भारत में भी नौकरियां जा रही हैं। इसमें सबसे आगे है टेक्सटाइल सेक्टर। सिर्फ डेढ़ महीने पहले टेक्सटाइल सेक्टर में पांच लाख लोगों की नौकरियां जा चुकी थीं। भारत के वित्त सचिव ने भी इसकी पुष्टि की थी। इस सेक्टर में अगले दो महीने में और पांच लाख लोगों की नौकरियां जाने वाली हैं। यानी कुल 10 लाख लोग बेकार होने वाले हैं।
सरकार अभी तक इस बात में उलझी है कि मंदी का ऐलान करें या नहीं लेकिन पूरी दुनिया में स्थिति बहुत खराब है। सोमवार के दिन यूरोप और अमेरिका की सिर्फ चंद कंपनियों ने हजारों लोगों को काम से निकाल दिया।सेज में पिछले साल 30,000 लोगों की नौकरियां गई हैं। यह सरकारी आंकड़ा है। रियल एस्टेट का क्षेत्र भी इस मंदी से अछूता नहीं है। कई बड़े डेवलपर्स ने अपने प्रोजेक्ट अधूरे छोड़ दिए हैं। उन कंपनियों पर मंदी की मार ज्यादा पड़ी है, जो किसी न किसी रूप में अमेरिकी से जुड़ी हैं।सब कह रहे हैं कि भारत में चिंता करने की बात नहीं है। भारत के निर्यात संगठनों का महासंघ एफआईईओ ने आशंका जताई है कि इस साल मार्च तक निर्यात क्षेत्र में कम से कम एक करोड़ नौकरियां कम हो जाएंगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सामान के खरीदार काफी कम हो गए हैं। एफआईईओ के मुताबिक 80 सालों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार की हालत इतनी खराब हो गई है कि भारतीय सामान को कोई पूछ भी नहीं रहा है। भारतीय वस्तुओं का सबसे बड़ा बाजार यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देश हैं, जो भयंकर मंदी की चपेट में हैं। एफआईईओ के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने अब तक जो कदम उठाएं हैं, उसमें निर्यात यानी एक्सपोर्ट क्षेत्र के लिए कोई खास उपाय नहीं हैं। कई बार एफआईईओ सरकार पर दबाव बनाने के लिए भी ऐसे आंकड़े दे देता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश में नौकरियों में कटौती नहीं हो रही है। कई सेक्टरों में लोग चुपचाप निकाले जा रहे हैं।
सरकार अभी तक इस बात में उलझी है कि मंदी का ऐलान करें या नहीं लेकिन पूरी दुनिया में स्थिति बहुत खराब है। सोमवार के दिन यूरोप और अमेरिका की सिर्फ चंद कंपनियों ने हजारों लोगों को काम से निकाल दिया।सेज में पिछले साल 30,000 लोगों की नौकरियां गई हैं। यह सरकारी आंकड़ा है। रियल एस्टेट का क्षेत्र भी इस मंदी से अछूता नहीं है। कई बड़े डेवलपर्स ने अपने प्रोजेक्ट अधूरे छोड़ दिए हैं। उन कंपनियों पर मंदी की मार ज्यादा पड़ी है, जो किसी न किसी रूप में अमेरिकी से जुड़ी हैं।सब कह रहे हैं कि भारत में चिंता करने की बात नहीं है। भारत के निर्यात संगठनों का महासंघ एफआईईओ ने आशंका जताई है कि इस साल मार्च तक निर्यात क्षेत्र में कम से कम एक करोड़ नौकरियां कम हो जाएंगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सामान के खरीदार काफी कम हो गए हैं। एफआईईओ के मुताबिक 80 सालों के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार की हालत इतनी खराब हो गई है कि भारतीय सामान को कोई पूछ भी नहीं रहा है। भारतीय वस्तुओं का सबसे बड़ा बाजार यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देश हैं, जो भयंकर मंदी की चपेट में हैं। एफआईईओ के मुताबिक अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने अब तक जो कदम उठाएं हैं, उसमें निर्यात यानी एक्सपोर्ट क्षेत्र के लिए कोई खास उपाय नहीं हैं। कई बार एफआईईओ सरकार पर दबाव बनाने के लिए भी ऐसे आंकड़े दे देता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश में नौकरियों में कटौती नहीं हो रही है। कई सेक्टरों में लोग चुपचाप निकाले जा रहे हैं।