सभी भाषा को मिलाकर राजभाषा की मान्यता क्यो नहीं मिल सकती।
राजस्थानी विश्व की समृद्धतम भाषाओं में से एक है। इसका 25 सौ वर्ष पुराना इतिहास है। इसमें लिखित लाखों हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालयों में पडे है। राजस्थानी लिपि मुडिया से ही हमारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी बनी। गुजराती की वर्तमान लिपि, पंजाबी की गुरुमुखी लिपि, राजस्थानी लिपि मुडिया की देन है। राजस्थानी लिपि मुडिया के अन्य नाम मोडी, वाणियावटी एवं महाजनी है। पाकिस्तान में जो राजस्थानी व्याकरण चलती है उसका नाम राजस्थानी कायदों है। अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की समृद्धतम सात भाषाओं में से एक मानकर राजस्थानी कवि कन्हैयालाल सेठिया की रचना की ऑडियो-वीडियो कैसेट तैयार कर संग्रहालय में रखी है। इसी कारण वर्तमान में राष्ट्रपति ओबामा ने भी सरकारी नौकरियों में इसे मान्यता दे डाली जिस पर चिंतन परिषद ने भी शुभकामनाएं प्रेषित की।
राजस्थानी के कई तरह के शब्द कोष है। पदम श्री सीताराम लालस का सबबे बडा राजस्थानी शब्द कोष है जिसमें दो लाख पचास हजार शब्द है। राजस्थानी की मेवाडी, वागडी, मालवी, मारवाडी, ढूंढाडी, हाडौती, मेवाती, ब्रज, खानाबदोश बोलियां इसके अंग है। डिंगल एवं पिंगल इसकी प्राचीन शास्त्रीय कविता की शैलियां है। विश्व की किसी भी भाषा में एक छंद के 120 भेद नहीं है।
पहली बार सरकार ने किया प्रयास : राजस्थान विधानसभा में 25 अगस्त 2005 को संकल्प प्रस्ताव पास करके केन्द्र के पास राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए भेजा। तब राजस्थान के करोडो लोगों को इस बात की उम्मीद जगी कि इस बार राजस्थान संविधान की आठवीं अनुसूची में जुड जाएगा लेकिन कतिपय राजनेताओं के बयानों ने न केवल राजस्थान के करोडो लोगों का दिल तोडा अपितु राजस्थानी के पुरानी इतिहास पर भी पानी फेर दिया।
भाषा नहीं तो जड नहीं : गौरवशाली इतिहास वाली भाषा राजस्थानी को मान्यता नहीं देना प्रदेशवासियों को अपनी जडो से काटना है। राजस्थान के 12 करोड लोगों का अपमान है। हमारे जनप्रतिनिधि हमारी भाषा में अन्य प्रांतो की तरह शपथ नहीं ले सकते है। यह जनतंत्र का हनन है। संविधान की त्रिभाषा सूत्र का हनन है। राजस्थान की जनता का र्धेय भाषा के नाम से बना हुआ है और अधिक उपेक्षा होने पर उग्र आंदोलन की संभावना बनती है।
राजसमन्द जिले ने निभाई भूमिका : राजसमन्द जिले में विगत वर्षो से कार्यरत चिंतन परिषद, मोटयार परिषद, महिला परिषद ने सक्रियता दिखाते हुए विधायक, सांसद, पार्टी जिलाध्यक्षों को समय-समय पर अवगत कराया है। यहां तक की राजनैतिक पार्टियों के पदाधिकारियों को चुनाव सामग्री भाषण सभी मातृभाषा में देने के लिए प्रेरित किया
संगठन की मांगे : राजस्थानी को कक्षा एक से दस तक अनिवार्य विषय के रूप में प्रारंभ किया जावे। संवैधानिक मान्यता के लिए जनप्रतिनिधि दबाव बनाए, विश्वविद्यालयों में राजस्थानी विभाग खोले, राजस्थानी फिल्म मनोरंजन कर मुक्त हो, राजस्थान लोक सेवा आयोग में समस्त परीक्षा में एक प्रश्न पत्र प्रारंभ किया जावे। अन्य प्रदेशों में जाने वाली रोडवेज बसो पर पधारो म्हारा देश लिखा जाए, राजस्थान दिवस एवं प्रमुख उत्सवों पर प्रदेश के कलाकारो, साहित्यकारों एवं कवियों को आमंत्रित कियाा जावे।