काठमांडू स्थित मशहूर पशुपतिनाथ मंदिर में स्थानीय नेपाली पुजारियों को नियुक्त करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है और इसका विरोध भी बढ़ रहा है। लेकिन नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया है कि पशुपतिनाथ मंदिर में नेपाली पुजारियों को नियुक्त करने के फ़ैसले पर वह क़ायम है। भारत में मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना ने भी नेपाल सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया है। भारत में इसके विरोध में प्रदर्शन भी हो रहे हैं.
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले के बावजूद नेपाल सरकार ने ये नियुक्ति की है। गुरुवार को सरकार ने ब्राह्मण पुजारियों को हटाकर स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति की घोषणा की थी. इसके बाद से ही सरकार के क़दम का विरोध हो रहा है।
दरअसल वर्षों से पशुपतिनाथ मंदिर में प्रमुख पुजारी की भूमिका दक्षिण भारत के ब्राह्मण निभाते हैं, जिन्हें भट्ट कहा जाता है। उनका सहयोग स्थानीय नेपाली पुजारी करते हैं, लेकिन उनका क़द ब्राह्मण पुजारियों से छोटा होता है। पारंपरिक रूप से नेपाल नरेश ही देश के सर्वोच्च पुजारी की नियुक्ति करते थे लेकिन राजशाही की समाप्ति के बाद माओवादियों के नेतृत्व में बनी सरकार स्थानीय पुजारियों को इस सम्मानित पद पर नियुक्त करना चाहती है। नेपाल में अभी नया संविधान नहीं लिखा गया है, इसलिए इस मामले पर अभी क़ानून स्पष्ट नहीं है कि किसे पुजारियों की नियुक्ति का अधिकार है। नेपाल के संस्कृति मंत्री गोपाल किराती का कहना है कि सरकार स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति के अपने फ़ैसले पर क़ायम है। गुरुवार को सरकार के फ़ैसले के बाद से ही अन्य पुजारियों ने मंदिर के धार्मिक समारोहों से अपने को अलग कर लिया है। मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस और अन्य हिंदू संगठन भी सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं. पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव का मंदिर है और नेपाल के अलावा भारत में भी यह मंदिर काफ़ी मशहूर है। दूसरी ओर पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी सरकार के इस फ़ैसले को धार्मिक मामलो में राजनीतिक हस्तक्षेप बता रहे हैं. पूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने भी इस विवाद के हल की अपील की है।
ज्ञानेंद्र के सहयोगी पन्हीराज पाठक ने बताया, "ज्ञानेंद्र ने नेपाल सरकार, भक्तों और अन्य लोगों से अपील की है कि वे पशुपतिनाथ मंदिर को राजनीति से ऊपर रखें. उन्होंने कहा है कि आस्था, परंपरा और धार्मिक आचरण हमारे अधिकार और हमारे जीवन की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ राष्ट्रवाद से जुड़े हैं नेपाल के संस्कृति मंत्री ने माना है कि पशुपतिनाथ मंदिर में प्रमुख पुजारी के रूप में स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति में कुछ प्रक्रियागत ग़लतियाँ रही हैं लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि वे दक्षिण भारतीय पुजारियों की दोबारा नियुक्ति नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है।
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले के बावजूद नेपाल सरकार ने ये नियुक्ति की है। गुरुवार को सरकार ने ब्राह्मण पुजारियों को हटाकर स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति की घोषणा की थी. इसके बाद से ही सरकार के क़दम का विरोध हो रहा है।
दरअसल वर्षों से पशुपतिनाथ मंदिर में प्रमुख पुजारी की भूमिका दक्षिण भारत के ब्राह्मण निभाते हैं, जिन्हें भट्ट कहा जाता है। उनका सहयोग स्थानीय नेपाली पुजारी करते हैं, लेकिन उनका क़द ब्राह्मण पुजारियों से छोटा होता है। पारंपरिक रूप से नेपाल नरेश ही देश के सर्वोच्च पुजारी की नियुक्ति करते थे लेकिन राजशाही की समाप्ति के बाद माओवादियों के नेतृत्व में बनी सरकार स्थानीय पुजारियों को इस सम्मानित पद पर नियुक्त करना चाहती है। नेपाल में अभी नया संविधान नहीं लिखा गया है, इसलिए इस मामले पर अभी क़ानून स्पष्ट नहीं है कि किसे पुजारियों की नियुक्ति का अधिकार है। नेपाल के संस्कृति मंत्री गोपाल किराती का कहना है कि सरकार स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति के अपने फ़ैसले पर क़ायम है। गुरुवार को सरकार के फ़ैसले के बाद से ही अन्य पुजारियों ने मंदिर के धार्मिक समारोहों से अपने को अलग कर लिया है। मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस और अन्य हिंदू संगठन भी सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं. पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव का मंदिर है और नेपाल के अलावा भारत में भी यह मंदिर काफ़ी मशहूर है। दूसरी ओर पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी सरकार के इस फ़ैसले को धार्मिक मामलो में राजनीतिक हस्तक्षेप बता रहे हैं. पूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने भी इस विवाद के हल की अपील की है।
ज्ञानेंद्र के सहयोगी पन्हीराज पाठक ने बताया, "ज्ञानेंद्र ने नेपाल सरकार, भक्तों और अन्य लोगों से अपील की है कि वे पशुपतिनाथ मंदिर को राजनीति से ऊपर रखें. उन्होंने कहा है कि आस्था, परंपरा और धार्मिक आचरण हमारे अधिकार और हमारे जीवन की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ राष्ट्रवाद से जुड़े हैं नेपाल के संस्कृति मंत्री ने माना है कि पशुपतिनाथ मंदिर में प्रमुख पुजारी के रूप में स्थानीय पुजारियों की नियुक्ति में कुछ प्रक्रियागत ग़लतियाँ रही हैं लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि वे दक्षिण भारतीय पुजारियों की दोबारा नियुक्ति नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है।