Tuesday, January 13, 2009

प्रधानमंत्री जी मीडिया को नहीं बनाए सरकारी भोपू

केंद्र सरकार की ओर से मुंबई हमलों की कवरेज का बहाना लेकर न्यूज चैनलों पर बेड़ियां डालने के खिलाफ मीडिया एकजुट हो गया है। सरकार की इस कोशिश के खिलाफ सभी न्यूज चैनलों ने मोर्चा खोल लिया। तमाम न्यूज चैनलों के संपादकों ने सेंसरशिप के विरोध में प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस नए प्रस्तावित कानून को किसी भी सूरत में रोकने की अपील की है। एडीटर्स गिल्ड और प्रेस क्लब ने भी एक बयान जारी कर सरकार की इस कोशिश पर चिंता जाहिर की है। सरकार केबल टेलीविजन नेटवर्क( रेगुलेशन) एक्ट में संशोधन करने जा रही है। एक रेगुलेटरी लाकर टीवी चैनलों को नियंत्रित करने की कोशिश है। सरकार की चली तो तमाम टीवी चैनल सरकारी भोंपू बन कर रह जाएंगे। लेकिन मीडिया ने सरकारी हाथों की कठपुतली बनने से साफ इनकार कर दिया है। तमाम टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों और पत्रकारों ने मिलकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सवाल पूछे हैं, उन्हें एक चिट्ठी लिखी है। उनसे मिलने के लिए वक्त मांगा गया है। पीएम को भेजे खत में साफ लिखा गया है कि सरकार के इस कदम से पत्रकार बिरादरी में और उन तमाम लोगों में खासा असंतोष है जो अभिव्यक्ति की आजादी में यकीन रखते हैं। संपादक होने के नाते हमारा ये मानना है कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं को जिंदा रखने के लिए उनकी निगरानी जरूरी है, ये निगरानी मीडिया करता है। अगर सरकार ने मीडिया को अपने हाथ में लेने की कोशिश की तो लोकतंत्र की शक्ल हमेशा के लिए बिगड़ जाएगी। इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए कंटेट कोड को अंतिम रूप दिया जा चुका है। माना जा रहा है कि ये कोड जनवरी के अंत तक जारी कर दिया जाएगा। इसमें साफ है कि आतंकवादी हमला, सांप्रदायिक दंगा, हाईजैकिंग या बंधक बनाये जाने जैसी किसी भी वारदात के दौरान मीडिया अपनी ओर से कोई कवरेज नहीं कर पाएगी। न्यूज चैनलों को सिर्फ वही फुटेज दिखाना पड़ेगा जो सरकारी अधिकारी उपलब्ध कराएंगे। यानी घटना को लेकर सरकारी अमला अपनी कहानी पकाएगा और मीडिया की कनपटी पर बंदूक रखकर उसे बाध्य किया जाएगा कि वो वही कहानी जनता के सामने उसी तरह पेश करे। मामला यहीं खत्म नहीं होता।