मुन्ना भाई उर्फ संजय दत्त के हालिया बयान से यंग जेनरेशन इत्तफाक नहीं रखती। संजय दत्त ने हालिया इंटरव्यू में कहा था कि लड़कियां शादी के बाद नए परिवार का हिस्सा हो जाती हैं और उन्हें पति का सरनेम लगाना चाहिए।
उन्हें नए परिवार की जिम्मेदारियां लेनी चाहिए। दत्त का इशारा अपनी शादीशुदा बहन प्रिया दत्त की तरफ था, जो अभी भी दत्त सरनेम यूज करती हैं। संजय ने कहा था कि अगर मेरी पत्नी शादी के बाद सरनेम चेंज नहीं करती तो मुझे बुरा लगता। संजू बाबा भले ही ऐसा सोचते हैं लेकिन यंग दिल्ली इस राह के उलट है। कुछ पति तो शादी के बाद पत्नी का सरनेम रखने में भी नहीं हिचक रहे। इस कॉमेंट से संजय दत्त की खीज झलकती है, शायद वह जानते हैं कि उनमें सुनील दत्त की परंपरा को आगे ले जाने की क्षमता नहीं है। संजय के बयान को पूरी तरह खारिज करते हुए जेएनयू में पलिटिकल थॉट की प्रोफेसर निवेदिता मेनन कहती हैं कि यह पूरी तरह राजनीतिक है। अपने आपको साबित करने के लिए उन्होंने जिस तर्क का इस्तेमाल किया, वह मौजूदा शादी व्यवस्था के असली स्वरूप को ही दिखाता है। शादी के बाद जब लड़के की पहचान कायम रहती है, तो लड़की क्यों अपना सरनेम बदले। एक फिटनेस मैगजीन के लिए काम कर रही अस्मिता के मुताबिक, लड़की पराये घर जा रही है, का कॉन्सेप्ट पुराना पड़ चुका है। संजय किस दुनिया में जी रहे हैं? प्रफेशनल वर्ल्ड में पहचान बनाने में लगीं तमाम औरतों ने शादी के बाद अपने सरनेम नहीं बदले। उनके मुताबिक सरनेम बदलने से तमाम बेसिक डॉक्यूमेंट्स में नाम चेंज कराने का झंझट तो रहता ही है, साथ में एक बात भी कोंचती रहती है। गोया शादी के बाद हम कोई और हो गए हों। इंटरनैशनल रिलेशन में एमए कर रही गुंजन सांगवान के मुताबिक, शादी के बाद मैं अपना नाम क्यों बदलूं? यह नाम सालों से मेरी पहचान का हिस्सा है। संजय की सोच पुरुषों की फितरत का एक नमूना है और इसमें कुछ भी नया नहीं है। सरनेम में अगर मसला इगो का न हो, तो महिलाओं को भी कोई आपत्ति नहीं होती। मसलन रागिनी आनंद ने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर लव मैरिज करने के बाद अपने पति के टाइटल को नहीं बल्कि उनके नाम को बतौर सरनेम इस्तेमाल किया। उनके पति ने भी अपने टाइटल को ड्रॉप कर सिर्फ शुरुआती नाम आनंद ही कायम रखा। और बच्चों ने भी आनंद टाइटल का इस्तेमाल किया। बकौल रागिनी हम किसी कास्ट आइडेंडिटी को नहीं जारी रखना चाहते थे और इसके लिए मैंने अपने पति के नाम को अपनाया। इसके लिए कोई प्रेसर नहीं था, बस मुझे उस नाम के साथ जुड़कर अच्छा लगा। संजय दत्त जिन गांधी जी के नए प्रवक्ता होने की हिमायत करते हैं, खुद उनका सरनेम के मसले पर बहुत उदारवादी नजरिया था। जब इंदिरा ने फिरोज बाटलीवाला से शादी का फैसला किया, तो नेहरू को इस पर बहुत आपत्ति हुई। तब गांधी ने इंदिरा और फिरोज को अपना सरनेम गांधी देकर मिसाल कायम की थी। (मटा)
