Sunday, March 15, 2009

राजनीति में सेना की भूमिका को खत्म किया जाएगा

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पीएमएल (एन)के प्रमुख नवाज़ शरीफ को इस्लामाबाद लॉन्ग मा र्च से एक दिन पहले तीन दिन के लिए घर में नजरबंद कर दिया गया है। पाकिस्तान सरकार की पहल को नवाज़ शरीफ की ओर से ठुकराए जाने के बाद यह कदम उठाया गया है। नवाज़ शरीफ के अलावा उनके भाई शहबाज़ शरीफ और पार्टी के अन्य नेताओं को हिरासत में लेने के आदेश दिए गए हैं। स्थानीय समाचार चैनल ने खबर दी है कि पूर्व क्रिकेटर और तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान के और जमात-ए-इस्लामी प्रमुख काजी हुसैन अहमद को भी नजरबंद किया गया है। चैनल ने सूत्रों ने हवाले से बताया है कि इन नेताओं को नजरबंदी के बारे में सूचित कर दिया गया है और इनके घरों के बाहर बड़ी तादाद में पुलिस के जवान तैनात किए गए हैं। उधर, पीएमएल (एन) के प्रवक्ता अहसान इकबाल ने शरीफ को नजरबंद किए जाने की पुष्टि करते हुए कहा, 'सैकड़ों की संख्या में पुलिसकमिर्यों ने शरीफ के आवास को घेर रखा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अलोकतांत्रिक है लेकिन इससे हमारा दृढ़ संकल्प नहीं डगमगाएगा।' इसके पहले पाकिस्तान में चल रहे राजनीतिक संकट को सुलझाने के लिए सरकार ने पहल करते हुए कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा के लिए अपील करेगी, जिसमें नवाज शरीफ और शाहबाज़ शरीफ के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी।नवाज़ शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन)ने सरकार की पहल को ठुकरा दिया था। नवाज़ शरीफ ने शनिवार को एक रैली में कहा था,' सरकार मुझे गिरफ्तार करे, नज़रबंद करे, पाबंदियां लगाए, ये लॉन्ग मार्च नहीं रुकेगा और अंजाम तक पहुच कर रहेगा।' इस्लामाबाद में लॉन्ग मार्च सोमवार को होनेवाला है। शनिवार को राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के प्रवक्ता फरतुल्लाह बाबर ने एक बयान में कहा था कि पाकिस्तान सरकार शरीफ बंधुओं पर प्रतिबंध के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करेगी। बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गीलानी और ज़रदारी के बीच बैठक में ये फैसला हुआ। ज़रदारी और प्रधानमंत्री गीलानी के बीच इस बात पर भी सहमति हुई कि परवेज़ मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान बर्खास्त किए गए जजों की बहाली का मामला 'लोकतंत्र के चार्टर' के तहत हल किया जाएगा। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ज़रदारी की पत्नी बेनज़ीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ ने 2006 में इस चार्टर पर हस्ताक्षर किया था। दोनों नेताओं ने यह वादा किया था कि देश में लोकतंत्र बहाल किया जाएगा, टकराव से बचने की कोशिश होगी और राजनीति में सेना की भूमिका को खत्म किया जाएगा।