जंगल से भटक कर रिहायशी इलाक़ों में घुसे तीन बाघों के डर से उत्तर प्रदेश के हज़ारों लोग सहमे हुए हैं। इनके हमलों में अब तक कम से कम आठ लोग मारे जा चुके हैं और एक व्यक्ति घायल हुआ है। पिछले महीनों से तीनों बाघ राज्य के पाँच ज़िलों में भय का पर्याय बने हुए हैं लेकिन वन विभाग इन्हें पकड़ने में विफल रहा है। तीन में से दो बाघों की यात्रा पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से शुरु हुई और इनका डर पूर्वी सीमा पर स्थित गाज़ीपुर ज़िले तक 800 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। राज्य के मुख्य वन्यजीव संरक्षक बीके पटनायक का कहना है कि तीन में से एक बाघ को ख़तरनाक घोषित कर दिया गया है क्योंकि वह आदमखोर हो चुका है। बीके पटनायक का कहना है कि वन विभाग ने इस बाघ को मारने के निर्देश दिए हैं क्योंकि आदमखोर होने के बाद उसके संरक्षण की ज़रूरत नहीं है। इस बाघ की तलाश के लिए बंदूकधारियों के चार दस्ते को रवाना कर दिया गया है। यह बाघ पीलीभीत के जंगलों में अपने निवास स्थान से पिछले साल नवंबर में निकला और पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले में पहुँच गया। इस दौरान उसने कम से कम चार लोगों को अपना शिकार बनाया जिनमें से तीन की मौत हो गई और एक घायल हो गया। राज्य के वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह ने फैज़ाबाद के दो गाँवों का दौरा कर गुस्साए लोगों को शांत करने की कोशिश की। उनका कहना है कि बाघों ने तब ग्रामीणों पर हमले किए जब वे जंगलों में घुसे थे। लखीमपुर खीरी के गन्ने के खेतों में एक दूसरा बाघ पनाह लिए हुए है जो अब तक तीन लोगों को मार चुका है। तीसरा बाघ सीमावर्ती बिहार राज्य के जंगलों से उत्तर प्रदेश में घुसा है जो एक व्यक्ति को मार चुका है। हालाँकि इसे आदमखोर नहीं बताया गया है। वन अधिकारियों का कहना है कि इन दोनों बाघों को वापस जंगलों में खदेड़ने के लिए लखीमपुर खीरी और गाज़ीपुर ज़िले में और टीमें भेजी गई हैं। हालाँकि वन अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि प्राकृतिक निवास स्थल से निकल भागे बाघों को नियंत्रण में लेने के लिए उनके पास पर्याप्त उपकरण और अनुभव नहीं हैं। उनका ये भी कहना है कि कड़े संरक्षण नियमों के कारण इस इलाक़े में शेरों की संख्या बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर आबादी बढ़ने और खेती में बदलाव के कारण वन क्षेत्रों में कमी आई है।