महिलाएं भले ही विभिन्न क्षेत्रों में बुलंदियां छू रही हों, लेकिन शोषण से अब तक उन्हें निजात नहीं मिल पाई है। कोर्ट में चल रहे सैकड़ों केस इसके गवाह हैं। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कोर्ट में दहेज उत्पीड़न और बलात्कार के करीब 550 केस पेंडिंग हैं। चाहे राजनीति हो या सिविल सर्विस या कोई और क्षेत्र, महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं। अब वे अपने खिलाफ होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ आवाज भी उठाती हैं। इसके बावजूद उनका उत्पीड़न कम नहीं हो रहा है। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दहेज उत्पीड़न के 205 और बलात्कार के 347 केस पेंडिंग हैं। जनवरी 2009 में कोर्ट ने दहेज हत्या के तीन मुकदमों की सुनवाई की। इनमें एक मुकदमे में 3 लोगों को सजा सुनाई गई और एक मुकदमे में 4 लोगों को बरी कर दिया। बलात्कार के पांच केस निपटाए गए। इसी तरह कोर्ट से कई महिलाओं को न्याय तो मिला है, लेकिन अब भी सैकड़ों महिलाएं ऐसी हैं जो उत्पीड़न के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रही हैं। वकील गीता शर्मा ने कहा कि महिलाओं का उत्पीड़न सदियों से होता आ रहा है। पहले शिक्षा का अभाव था, अब वे शिक्षित हुई हैं और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं। सरकार और सामाजिक संस्थाएं भी महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाकर उनका सहयोग करती हैं। वकील रीना रानी का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि महिलाओं ने पिछले तीन दशकों में काफी तरक्की की है। महिलाओं की सामाजिक स्वतंत्रता बढ़ी है। स्वतंत्रता मिलने का कुछ महिलाएं दुरुपयोग भी करती हैं, जिसकी वजह से परिवार टूटने लगे हैं। महिलाओं का चाहिए कि वे शिक्षित होने का परिचय टूटते परिवार को जोड़कर दें। NBT