सरकार कुछ भी कहे, लेकिन स्कूली पढ़ाई की जमीनी तस्वीर कम से कम ऐसी तो नहीं ही है, जो बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मां-बाप का हौसला बढ़ा सके। नमूना देखिए कि 2005 में कक्षा एक से आठवीं तक के लगभग 44 प्रतिशत बच्चे सामान्य स्टोरी पढ़ने का ज्ञान रखते थे। 2008 में यह आंकड़ा 41 प्रतिशत पर आ गया है। क्लास के लिहाज से इसी श्रेणी के बच्चों में देखें तो 2005 में जहां लगभग 31 प्रतिशत बच्चे भाग देने का ज्ञान रखते थे, बीते तीन वर्षों में उनका भी प्रतिशत 27 रह गया है। खास बात यह है कि यह गिरावट सरकारी और निजी स्कूलों में एक साथ देखी जा रही है। इस स्थिति का खुलासा ग्रामीण शिक्षा की स्थिति पर जारी हालिया रिपोर्ट में किया गया है।
सरकार जोर-शोर से प्रचार कर रही है कि सर्वशिक्षा अभियान और मिड डे मील की बदौलत स्कूलों में बच्चों के दाखिले के मामले में उसने बड़ी सफलता हासिल कर ली है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नतीजों पर गौर करें तो सीखने-समझने की स्थिति बदतर ही हुई है। अब गणित को ही लीजिए। रिपोर्ट के मुताबिक एक से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद भी लगभग नौ प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें गणित में कुछ नहीं आता है। अलबत्ता औतसन 23 प्रतिशत बच्चे घटाव व 28 प्रतिशत बच्चे भाग देना जानते हैं। इसी तरह कक्षा एक से आठवीं तक में किताबी पढ़ाई की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर नौ प्रतिशत बच्चे कुछ नहीं पढ़ सकते। अक्षर व शब्द ज्ञान के मामले में भी सभी बच्चे खरे नहीं उतरते। पैसा है, स्कूल हैं और स्कूल में बच्चे भी हैं... लेकिन कोई खुशफहमी पालने की जरुरत नहीं है। गांवों में बच्चे तीन साल पहले जितना पढ़-लिख लेते थे, अब वह स्तर भी नहीं रहा है। बच्चों की शिक्षा को लेकर सरकारी आंकड़े अधूरा सच दर्शाते हैं। हकीकत यह है कि गांवों के बच्चे गणित, अक्षर और शब्द ज्ञान के मामले में अभी भी काफी कमजोर हैं। चिंता की बात है कि यह कमजोरी कम होने के बजाय बढ़ रही है।
सरकार जोर-शोर से प्रचार कर रही है कि सर्वशिक्षा अभियान और मिड डे मील की बदौलत स्कूलों में बच्चों के दाखिले के मामले में उसने बड़ी सफलता हासिल कर ली है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नतीजों पर गौर करें तो सीखने-समझने की स्थिति बदतर ही हुई है। अब गणित को ही लीजिए। रिपोर्ट के मुताबिक एक से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद भी लगभग नौ प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें गणित में कुछ नहीं आता है। अलबत्ता औतसन 23 प्रतिशत बच्चे घटाव व 28 प्रतिशत बच्चे भाग देना जानते हैं। इसी तरह कक्षा एक से आठवीं तक में किताबी पढ़ाई की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर नौ प्रतिशत बच्चे कुछ नहीं पढ़ सकते। अक्षर व शब्द ज्ञान के मामले में भी सभी बच्चे खरे नहीं उतरते। पैसा है, स्कूल हैं और स्कूल में बच्चे भी हैं... लेकिन कोई खुशफहमी पालने की जरुरत नहीं है। गांवों में बच्चे तीन साल पहले जितना पढ़-लिख लेते थे, अब वह स्तर भी नहीं रहा है। बच्चों की शिक्षा को लेकर सरकारी आंकड़े अधूरा सच दर्शाते हैं। हकीकत यह है कि गांवों के बच्चे गणित, अक्षर और शब्द ज्ञान के मामले में अभी भी काफी कमजोर हैं। चिंता की बात है कि यह कमजोरी कम होने के बजाय बढ़ रही है।