Thursday, January 22, 2009

भारत में मिलावटी दूध बेचने पर नहीं मिलता मृत्युदण्ड

भारत में दूध में पानी हो या सिंथेटिक दूध बिकता हो कोई कार्रवाई नहीं होगी। यदि अखबारों के माध्यम से सम्बन्धित विभाग ने दूधिए को पकड भी लिया तो अदालत में पांच-दस साल तक कार्रवाई चलेगी और हो सकता है कि दूधिए को सजा नहीं हो। या हो तो भी इतनी कम की मिलावट के धंधे पर उसके कोई असर नहीं पडता लेकिन चीन में मिलावटी दूध मिलाने के मामले में मृत्युदण्ड की सजा देकर दुनिया के सामने अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
चीन की एक अदालत ने मिलावटी दूध मामले में दो लोगों को मौत की सज़ा सुनाई है। जबकि इस विवाद के केंद्र में रही सैनलू डेयरी की पूर्व प्रमुख को आजीवन कारावास भुगतना होगा। उत्तरी चीन में शिजियाज़ुआंग की एक अदालत ने इस मामले में कुल 21 लोगों को सज़ा सुनाई है। मिलावटी दूध के कारण छह बच्चों की मौत हो गई थी जबकि क़रीब तीन लाख बच्चे बीमार पड़ गए थे। आरोप था कि दूध पाउडर में मेलामाइन नामक रसायन मिलाया गया ताकि इसमें प्रोटीन की मात्रा ज़्यादा दिखाई जा सके। इस घटना के कारण चीन में काफ़ी हंगामा हुआ था। साथ ही देश-विदेश में चीन की छवि पर भी धब्बा लगा था। इस पूरे मामले में सैनलू ग्रुप की चेयरवूमैन तियान वेन्हुआ के ख़िलाफ़ फ़ैसले पर लोगों की निगाह थी। सैनलू ग्रुप बच्चों के दूध पाउडर बनाने वाला सबसे बड़ा ग्रुप है। वेन्हुआ ने घटिया और नकली उत्पाद तैयार करने और उन्हें बेचने के मामले में अपना दोष स्वीकार कर लिया था। शिजियाज़ुआंग की अदालत ने वेन्हुआ को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है जबकि ज़ांग युजुन और गेंग जिनपिंग को मौत की सज़ा सुनाई गई है। युजुन पर पूर्वी चीन के शांगडांग में एक ग़ैर क़ानूनी वर्कशॉप चलाने का आरोप था जिसमें 600 टन नकली प्रोटीन पाउडर तैयार किया जाता था। यह देश में मेलामाइन का सबसे बड़ा स्रोत था। युजुन के नकली प्रोटीन पाउडर को बेचने के आरोप में ज़ांग यान्ज़ांग को भी आजीवन कारावास की सज़ा मिली। दूसरी ओर जिनपिंग पर ये आरोप साबित हुआ कि उन्होंने ज़हरीली खाद्य सामग्री बनाई और इसे डेयरी कंपनियों को बेचा। जिनपिंग को मौत की सज़ा सुनाई गई। उनके सहयोगी गेंग जिन्ज़ू को आठ साल क़ैद की सज़ा मिली है। चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़ इसी मामले में गाओ जुन्जी को भी मौत की सज़ा मिली है, लेकिन फ़िलहाल ये निलंबित रहेगी। पिछले साल सितंबर में नकली दूध पाउडर का मामला सामने आया था। उस समय ये बात सामने आई थी कि मेलामाइन का उत्पादन करने वाले दलालों के माध्यम से इसे दूध डीलरों को बेच रहे हैं। दूध डीलर दूध पाउडर में प्रोटीन की ज़्यादा मात्रा दिखाने के लिए मेलामाइन मिलाते थे जबकि डेयरी कंपनियाँ ऐसे डीलरों से दूध पाउडर ले तो लेती थी लेकिन उनकी शुद्धता और पौष्टिकता की जाँच नहीं करती थी।