उन्हें नए परिवार की जिम्मेदारियां लेनी चाहिए। दत्त का इशारा अपनी शादीशुदा बहन प्रिया दत्त की तरफ था, जो अभी भी दत्त सरनेम यूज करती हैं। संजय ने कहा था कि अगर मेरी पत्नी शादी के बाद सरनेम चेंज नहीं करती तो मुझे बुरा लगता। संजू बाबा भले ही ऐसा सोचते हैं लेकिन यंग दिल्ली इस राह के उलट है। कुछ पति तो शादी के बाद पत्नी का सरनेम रखने में भी नहीं हिचक रहे। इस कॉमेंट से संजय दत्त की खीज झलकती है, शायद वह जानते हैं कि उनमें सुनील दत्त की परंपरा को आगे ले जाने की क्षमता नहीं है। संजय के बयान को पूरी तरह खारिज करते हुए जेएनयू में पलिटिकल थॉट की प्रोफेसर निवेदिता मेनन कहती हैं कि यह पूरी तरह राजनीतिक है। अपने आपको साबित करने के लिए उन्होंने जिस तर्क का इस्तेमाल किया, वह मौजूदा शादी व्यवस्था के असली स्वरूप को ही दिखाता है। शादी के बाद जब लड़के की पहचान कायम रहती है, तो लड़की क्यों अपना सरनेम बदले। एक फिटनेस मैगजीन के लिए काम कर रही अस्मिता के मुताबिक, लड़की पराये घर जा रही है, का कॉन्सेप्ट पुराना पड़ चुका है। संजय किस दुनिया में जी रहे हैं? प्रफेशनल वर्ल्ड में पहचान बनाने में लगीं तमाम औरतों ने शादी के बाद अपने सरनेम नहीं बदले। उनके मुताबिक सरनेम बदलने से तमाम बेसिक डॉक्यूमेंट्स में नाम चेंज कराने का झंझट तो रहता ही है, साथ में एक बात भी कोंचती रहती है। गोया शादी के बाद हम कोई और हो गए हों। इंटरनैशनल रिलेशन में एमए कर रही गुंजन सांगवान के मुताबिक, शादी के बाद मैं अपना नाम क्यों बदलूं? यह नाम सालों से मेरी पहचान का हिस्सा है। संजय की सोच पुरुषों की फितरत का एक नमूना है और इसमें कुछ भी नया नहीं है। सरनेम में अगर मसला इगो का न हो, तो महिलाओं को भी कोई आपत्ति नहीं होती। मसलन रागिनी आनंद ने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर लव मैरिज करने के बाद अपने पति के टाइटल को नहीं बल्कि उनके नाम को बतौर सरनेम इस्तेमाल किया। उनके पति ने भी अपने टाइटल को ड्रॉप कर सिर्फ शुरुआती नाम आनंद ही कायम रखा। और बच्चों ने भी आनंद टाइटल का इस्तेमाल किया। बकौल रागिनी हम किसी कास्ट आइडेंडिटी को नहीं जारी रखना चाहते थे और इसके लिए मैंने अपने पति के नाम को अपनाया। इसके लिए कोई प्रेसर नहीं था, बस मुझे उस नाम के साथ जुड़कर अच्छा लगा। संजय दत्त जिन गांधी जी के नए प्रवक्ता होने की हिमायत करते हैं, खुद उनका सरनेम के मसले पर बहुत उदारवादी नजरिया था। जब इंदिरा ने फिरोज बाटलीवाला से शादी का फैसला किया, तो नेहरू को इस पर बहुत आपत्ति हुई। तब गांधी ने इंदिरा और फिरोज को अपना सरनेम गांधी देकर मिसाल कायम की थी। (मटा)